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ट्रंप को अर्थशास्त्र पढ़ने की जरूरत...अपने ही टैरिफ से अपनों पर वार कर रहे Mr.प्रेसिडेंट, अमेरिका के पिलाएंगे 'कड़वी दवा'

 Tariff Impact on Economy: अमेरिका जेनेरिक दवाओं के लिए भारत पर निर्भर है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डेटा के मुताबिक यूएस में इस्तेमाल होने वाली जेनेरिक दवाओं की भारत की हिस्सेदारी 40% तक की है. 

 ट्रंप को अर्थशास्त्र पढ़ने की जरूरत...अपने ही टैरिफ से अपनों पर वार कर रहे Mr.प्रेसिडेंट, अमेरिका के पिलाएंगे 'कड़वी दवा'
Bavita Jha |Updated: Aug 05, 2025, 10:26 PM IST
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Donald Trump on Pharma: अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ पर जिस तरह की बौखलाहट दिखाते हुए फैसले ले रहे हैं, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि उन्हें अभी अर्थशास्त्र को समझने की जरूरत है. जिस तरह से टैरिफ पर उनके फैसले सामने आ रहे हैं, उससे साफ दिख रहा है कि वो इकोनॉमी तो समझने में नाकामयाब है. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि देश की इकोनॉमी कैसे चलती है ?  बार-बार उन्हें अर्थशास्त्रियों की ओर से समझाने की कोशिश की जा रही है कि टैरिफ वो सेल्स टैक्स है, जिसकी भरपाई आखिरकार अमेरिकी जनता को ही करना है, लेकिन ट्रंप तो ट्रंप है, जो राष्ट्रपति से ज्यादा एक बिजनेस लीडर के तौर पर काम करते दिख रहे हैं.  जिन्हें फिलहाल तात्कालिक मुनाफा दिख रहा है. भारत से फार्मा आयात पर ट्रंप ने 250 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी देना भी ट्रंप की इकोनॉमी को लेकर अल्प ज्ञान का नतीजा है.  भारत की फार्मा कंपनियों की सप्लाई पर अमेरिकियों का इलाज निर्भर है. खासकर जेनरिक दवाओं के लिए अमेरिका भारत पर निर्भर है, इसे समझते हुए भी उन्होंने 250 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी है. अगर इसके दूसरे पहलू को देखें तो ये धमकी भारत की फार्मा कंपनियों या भारत के निर्यात के लिए नहीं बल्कि खुद अमेरिका के नागरिकों के लिए है.  भारत का झींगा, कनाडा का टमाटर, थाईलैंड के चावल... अपना कुछ नहीं विदेशी पकवानों से सजी है ट्रंप की थाली, ऐसा ही रहा रवैया तो भूख से कुलबुलाएगा अमेरिका

 

भारत की फार्मा कंपनियों पर अमेरिका कितना टैरिफ वसूलता है 

 CNBC के साथ इंटरव्यू के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा वो फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स पहले छोटा और फिर उसे  एक से डेढ़ साल में बढ़ाकर 150% और फिर 250% कर देंगे.  उन्होंने ये भी कहा कि वो अमेरिका में ही दवाएं बनाना चाहते हैं. ट्रंप ने दलील दी कि अमेरिका फार्मा प्रोडक्ट्स के लिए बहुत ज्यादा विदेशी देशों पर निर्भर है, खासकर भारत और चीन पर. ट्रंप दावे तो बड़े-बड़े कर रहे हैं, लेकिन वो दावे हकीकत से काफी दूर है. ट्रंप हर चीन अमेरिका में बनाना चाहते हैं, लेकिन फिलहाल वो कर पाना संभव नहीं है.  भारत के नक्शेकदम पर चला चीन, तेल पर डोनाल्ड ट्रंप को दिखाया ठेंगा, कहा रूस-ईरान से तेल की खरीदारी जारी रहेगी

 

भारत से कितनी दवाएं खरीदता है अमेरिका ?  

