India GDP Growth: फाइनेंशिलय ईयर 2026 में भारत की जीडीपी 6.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है, जबकि सीपीआई महंगाई औसतन 4.0 प्रतिशत के आसपास रहेगी. एक लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार आरबीआई (RBI) की दरों में कटौती की उम्मीद नहीं है, जब तक कि विकास के लिए कोई निगेटिव रिस्क न हो. एक रिपोर्ट के अनुसार चालू खाता घाटा (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) वित्त वर्ष 2025 में 1.0 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2026 में 0.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि राजकोषीय घाटा 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
आरबीआई का महंगाई कम करने पर फोकस
रिपोर्ट में कहा गया 'वित्त वर्ष 2026 के अंत तक 10 ईयर जी-सेक यील्ड 6.0 प्रतिशत-6.2 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है और वित्त वर्ष 2026 के अंत तक यूएसडी-आईएनआर एक्सचेंज रेट 85 और 87 के बीच कारोबार करने का अनुमान है.' हाल ही में एमपीसी में, आरबीआई ने महंगाई संबंधी चिंताओं को कम करने के बीच विकास को प्राथमिकता देने का संकेत दिया. एक महत्वपूर्ण लिक्विडिटी उपाय में, आरबीआई ने सितंबर से शुरू होने वाले चरणबद्ध 100 बीपीएस सीआरआर कटौती की भी घोषणा की, जिससे दिसंबर 2025 तक सिस्टम में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए की ड्यूरेबल लिक्विडिटी आने की उम्मीद है.
क्रूड ऑयल का क्या रहेगा हाल?
फाइनेंशिलय ईयर 2026 के लिए आरबीआई ने अपने जीडीपी विकास पूर्वानुमान को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा, जबकि सीपीआई मुद्रास्फीति अनुमान को 4.0 प्रतिशत से घटाकर 3.7 प्रतिशत कर दिया. इस बीच, मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के बीच जून में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से उछाल आया, जो जनवरी 2025 के बाद से उच्चतम स्तर - 79 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया, इससे पहले तनाव कम होने पर 14 प्रतिशत की गिरावट आई. फाइनेंशिलय ईयर 2026 में ब्रेंट का औसत 65-70 डॉलर प्रति बैरल रहेगा, बशर्ते कि तनाव में और वृद्धि न हो. ये स्तर भारत के विकास, मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटे, चालू खाता घाटा या रुपए के लिए उनके वित्त वर्ष 2026 के पूर्वानुमानों में बदलाव की गारंटी नहीं देते.
रिपोर्ट में कहा गया है, 'फिर भी, मध्य पूर्व में संघर्ष एक महत्वपूर्ण निगरानी योग्य मुद्दा बना हुआ है, खासकर इसलिए क्योंकि होर्मुज जलडमरूमध्य वैश्विक समुद्री तेल व्यापार का एक चौथाई से अधिक हिस्सा है." देश की विविध क्रूड ऑयल इंपोर्ट बास्केट भी कुछ बफर प्रदान करती है. आयातित मात्रा के आधार पर, भारत के पीओएल (पेट्रोलियम, ऑयल एंड लुब्रिकेंट्स) आयात में ईरान की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 25 में घटकर केवल 0.1 प्रतिशत रह गई, जो कि वित्त वर्ष 15 में 5.2 प्रतिशत थी. जबकि मध्य पूर्व एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, पिछले दशक में इसकी हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से घटकर 50 प्रतिशत रह गई है. इसके अलावा रूस जैसे अन्य देशों से आयात वित्त वर्ष 2015 में मात्र 0.2 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 28.5 प्रतिशत हो गया. (IANS)