भारतीय बैंकिंग सिस्टम में एक बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव होने जा रहा है, जिसकी गूंज देशभर में सुनाई देगी. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अब एक ऐसी नई व्यवस्था लागू करने जा रहा है, जो बैंकों के लोन देने, रिस्क आंकने और प्रोविजनिंग करने के तौर-तरीकों को पूरी तरह से बदल कर रख देगी. अगर आप भी किसी बैंक से लोन लेने की सोच रहे हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है. क्योंकि आने वाले दिनों में बैंक अब लोन देने से पहले दस बार सोचेंगे.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, आरबीआई जल्द ही ECL यानी 'एक्सपेक्टेड क्रेडिट लॉस' मॉडल पर फाइनल गाइडलाइन्स जारी करने वाला है. यह नया नियम 1 अप्रैल 2026 से सभी बैंकों पर लागू होगा और इसका मकसद बैंकिंग सिस्टम को और ज्यादा सुरक्षित और पारदर्शी बनाना है.
अभी कैसे काम करता है सिस्टम?
फिलहाल भारत में बैंक जब किसी को लोन देते हैं, तो वे तब तक कोई विशेष खतरा नहीं मानते, जब तक कि उस व्यक्ति की ईएमआई 90 दिन तक डिफॉल्ट न हो जाए. जैसे ही 90 दिन बीतते हैं और भुगतान नहीं होता, बैंक उस लोन को NPA (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घोषित कर देते हैं. इसके बाद बैंक नुकसान की भरपाई के लिए अपनी कमाई में से कुछ पैसा अलग रखते हैं, जिसे प्रोविजनिंग कहते हैं. इस मौजूदा सिस्टम को ICL यानी Incurred Credit Loss Model कहा जाता है.
अब क्या बदलेगा? क्या है ECL मॉडल?
आरबीआई का नया 'एक्सपेक्टेड क्रेडिट लॉस' (ECL) मॉडल एक दूरदर्शी दृष्टिकोण है. इसका मतलब ये है कि अब बैंक लोन देने के पहले दिन से ही यह आकलन करेंगे कि उस लोन के डूबने का कितना खतरा है. ग्राहक की वित्तीय स्थिति, क्रेडिट स्कोर, आय के सोर्स और बाजार की स्थितियों को देखते हुए बैंक तय करेंगे कि भविष्य में कितना नुकसान हो सकता है. इस अनुमान के आधार पर बैंक को शुरुआत से ही थोड़ी-थोड़ी प्रोविजनिंग करनी होगी, ताकि अगर भविष्य में लोन डूबे तो बैंक पहले से तैयार हो.
आम आदमी पर क्या असर होगा?
बैंक होंगे ज्यादा मजबूत
इस मॉडल से बैंकिंग सिस्टम और अधिक स्थिर और मजबूत होगा. आर्थिक संकट या मंदी के समय बैंक बेहतर तरीके से मुकाबला कर सकेंगे, जिससे आम लोगों का पैसा भी सुरक्षित रहेगा.
लोन मिलना हो सकता है थोड़ा मुश्किल
अब बैंकों को हर लोन के साथ संभावित जोखिम का आकलन करना होगा, इसलिए वे लोन देने से पहले ज्यादा सतर्क होंगे. जिनकी क्रेडिट हिस्ट्री खराब है या इनकम अनस्टेबल है, उन्हें लोन मिलने में कठिनाई हो सकती है.
ब्याज दरें हो सकती हैं प्रभावित
प्रोविजनिंग बढ़ने से बैंकों की लागत बढ़ सकती है, जिसका असर लोन की ब्याज दरों पर भी पड़ सकता है. हालांकि यह असर कितना होगा, यह आरबीआई की फाइनल गाइडलाइन के बाद ही साफ होगा.
क्यों जरूरी है ये बदलाव?
यह मॉडल पहले ही अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और कई विकसित देशों में लागू किया जा चुका है. इसका मकसद बैंकों को जोखिम के प्रति ज्यादा सजग बनाना और NPA की समस्या को शुरुआती चरण में ही रोकना है. आरबीआई ने 16 जनवरी 2023 को इसका ड्राफ्ट जारी किया था और अब जल्द ही इसे अंतिम रूप देने जा रहा है.