एक ओर है अमेरिका का आर्थिक दबाव और दूसरी ओर है रूस का सस्ता तेल, भारत इन दोनों के बीच उस तलवार की धार पर चल रहा है, जहां हर कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 25% टैरिफ और एक्स्ट्रा पेनाल्टी की धमकी ने भारत को रूस से सस्ते तेल के कारोबार से दूरी बनाने के लिए मजबूर करने की कोशिश की है, लेकिन यह कदम आसान नहीं है. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल इम्पोर्टर भारत 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद ग्लोबल एनर्जी मार्केट में बड़ी चालबाजी से रूस से तेल खरीदने लगा. पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद जब दुनिया रूस से दूरी बना रही थी, तब भारत ने रणनीतिक रूप से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदना शुरू किया और यही फैसला आज भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती बन गया है.
कितना बड़ा है रूस से तेल का कारोबार?
यूक्रेन युद्ध से पहले रूस भारत के लिए तेल का बेहद छोटा 0.2% की हिस्सेदारी सोर्स था. हालांकि, फरवरी 2022 के बाद यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई. रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर बन चुका है. एक समय पर रूस की हिस्सेदारी भारत की कुल तेल आपूर्ति में 40% तक पहुंच गई थी. फिलहाल यह करीब 36% है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, जनवरी 2022 में भारत रूस से केवल 68,000 बैरल प्रतिदिन तेल खरीदता था, जबकि इराक से 1.23 मिलियन बैरल प्रतिदिन और सऊदी अरब से 883,000 बैरल प्रतिदिन आता था. लेकिन जून 2022 में रूस ने पहली बार इराक को पीछे छोड़ते हुए भारत का टॉप सप्लायर बन गया. उस महीने रूस से 1.12 मिलियन बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति हुई, वहीं इराक से 993,000 और सऊदी से 695,000 बैरल प्रतिदिन. 2023 में मई का महीना भारत-रूस तेल व्यापार का चरम बिंदु था, जब रूस से 2.15 मिलियन बैरल प्रतिदिन आपूर्ति हुई. फिलहाल औसत आपूर्ति 1.78 मिलियन बैरल प्रतिदिन है, जो कि इराक (900,000 बैरल प्रतिदिन) और सऊदी अरब (702,000 बैरल प्रतिदिन) से कहीं ज्यादा है.
भारत रूस से तेल क्यों खरीद रहा है?
रूस ने भारत समेत कई खरीदारों को भारी डिस्काउंट में कच्चा तेल बेचना शुरू किया. रूस के 'Urals' ग्रेड तेल और अंतरराष्ट्रीय 'Brent' तेल के बीच कीमत का अंतर कभी $40 प्रति बैरल तक पहुंच गया था, जो अब $3 से कम रह गया है. भारत इस सस्ते ऑप्शन को क्यों छोड़े? यही सवाल भारत की ऊर्जा नीति और विदेश नीति के बीच फंसी इस मुश्किल स्थिति का मूल है.
अमेरिका की चेतावनी का असर?
ट्रंप प्रशासन की ताजा चेतावनी भारत के लिए एक दोधारी तलवार बन चुकी है. यदि भारत रूस से दूरी बनाता है, तो उसे ऊंची कीमतों पर तेल खरीदना पड़ेगा और ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. लेकिन अगर अमेरिका ने रूस से संबंधों पर कार्रवाई की, तो भारत को ग्लोबल मंच पर आर्थिक और कूटनीतिक नुकसान हो सकता है.