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बड़े क्लाइंट, बड़ी डील... लेकिन सच्चाई कुछ और! आपसे क्या सच्चाई छुपा रहीं IT कंपनियां?

टीवी चैनलों के लिए जहां टीआरपी और फिल्मों के लिए बॉक्स ऑफिस कलेक्शन मायने रखता है, वहीं आईटी कंपनियों के लिए ‘TCV’ उनका रिपोर्ट कार्ड रहा है. लेकिन पिछले कुछ सालों में टीसीवी और असल रेवेन्यू ग्रोथ के बीच की खाई गहरी होती जा रही है.

बड़े क्लाइंट, बड़ी डील... लेकिन सच्चाई कुछ और! आपसे क्या सच्चाई छुपा रहीं IT कंपनियां?
Shivendra Singh|Updated: Aug 04, 2025, 05:31 PM IST
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टीवी चैनलों के लिए जहां टीआरपी और फिल्मों के लिए बॉक्स ऑफिस कलेक्शन मायने रखता है, वहीं आईटी कंपनियों के लिए ‘TCV’ उनका रिपोर्ट कार्ड रहा है. लेकिन पिछले कुछ सालों में टीसीवी और असल रेवेन्यू ग्रोथ के बीच की खाई गहरी होती जा रही है. भारतीय आईटी कंपनियों की जबरदस्त डील जीतने की घोषणाएं सुनकर इन्वेस्ट्स और बाजार उत्साहित हो जाते हैं. हर तिमाही ‘रिकॉर्ड TCV (टोटल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू)’ या ‘स्ट्रॉन्ग डील विन’ जैसे शब्दों की गूंज सुनाई देती है. लेकिन क्या इन बड़े-बड़े दावों के पीछे की सच्चाई भी उतनी ही मजबूत है? आंकड़ों और ग्राउंड रियलिटी को देखने के बाद जवाब कुछ और ही है. उदाहरण के लिए, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) ने बीते छह तिमाहियों में एक बार रिकॉर्ड डील्स और दो बार स्ट्रॉन्ग डील्स की घोषणा की. लेकिन FY26 की पहली तिमाही में कंपनी की आय में गिरावट दर्ज की गई. बीएसएनएल के साथ मेगा डील का काम खत्म हो गया और नई डील्स से भरपाई नहीं हो पाई. अब कंपनी अपने मिड-टू-सीनियर लेवल के 12 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को हटाने की तैयारी में है.

बड़े क्लाइंट का भरोसा डगमगाया?
टीसीएस और विप्रो जैसी कंपनियों में $100 मिलियन से ज्यादा खर्च करने वाले क्लाइंट्स की संख्या में कमी आई है. टीसीएस में जून 2025 तक $100 मिलियन क्लाइंट एक घटकर 62 हो गए और $50 मिलियन वाले नौ घट गए. विप्रो में $100 मिलियन क्लाइंट्स 22 से घटकर 16 हो गए. इसका मतलब यह नहीं कि क्लाइंट पूरी तरह चले गए, बल्कि उन्होंने खर्च घटा दिया है.

बदलते दौर में डील्स का बदलता चेहरा
आज की तारीख में 'बड़ी डील' का मतलब पहले जैसा नहीं रह गया है. रन द बिजनेस डील्स- जिसमें आई इंफ्रास्ट्रक्चर संभालना शामिल है और चेंज दा बिजनेस डील्स- जिसमें कंपनियों को इनोवेटिव और प्रॉफिटेबल बनाने की कोशिश होती है. दूसरी किस्म की डील्स ज्यादा लाभकारी होती हैं लेकिन तुरंत रोकी भी जा सकती हैं. वहीं पहली किस्म की डील्स अब और ज्यादा ‘प्राइस वॉर’ में तब्दील हो गई हैं क्योंकि GenAI ने लागत घटाने के नए रास्ते खोल दिए हैं.

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कंफ्यूजन बढ़ा रहे टीवीसी जैसे आंकड़े
कोफोर्ज जैसी मिड-टियर कंपनियां अब केवल टीसीवी नहीं, बल्कि अगले 12 महीनों में एक्सिक्यूटेबल ऑर्डर वैल्यू भी बताती हैं. इससे ज़्यादा पारदर्शिता मिलती है. जून 2025 तक कोफोर्ज के पास 46.9% की सालाना बढ़ोतरी के साथ $1.55 बिलियन का ऑर्डर था. इसके $10 मिलियन से ज्यादा वाले क्लाइंट्स भी 23 से बढ़कर 32 हो गए हैं.

पुराने फॉर्मूले अब काम नहीं आ रहे
आईटी इंडस्ट्री में हायरिंग, हेडकाउंट और टीसीवी अब उतने प्रेडिक्टिव नहीं रह गए हैं. टीसीएस जैसी कंपनियां डिमांड का अनुमान लगाकर हायरिंग करती हैं, लेकिन अगर डिमांड घट गई तो लेऑफ तय है. यह ट्रेंड अब आम होता जा रहा है.

इन्वेस्टर्स के लिए नए इंडिकेटर्स
अनअर्थइनसाइट्स के सीईओ गौरव वासु के मुताबिक, अब इन्वेस्टर्स को एनुअल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू (ACV), शॉर्ट-टर्म डील पाइपलाइन, नेट न्यू डील्स और AI/GenAI से जुड़ी डील्स की ग्रोथ जैसे इंडिकेटर्स पर ध्यान देना चाहिए. रेवेन्यू-पर-कर्मचारी और मार्जिन इंप्रूवमेंट भी भविष्य की स्थिति का बेहतर संकेत दे सकते हैं.

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