RBI Repo Rate Cut News: पिछले छह महीने के दौरान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) रेपो रेट को 100 बेसिस प्वाइंट तक कम कर चुका है. इसके बाद रेपो रेट घटकर 5.5 प्रतिशत पर आ गया है. इसका फायदा ग्राहकों को होम लोन और कार लोन की ब्याज दर पर मिल रहा है. पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों ने लोन पर ब्याज घटाने के साथ ही एफडी पर भी 20 से 100 बेसिस प्वाइंट तक की ब्याज में कटौती की है. जून के बाद अब अगस्त में होने वाली आरबीआई की एमपीसी (MPC) में भी रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट (0.25%) की कटौती की जा सकती है. ऐसा हुआ तो रेपो रेट घटकर 5.25% पर आ जाएगा.
रेपो रेट में और कटौती की उम्मीद?
इस बारे में जानकारी आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) की रिपोर्ट दी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, देश में आर्थिक वृद्धि की स्थिति मिली-जुली है. शहरी इलाके में मांग कमजोर है, जबकि गांवों में मांग मजबूत बनी हुई है. अमेरिका को एक्सपोर्ट में सुधार दिख रहा है, लेकिन अन्य सेक्टर में निर्यात कमजोर है. इन रुझानों और मौजूदा महंगाई दर की स्थिति को देखते हुए अगस्त में एक बार फिर रेपो रेट कटौती की जा सकती है.
महंगाई दर गिरकर कहां पहुंचेगी?
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पिछली एमपीसी मीटिंग के बाद से महंगाई उम्मीद से काफी कम रही है. फाइनेंशियल ईयर 2026 के लिए महंगाई का अनुमान 2.9% रखा गया है. यह आरबीआई के पहले के 3.7% के अनुमान से काफी नीचे है. कम महंगाई दर नीतिगत ढील देने की गुंजाइश देती है. एमपीसी की मौजूदा तटस्थ पॉलिसी का मतलब है कि फैसला पूरी तरह आर्थिक आंकड़ों पर निर्भर करेंगे.
चौथी तिमाही में दिखेगा असर!
आईसीआईसीआई की रिपोर्ट में बताया गया कि बेस इफेक्ट का असर चौथी तिमाही में देखने को मिल सकता है. वित्तीय वर्ष 2027 में महंगाई दर बढ़ सकती है. इसलिए साल के अंत में रेपो रेट में कटौती का मौका कम हो सकता है. इस कारण अगस्त में ही कटौती करना सही माना जा रहा है. ग्लोबल लेवल पर आर्थिक स्थिति अनिश्चित और अस्थिर है. मिडिल ईस्ट में पिछले महीने हुए संघर्ष के कारण तेल की कीमतों में उछाल आया.
इसके अलावा मेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरफ से 1 अगस्त से लागू किये जाने वाले नए टैरिफ का असर भी दिख रहा है. अमेरिका में जून में महंगाई दर 2.4% से बढ़कर 2.7% हो गई. अमेरिकी इकोनॉमी बेहतर प्रदर्शन कर रही है, लेकिन इसमें कुछ गिरावट का संकेत मिल रहा है. प्राइवेट सेक्टर में भर्तियां कम हो रही हैं और खुदरा बिक्री में गिरावट आई है. यही कारण है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दर में कटौती से बच रहा है.