Onion Price in India: मंडी में जहां प्याज 8 रुपये प्रति किलो में बिक रहा है, वहीं ग्राहकों को इसे 50 रुपये प्रति किलो में खरीदना पड़ रहा है. इस अंतर का सबसे ज्यादा खामियाजा किसानों और आम जनता को उठाना पड़ रहा है. किसानों को उनकी मेहनत का उचित दाम नहीं मिल रहा, जबकि ग्राहक महंगी प्याज खरीदने को मजबूर हैं.
महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पावर ने गुरुवार को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर प्याज के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क हटाने और इसके उत्पादकों को राहत देने का आग्रह किया है. पवार ने कहा है कि प्याज के बड़े स्टॉक के आने के कारण, किसान अब संकट में हैं क्योंकि उन्हें अपनी उपज बहुत कम दर पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, उन्हें अभी तक कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिला है.
हाल ही में महाराष्ट्र के लासलगांव मंडी में किसानों ने अपनी नाराजगी जताते हुए प्याज की नीलामी रोक दी. उनका कहना है कि थोक बाजार में कीमतें गिर गई हैं, लेकिन खुदरा बाजार में कोई कमी नहीं हुई है. ऐसे में प्याज के दामों में इतना ज्यादा अंतर होने पर सवाल उठ रहे हैं.
कहां होता है खेल?
इस खेल की शुरुआत होती है खुदरा बाजार से. थोक में कीमतें घटने के बावजूद खुदरा बाजार में इसका दाम नहीं कम किया गया. प्याज की कीमतें तय करने में मंडी की नीलामी प्रक्रिया और थोक व्यापारियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. ज्यादातर प्याज मंडियों में इसकी बिक्री नीलामी के जरिए होती है. किसान अपनी उपज मंडी में लाते हैं और नीलामी के जरिए व्यापारी इसे खरीदते हैं.
हर कोई देखता है अपना मुनाफा
नीलामी में कीमतें डिमांड और सप्लाई के आधार पर तय होती हैं. थोक व्यापारी प्याज को बड़े पैमाने पर खरीदकर छोटे व्यापारियों को बेचते हैं, जो बदले में इसे स्थानीय बाजारों या खुदरा विक्रेताओं तक पहुंचाते हैं. इस प्रक्रिया में हर स्तर पर कीमत में इजाफा होता है. हर कोई अपना मुनाफा देखता है. खुदरा विक्रेता, जो अंततः ग्राहकों को प्याज बेचते हैं, अपनी लागत और मुनाफा जोड़कर कीमतों को और बढ़ा देते हैं.
इस पूरी प्रक्रिया में किसानों और ग्राहकों के बीच सबसे ज्यादा फायदा मिडिलमैन को हो रहा है. जब तक कीमतों में पारदर्शिता नहीं आएगी और मंडी से रिटेल तक की प्रक्रिया को व्यवस्थित नहीं किया जाएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी.