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ऑल टाइम लो हुई भारत की करेंसी, डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 85 के पार, आपकी जेब पर क्या होगा असर?

USD to INR: विदेशी पूंजी की निकासी और घरेलू शेयर बाजारों में नरमी के रुख के बीच निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई और रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 85.08 प्रति डॉलर (अस्थायी) के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ

ऑल टाइम लो हुई भारत की करेंसी, डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 85 के पार, आपकी जेब पर क्या होगा असर?
Sudeep Kumar|Updated: Dec 19, 2024, 07:06 PM IST
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Rupee vs Dollar Today: अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया गुरुवार को 14 पैसे टूटकर 85 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया और कारोबार के अंत में 85.08 (अस्थायी) प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ. विदेशी मुद्रा कारोबारियों के मुताबिक, रुपया पहली बार 85 के स्तर को पार कर अपने नए सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया. 

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के 2025 के लिए अपने अनुमानों को समायोजित करने से भारतीय रुपये सहित उभरते बाजार की मुद्राओं पर दबाव पड़ा. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अनुमान के मुताबिक प्रमुख ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर इसे 4.5 प्रतिशत कर दिया है. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया कमजोर रुख के साथ खुला और डॉलर के मुकाबले 85 के स्तर के पार चला गया. 

रुपया सर्वकालिक निचले स्तर पर

आयातकों की ओर से डॉलर की मांग, विदेशी पूंजी की निकासी और घरेलू शेयर बाजारों में नरमी के रुख के बीच निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई और रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 85.08 प्रति डॉलर (अस्थायी) के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ जो पिछले बंद भाव से 14 पैसे की गिरावट है. रुपया बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84.94 पर बंद हुआ था. 

इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.13 प्रतिशत की गिरावट के साथ 107.88 पर रहा. अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड 0.05 प्रतिशत की गिरावट के साथ 73.35 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर रहा. शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) बुधवार को बिकवाल रहे और उन्होंने शुद्ध रूप से 1,316.81 करोड़ रुपये के शेयर बेचे. 

आपकी जेब पर क्या होगा असर

रुपये की गिरावट से इंपोर्टेड सामान महंगा हो जाता है. चाहे वह सीधे खरीदे गए प्रोडक्ट्स हों या किसी वस्तु के निर्माण में लगने वाले कच्चे माल और पुर्जे, सभी की लागत बढ़ जाती है. उदाहरण के तौर पर, एक साल पहले $100 के प्रोडक्ट की कीमत 8,300 रुपये थी, जो अब 8,500 रुपये हो गई है. यह बढ़ती लागत आपके खर्चों से लेकर निवेश तक हर क्षेत्र पर असर डालती है.

डॉलर महंगा होने से कच्चे तेल की कीमत भी बढ़ सकती है. तेल महंगा होने पर ट्रांसपोर्टेशन की लागत बढ़ जाती है, जिससे रोजमर्रा की जरूरतों के दाम भी चढ़ सकते हैं. इस तरह रुपये की कमजोरी आपके घरेलू बजट को और अधिक दबाव में ला सकती है.

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