बीते महीने अहमदाबाद हवाई हादसे के बाद लाखों लोगों में हवाई जहाज से यात्रा का डर सताने लगा है, लेकिन अब भारतीय रेलवे आपके लिए एक सुखद ऑप्शन लेकर आया है. अगर आप सुरक्षित यात्रा की तलाश में हैं, तो ट्रेन पकड़ लीजिए, क्योंकि रेलवे ने रेल हादसों को रोकने के लिए एक क्रांतिकारी तकनीक पेश की है. डायरेक्ट ड्राइव इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (DDEI) सिस्टम की सफल पायलट प्रोजेक्ट ने न सिर्फ इंसानी गलती को कम किया है, बल्कि रेल यात्रा को और सुरक्षित बनाया है. यह सिस्टम बालोसर हादसे (जिसमें 250 से ज्यादा लोगों ने जान गवाईं) जैसे कई हादसों की दोहराव को रोकने में कारगर साबित हो सकता है. आइए, जानते हैं इस तकनीक के बारे में.
रेलवे ने डीडीईआई सिस्टम की पायलट प्रोजेक्ट को 2023-24 में शुरू किया था और अब जम्मू तथा ताजपुर (मध्य प्रदेश) सहित तीन स्टेशनों पर इसका सफल परीक्षण पूरा हो चुका है. यह सिस्टम भविष्य में पूरे रेल नेटवर्क में लागू होगा. पारंपरिक सिस्टम में मैकेनिकल लिंकेज और रिले-आधारित इंटरलॉकिंग पर निर्भरता थी, लेकिन डीडीईआई सीधे इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेंट्स और सॉफ्टवेयर के जरिए पॉइंट्स (ट्रैक स्विच) और सिग्नल को कंट्रोल करता है. इससे इंसान के हस्तक्षेप 70% तक कम हो गया है, जो ऑपरेशनल गलतियों को कम करता है.
सुरक्षा का नया स्तर
यह सिस्टम यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेन आगे बढ़ने से पहले सभी स्विच सही ढंग से एक सीध में हों, ट्रैक पर कोई रुकावट न हो और लेवल क्रॉसिंग गेट सुरक्षित बंद हों. साथ ही, एक समय में केवल एक रास्ता खुलता है, जिससे टकराव की संभावना खत्म हो जाती है. रेलवे अधिकारी ने कहा कि परिणाम अच्छे हैं और अब इसे व्यापक रूप से लागू किया जा सकता है.
लागत और रखरखाव में कमी
डीडीईआई में ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) का इस्तेमाल पारंपरिक तांबे के तारों की जरूरत को 60-70% तक कम करता है, जो लाइटनिंग से सुरक्षा प्रदान करता है. रिले की संख्या में भी 70% की कटौती हुई है, जिससे रखरखाव लागत घटती है और खराबी का पता लगाना आसान हो गया है. एक अधिकारी ने बताया कि यह सिस्टम रियल टाइम में गियर पोजिशन का पता लगाता है, जिससे हादसों का खतरा और कम होता है.