अमेरिका दवाओं के लिए इंपोर्ट पर निर्भर है. अमेरिका भारत से जेनेरिक दवाइयां, वैक्सीन और एक्टिव इंग्रेडिएंट्स खरीदता है. FY24 में अमेरिका ने भारत से  8.7 अरब डॉलर यानी 76,113 करोड़ रुपये की दवाएं खरीदी, जो कि अमेरिका के साथ भारत के कुल निर्यात का 11 फीसदी है.  अमेरिका जेनेरिक दवाओं के लिए भारत पर निर्भर है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डेटा के मुताबिक यूएस में इस्तेमाल होने वाली जेनेरिक दवाओं की भारत की हिस्सेदारी 40% तक की है.  भारत के अलावा अमेरिका आयरलैंड, जर्मनी, स्विट्जरलैंड और चीन से फार्मा प्रोडक्ट्स और मेडिसीन खरीदता है.  अमेरिका को सप्लाई करने वाली भारत की कंपनियों में सन फार्मा, रॉ रेड्डीज, सिप्ला, ल्यूपिन लिमिटेड और अरोबिंदो फार्मा प्रमुख है. जाहिर सी बात है टैरिफ बढ़ने से इन कंपनियों को नुकसान होगा. निर्यात प्रभावित होगा. दवाओं की कीमत बढ़ने से ग्राहक प्रभावित हो सकते हैं, सेल्स घट सकती है.  व्हाइट हाउस से नहीं चल सकती भारत की इकोनॉमी...मार्च की शर्तों पर होगी अमेरिका से ट्रेड डील, रूसी तेल पर भारत का रुख साफ

 

जेनरिक दवाएं बनाने में भारत का दबदबा

जेनरिक दवाओं में भारत नंबर 1 पर है. हर साल हम दुनिया की 40 फीसदी जेनरिक दवाएं का प्रोडक्शन करते हैं. भारत इन  दवाओं के निर्यात में दूसरे नंबर पर है और सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट अमेरिका को ही करता है.  अमेरिका के अलावा दुनिया के 200 देशों में भारतीय दवाएं बेची जाती है. भारत के पास निर्यात के विकल्प पैदा हो सकते हैं, लेकिन ट्रंप के लिए इतनी जल्दी नया उत्पादक खोजना या खुद बनाना आसान नहीं है. 

टैरिफ बढ़ने से अमेरिका में बढ़ेगी महंगाई, दवाएं महंगी होगी 

अमेरिका में ज्यादातर सस्ती जेनेरिक दवाएं भारत और चीन से आती हैं. टैरिफ बढ़ेगा तो कंपनियां उसकी भरपाई के लिए दवाओं की कीमत बढ़ाएगी. लोगों के पास महंगी दवाओं को खरीदने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचेगा. यानी भरपाई मरीजों को करना होगा. भारत से अमेरिका भेजी जाने वाली दवाओं में एंटीबायोटिक्स, एंटीडिप्रेसेंट्स और हृदय रोग की दवाएं होती हैं. भारत की जेनरिक दवाएं सस्ती होती है, अमेरिका हर साल इन सस्ती दवाओं को खरीदकर अरों डॉलर की बचत करता है, लेकिन टैरिफ बढ़ने के बाद सीन बदल जाएगा.  

भारत की दवाओं पर टिका अमेरिका 

डोनाल्ड ट्रंप अगर भारत के फार्मास्यूटिकल्स के निर्यात पर टैरिफ लगाते हैं, तो इससे ना सिर्फ अमेरिका में दवाएं महंगी होंगी बल्कि अमेरिका में भारतीय दवाओं की भारी कमी भी हो सकती है. अगर सिर्फ भारत की सबसे बड़ी दवा निर्माता कंपनी सन फार्मा की बात करें तो हर साल वो अमेरिका को 1 डॉलर से 5 डॉलर के बीच दवाएं बेचती है . अगर अमेरिका ने टैरिफ लगाया तो दवाएं महंगी होगी. टैरिफ बढ़ जाने से मैन्युफैक्चरर्स पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. कंपनियां अमेरिका से दूरी बना सकती है. अमेरिका में भारतीय जेनरिक दवाओं की भारी डिमांड है. टैरिफ बढ़ा तो अमेरिका में उसकी किल्लत हो सकती है.  

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