भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में सबसे चर्चित विवादों में से एक माने जा रहे जेन स्ट्रीट केस में बड़ा मोड़ आया है. सोमवार को मार्केट रेगुलेटर SEBI ने जेन स्ट्रीट ग्रुप पर लगाए गए कई बड़े प्रतिबंध हटा दिए हैं, जिससे उसे एक बार फिर डेरिवेटिव ट्रेडिंग सहित सिक्योरिटीज मार्केट में हिस्सेदारी की अनुमति मिल गई है. यह फैसला ऐसे समय आया है जब कंपनी पर ₹4,843.57 करोड़ की कथित हेरफेर का आरोप है, जिसे लेकर बाजार में काफी हलचल रही है.
SEBI ने अपने ताजा बयान में कहा कि जेन स्ट्रीट ने पूरी राशि एक एस्क्रो अकाउंट में जमा कर दी है और नियमों के पालन का वचन दिया है. इसके बदले में उसे अंतरिम आदेश के तहत दी गई कई रियायतें दी गई हैं, जिनमें बैंक खातों पर रोक हटाना, सिक्योरिटीज बाजार तक दोबारा पहुंच और एसेट ट्रांसफर की इजाजत शामिल है.
क्या है मामला और क्यों मचा था बवाल?
SEBI की शुरुआती जांच में जेन स्ट्रीट पर जनवरी 2023 से मई 2025 के बीच भारतीय इक्विटी इंडेक्स निफ्टी और बैंक निफ्टी में हेरफेर करने का आरोप है. आरोप था कि कंपनी ने कुछ पैटर्न के जरिये अनुचित मुनाफा कमाया, जो कुल ₹4,843.5 करोड़ तक पहुंचा. इसी के बाद SEBI ने कंपनी की सभी मार्केट एक्टिविटीज पर रोक लगा दी थी.
फिर से मिली मंजूरी, लेकिन शर्तों के साथ
हालांकि अब SEBI ने कंपनी को बाजार में दोबारा कदम रखने की इजाजत दी है, लेकिन कुछ सख्त शर्तों के साथ. जेन स्ट्रीट को किसी भी धोखाधड़ी, हेरफेर या अनुचित ट्रेडिंग एक्टिविटी से दूर रहने का आदेश दिया गया है. इसके अलावा, स्टॉक एक्सचेंजों को उसकी हर एक्टिविटी पर कड़ी नजर रखने को कहा गया है.
SEBI पर उठे सवाल
इस फैसले से जहां बाजार में हलचल है, वहीं SEBI की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. क्या कंपनी का इतना बड़ा सेटेलमेंट ही वजह बना राहत देने का? क्या इतनी बड़ी हेरफेर की रकम जमा करने से कोई भी संस्था खुद को क्लीन चिट दिला सकती है? हालांकि SEBI ने स्पष्ट किया है कि यह राहत अंतरिम है और जांच अब भी जारी है. लेकिन जेन स्ट्रीट की तेज वापसी ने एक बार फिर रेगुलेटरी सिस्टम की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर बहस छेड़ दी है.