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आजादी पर फ्री बांटे गए थे ज‍िस बोरोलीन के एक लाख ट्यूब... जानिए उसकी खुशबू की कहानी

Boroline History: बोरोलीन एंटीसेप्टिक क्रीम को यूज करने वाले लाखों कस्टमर्स का इस क्रीम पर भरोसा 96 साल बाद भी कायम है. बोरोलीन से जुड़ा रोचक इत‍िहास यह है क‍ि जब 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली तो कंपनी ने बोरोलीन के करीब एक लाख ट्यूब मुफ्त में बांटे थे. 

आजादी पर फ्री बांटे गए थे ज‍िस बोरोलीन के एक लाख ट्यूब... जानिए उसकी खुशबू की कहानी
Kriyanshu Saraswat|Updated: Aug 02, 2025, 06:21 AM IST
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Boroline interesting facts: 'खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम बोरोलीन...' 90 के दशक में टीवी पर चर्च‍ित इस जिंगल के बारे में शायद आपको भी याद हो. जी हां, आपने सही समझा वहीं बोरोलीन... जो स्‍क‍िन से जुड़ी क‍िसी भी प्रॉब्‍लम का चमत्कार‍िक इलाज है. प‍िछले द‍िनों बोरोलीन ट्रेडमार्क को लेकर चर्चा में आई थी. उस समय द‍िल्‍ली हाई कोर्ट की तरफ से बोरोलीन बनाने वाली कंपनी जीडी फार्मास्यूटिकल्स के पक्ष में फैसला सुनाया गया था. बोरोलीन एंटीसेप्टिक क्रीम को यूज करने वाले लाखों कस्टमर्स का इस क्रीम पर भरोसा 96 साल बाद भी कायम है. बोरोलीन से जुड़ा रोचक इत‍िहास यह है क‍ि जब 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली तो कंपनी ने बोरोलीन के करीब एक लाख ट्यूब मुफ्त में बांटे थे.

1929 में शुरू की गई यह क्रीम

कटने, फटने, जलने, सूजन से लेकर सर्दी के मौसम में ड्राई स्किन की समस्या का करीब एक सदी से एक ही जवाब बोरोलिन रहा है.  इत‍िहास की बात करें तो बोरोलिन क्रीम देश के अच्छे से बुरे दौर की गवाह रही है. आइए आज बात करते हैं, बोरोलिन की शुरुआत की कहानी को लेकर. करीब 96 साल पहले 1929 में गौर मोहन दत्ता ने इस क्रीम को शुरू क‍िया था. उस समय भारत पर ब्रिटिश राज था और बंगाल विभाजित हो चुका था. बंगाल में बोरोलिन न केवल एक भरोसेमंद स्वदेशी एंटीसेप्टिक क्रीम के रूप में उभरी, बल्कि देश की आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी बनी.

आज भी बना हुआ है भरोसेमंद प्रोडक्ट
आज तक यह स्वदेशी प्रोडक्ट्स में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला और भरोसेमंद प्रोडक्ट बना हुआ है. 1929 में, दत्ता की जीडी फार्मास्युटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड ने क्रीम को बनाना शुरू क‍िया. उन्‍होंने इस क्रीम को हरे रंग की ट्यूब में पैक किया. इसे न केवल रोज इस्तेमाल की जाने वाली स्किन केयर और मेडिकल प्रोडक्ट के रूप में देखा गया, बल्कि विदेशी प्रोडक्ट्स के खिलाफ एक खुले विरोध के रूप में भी देखा गया. तब के समय में भारतीय, अंग्रेजों द्वारा निर्मित प्रोडक्ट्स पर निर्भर हुआ करते थे. अंग्रेज अपने प्रोडक्ट ऊंची कीमत पर बेचते थे.

स्किनकेयर प्रोडक्ट की रेस में आगे
चौंकाने वाली बात यह है कि यह क्रीम समय उलटफेर के साथ कहीं आगे निकल गई और स्किनकेयर प्रोडक्ट की रेस में आजाद भारत में भी एक भरोसेमंद स्वदेशी प्रोडक्ट बनी हुई है. अपनी ड्राई या पिंपल वाली स्किन पर इस क्रीम का इस्तेमाल करने वाले युवाओं से लेकर मां और दादी-नानी ने भी हमेशा इस क्रीम को घर के सदस्य की तरह माना है. पश्‍च‍िम बंगाल में जन्मी, 'एंटीसेप्टिक आयुर्वेदिक क्रीम' अनिवार्य रूप से बोरिक एसिड (टंकन आंवला), जिंक ऑक्साइड (जसद भस्म), इत्र, पैराफिन और ओलियम (आवश्यक तेलों के लिए लैटिन शब्द) से बनी है.

इस क्रीम की खासियत यह भी है कि पहले की ब्रिटिश कंपनियां और न ही आज की मल्टीनेशनल कंपनियां इसकी लोकप्रियता को हरा नहीं पाई हैं. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि भारतीय मॉडल पर स्थापित कंपनी जीडी फार्मास्युटिकल्स पिछले 96 साल में सरकार की एक रुपये का कर्जदार नहीं रही.

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