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FPI Investment: अमेरिका-जापान और चीन नहीं... बल्कि भारत में हुआ ऐसा कारनाम, बन गया इतिहास

Foreign portfolio investors: विदेशी निवेशकों की लगातार खरीदारी के साथ ही कई फैक्टर्स की वजह से बाजार ने इस बार कई नए रिकॉर्ड बनाए. विदेशी निवेशकों ने वित्त वर्ष 2023-24 में शेयर मार्केट में 2 लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश किया.   

 FPI Investment: अमेरिका-जापान और चीन नहीं... बल्कि भारत में हुआ ऐसा कारनाम, बन गया इतिहास
Shivani Sharma|Updated: Mar 29, 2024, 06:34 PM IST
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FPI inflows: 1 अप्रैल से नया वित्त वर्ष शुरू होने वाला है. इस वित्त वर्ष में शेयर बाजार (Share Market) ने निवेशकों को बंपर रिटर्न दिया है. विदेशी निवेशकों की लगातार खरीदारी के साथ ही कई फैक्टर्स की वजह से बाजार ने इस बार कई नए रिकॉर्ड बनाए. चुनौतियों से भरे ग्लोबल मार्केट के बीच में विदेशी निवेशकों ने वित्त वर्ष 2023-24 में शेयर मार्केट में 2 लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश किया. 

मजार्स इन इंडिया के मैनेजिंग पार्टनर भारत धवन ने कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भी अच्छे संकेत देखने को मिल रहे हैं. प्रोग्रेसिव पॉलिसी रिफॉर्म्स, इकोनॉमिक स्टेबिलिटी और आकर्षक निवेश के चलते एफपीआई का अच्छा इंफ्ले जारी रहने की उम्मीद है. उन्होंने कहा है कि हम ग्लोबल भू-राजनीतिक प्रभाव को लेकर सचेत हैं, जिनके चलते बीच-बीच में अस्थिरता आ सकती है, लेकिन हम बाजार के उतार-चढ़ाव से निपटने में रणनीतिक योजना और तत्परता के महत्व पर जोर देते हैं.

अच्छा रहेगा 2024-25

विंडमिल कैपिटल के स्मॉलकेस मैनेजर और सीनियर डायरेक्टर नवीन केआर ने कहा कि एफपीआई के नजरिये से 2024-25 की संभावनाएं मजबूत बनी हुई हैं. 

1.2 लाख करोड़ का निवेश

डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष 2023-24 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय इक्विटी बाजारों में लगभग 2.08 लाख करोड़ रुपये और लोन या बॉन्ड बाजार में 1.2 लाख करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया है. 

उन्होंने कुल मिलाकर कैपिटल मार्केट में 3.4 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया. पिछले दो वित्त वर्षों में शेयरों से शुद्ध निकासी के बाद यह जोरदार वापसी देखने को मिली है. 

2022-23 में निकाले 37,632 करोड़ 

वित्त वर्ष 2022-23 में एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार से शुद्ध रूप से 37,632 करोड़ रुपये निकाले थे. 

एक्सपर्ट का क्या है मानना?

मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक - शोध प्रबंधक हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित बाजारों में मुद्रास्फीति और ब्याज दर की दिशा, मुद्रा की स्थिति, कच्चे तेल की कीमतों, भू-राजनीतिक परिदृश्य और घरेलू इकोनॉमी की मजबूती जैसे कारकों से एफपीआई प्रवाह पॉजिटिव रहा. 

उन्होंने कहा कि ग्लोबल आर्थिक उथल-पुथल के बीच भारत की अर्थव्यवस्था अधिक मजबूत और स्थिर रही, जिससे विदेशी निवेशक आकर्षित हुए.

इनपुट - भाषा एजेंसी के साथ 

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