Longest Cable Stayed Bridge: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार सुबह बेट द्वारका मंदिर में पहुंचकर पूजा-अर्चना की. इस दौरान उन्होंने अरब सागर पर बने देश के सबसे लंबे केबल-स्टे ब्रिज 'सुदर्शन सेतु' (Sudarshan Setu) का उद्घाटन किया. 2.32 लंबे इस पुल को 980 करोड़ की लागत से तैयार किया गया है. यह केबल पुल ओखा मुख्य भूमि को बेट द्वारका द्वीप से जोड़ता है. पुराने और नए द्वारका को जोड़ने वाले इस पुल की शिलान्यास पीएम मोदी ने साल 2017 में किया था. इससे पहले इसे 2016 में मंजूरी दी गई थी.
900 मीटर लंबा केबल-स्टे सेक्शन
इस पुल को ओखा-बेट द्वारका सिग्नेचर ब्रिज भी कहा जाता है. ब्रिज की कुल लंबाई 4,772 मीटर है, जिसमें 900 मीटर लंबा केबल-स्टे सेक्शन भी शामिल है, जो कि 32 पिलर पर टिका हुआ है. पुल के शुरू होने से इस क्षेत्र में आवागमन के आसान होने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इसके साथ ही देश के सबसे लंबे केबल-स्टे ब्रिज का रिकॉर्ड 'सुदर्शन सेतु' के नाम हो गया है. सुदर्शन सेतु का फायदा लक्षद्वीप पर रहने वाले लोगों को भी मिलेगा. इस पुल से द्वारका और लक्षद्वीप के बीच यात्रा के समय को कम कर देगा. पुल के निर्माण और संचालन से लक्षद्वीप में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.
पुल का कंस्ट्रक्शन करने वाली कंपनी
सुदर्शन सेतु समुद्र तट के किनारे गुजर रहे नेशनल हाइवे 51 का ही हिस्सा है. पुल को नेशनल हाइवे डिवीजन ने गुजरात रोड एंड बिल्डिंग डिपार्टमेंट से बनवाया है. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार पुल के कंस्ट्रक्शन की जिम्मेदारी एसपी सिंगला कंस्ट्रक्शंस प्राइवेट लिमिटेड (SP Singla Constructions Pvt Ltd) को सौंपी गई थी. सुदर्शन सेतु को स्टील और कंक्रीट से तैयार किया गया है. 4.7 किलोमीटर लंबे इस पुल का 900 मीटर का बीच का सेक्शन दो खंभों पर टिका है.
गीता के श्लोक और भगवान कृष्ण की छवियों का आनंद
चार लेन और 27.2 मीटर चौड़े सुदर्शन सेतु ब्रिज पर चलते हुए आप भगवद गीता के श्लोक और भगवान कृष्ण की छवियों का आनंद ले सकेंगे. पुल के दोनों ओर 2.5 मीटर चौड़े फुटपाथ को खासतौर पर सजाया गया है. फुटपाथ पर लगे सोलर पैनल एक मेगावाट बिजली का प्रोडक्शन करेंगे. फुटपाथ पर लोगों को पैदल चलने में सुविधा होगी. सुदर्शन सेतु का मुख्य उद्देश्य द्वारका जाने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए यात्रा समय को कम करना है. पहले द्वारका के पवित्र द्वीप बेट द्वारका तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को नाव से जाना पड़ता था. यह आर्थिक विकास में भी मदद करेगा.