Trump Tariff War: अमेरिका की तरफ से यदि भारतीय प्रोडक्ट पर रेसिप्रोकल टैरिफ (जैसे को तैसा टैक्स) लगाया जाता है तो इसका असर कई सामान पर पड़ सकता है. ट्रंप सरकार की तरफ से जवाबी टैरिफ लगाने से एग्रीकल्चर, मशीनरी, फॉर्मा और इलेक्ट्रिकल केमिकल जैसे सेक्टर से जुड़े सामान प्रभावित हो सकते हैं. उनका कहना है कि इन सेक्टर को ट्रंप प्रशासन से एक्सट्रा इम्पोर्ट ड्यूटी का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि टैरिफ का गैप बहुत ज्यादा है. यह अंतर अमेरिका और भारत की तरफ से किसी प्रोडक्ट पर लगाए गए इम्पोर्ट ड्यूटी के बीच का फर्क है.
संभावित शुल्क अंतर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग
अमेरिका के भारतीय प्रोडक्ट पर जवाबी शुल्क लगाने से एग्रीकल्चर, मशीनरी, फॉर्मा और इलेक्ट्रिकल केमिकल जैसे पर असर पड़ने की संभावना है. जानकारों का कहना है कि इन सेक्टर में ज्यादा इम्पोर्ट ड्यूटी के कारण अमेरिकी प्रशासन से अतिरिक्त सीमा शुल्क का सामना करना पड़ सकता है. ‘उच्च शुल्क अंतर’ किसी उत्पाद पर अमेरिका और भारत द्वारा लगाए गए आयात शुल्कों के बीच का अंतर है. व्यापक क्षेत्र स्तर पर, भारत और अमेरिका के बीच संभावित शुल्क अंतर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है.
किस सेक्टर में कितना अंतर?
रसायनों और दवाओं पर यह अंतर 8.6 प्रतिशत; प्लास्टिक पर 5.6 प्रतिशत; वस्त्र व परिधान पर 1.4 प्रतिशत; हीरे, सोने और आभूषणों पर 13.3 प्रतिशत; लोहा, इस्पात व आधार धातुओं पर 2.5 प्रतिशत; मशीनरी व कंप्यूटर पर 5.3 प्रतिशत; इलेक्ट्रॉनिक पर 7.2 प्रतिशत और वाहन और उसके घटकों पर 23.1 प्रतिशत है. एक निर्यातक ने कहा, ‘शुल्क अंतर जितना ज्यादा होगा, क्षेत्र उतना ही ज्यादा प्रभावित होगा.’ आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के विश्लेषण के अनुसार एग्रीकल्चर में सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र मछली, मांस व प्रसंस्कृत समुद्री भोजन होगा. इसका 2024 में निर्यात 2.58 अरब अमेरिकी डॉलर था और इसे 27.83 प्रतिशत शुल्क अंतर का सामना करना पड़ेगा.
शुल्कों में अतिरिक्त वृद्धि से अप्रतिस्पर्धी हो जाएंगे
झींगा जो अमेरिका का एक प्रमुख निर्यात है, अमेरिकी शुल्क लागू होने के कारण काफी कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा. कोलकाता स्थित समुद्री खाद्य निर्यातक एवं मेगा मोडा के प्रबंध निदेशक योगेश गुप्ता ने कहा, ‘अमेरिका में हमारे निर्यात पर पहले से ही डंपिंग रोधी और प्रतिपूरक शुल्क लागू हैं. शुल्कों में अतिरिक्त वृद्धि से हम अप्रतिस्पर्धी हो जाएंगे. भारत के कुल झींगा निर्यात में से हम 40 प्रतिशत अमेरिका को निर्यात करते हैं.’ उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका प्रतिस्पर्धी देशों इक्वाडोर और इंडोनेशिया पर भी इसी तरह का शुल्क लगाए तो भारतीय निर्यातकों को कुछ राहत मिल सकती है.
चीनी और कोको निर्यात अंतर 24.99 प्रतिशत
भारत के प्रसंस्कृत खाद्य, चीनी और कोको निर्यात पर भी असर पड़ सकता है क्योंकि शुल्क अंतर 24.99 प्रतिशत है. पिछले साल इसका निर्यात 1.03 अरब अमेरिकी डॉलर था. इसी प्रकार, अनाज, सब्जियां, फल तथा मसालों (1.91 अरब अमेरिकी डॉलर निर्यात) के बीच शुल्क अंतर 5.72 प्रतिशत है. जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि 18.149 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के दुग्ध उत्पादों के निर्यात पर 38.23 प्रतिशत के अंतर का ‘गंभीर’ असर पड़ सकता है, जिससे घी, मक्खन और दूध पाउडर महंगे हो जाएंगे और अमेरिका में उनकी बाजार हिस्सेदारी कम हो जाएगी.
कई सेक्टर पर पड़ सकता है असर
औद्योगिक वस्तुओं के क्षेत्र में अमेरिकी शुल्कों से औषधि, आभूषण और इलेक्ट्रॉनिक सहित कई क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं. भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक निर्यातक औषधि क्षेत्र, जो 2024 में 12.72 अरब अमेरिकी डॉलर का था, उसे 10.90 प्रतिशत शुल्क अंतर का सामना करना पड़ेगा. इससे जेनेरिक दवाओं और विशेष दवाओं की लागत बढ़ेगी. 11.88 अरब अमेरिकी डॉलर के निर्यात वाले हीरे, सोने व चांदी पर 13.32 प्रतिशत शुल्क वृद्धि हो सकती है, जिससे आभूषणों की कीमतें बढ़ेंगी व प्रतिस्पर्धा कम होगी. इसी तरह, 14.39 अरब अमेरिकी डॉलर के इलेक्ट्रिकल, दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक निर्यात पर 7.24 प्रतिशत शुल्क है.
जीटीआरआई के अनुसार, मशीनरी, बॉयलर, टर्बाइन व कंप्यूटर (जिनका निर्यात मूल्य 7.10 अरब अमेरिकी डॉलर है) पर 5.29 प्रतिशत शुल्क वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत के इंजीनियरिंग निर्यात पर असर पड़ेगा. टायर तथा बेल्ट सहित रबर उत्पादों (जिनकी कीमत 1.06 अरब अमेरिकी डॉलर है) पर 7.76 प्रतिशत शुल्क लग सकता है, जबकि कागज व लकड़ी के सामान (96.965 करोड़ अमेरिकी डॉलर) पर 7.87 प्रतिशत शुल्क लग सकता है.