The Food Safety and Standards Authority of India: भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की कंपनियों को सलाह दी है कि वे अपने खाने के पैकेट या लेबल पर '100 प्रतिशत' टर्म का इस्तेमाल न करें. अधिकारियों ने चिंता जताई है कि इससे उपभोक्ता गुमराह हो सकते हैं. सभी खाद्य व्यवसाय संचालकों (एफबीओ) को जारी सलाह में कहा गया है कि वे अपने "खाने के पैकेट, लेबल और विज्ञापन में '100 प्रतिशत' जैसे शब्दों का इस्तेमाल न करें क्योंकि ये पूरी तरह से अस्पष्ट हैं", इसलिए नियमों के हिसाब से ऐसा करने से बचना चाहिए.
देश के शीर्ष खाद्य नियामक ने कहा कि अब बहुत सारी कंपनियां अपने खाने के पैकेट और विज्ञापनों में '100 प्रतिशत' शब्दों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल कर रही हैं. FSSAI ने कहा, ''इस तरह की शब्दावली को लेकर नियमों में कोई साफ परिभाषा नहीं है. ये शब्द लोगों को गुमराह कर सकते हैं और गलत सोच पैदा कर सकते हैं कि यह चीज पूरी तरह सही या शुद्ध है, जो जरूरी नहीं होता. इसलिए ये शब्द गलतफहमी पैदा करते हैं.''
क्या है FSSAI का नियम?
खाद्य सुरक्षा के नियम (2018) के अनुसार, एफएसएस एक्ट, 2006 या उससे जुड़े नियमों में ''100 प्रतिशत" को परिभाषित नहीं किया गया है. FSSAI ने कहा कि नियमों के तहत कोई भी कंपनी अपने विज्ञापन या दावे में दूसरी कंपनियों को बुरा दिखाने वाली बातें नहीं कर सकती, और ऐसा कुछ नहीं कह सकती जिससे उपभोक्ता भ्रमित हो जाएं. जो भी दावा या जानकारी दी जाती है, वह सच होनी चाहिए, साफ और आसान समझ में आने वाली होनी चाहिए, ताकि ग्राहक सही जानकारी समझ सकें और कोई गुमराह न हो.
"100 प्रतिशत" शब्दों का इस्तेमाल, चाहे अकेले किया जाए या किसी और शब्द के साथ मिलाकर, लोगों में गलत धारणा पैदा कर सकता है कि वह चीज पूरी तरह से शुद्ध या सबसे अच्छी है, जो सही नहीं होता. एफएसएसएआई ने कहा कि ऐसा शब्द इस्तेमाल करने से लोग सोच सकते हैं कि बाजार में बाकी के खाने वाले सामान अच्छे नहीं हैं या वे नियमों का पालन नहीं करते, जिससे ग्राहकों को गलत जानकारी मिलती है.
उपभोक्ता को भ्रामक करने वाला टर्म
खाद्य नियामक निकाय ने जून 2024 में एक अधिसूचना जारी की थी कि फलों के रस बनाने वाली कंपनियां अपने पैकेट और विज्ञापन से '100 प्रतिशत फल का रस' जैसे दावे हटा दें. इससे पहले, एफएसएसएआई ने अप्रैल में दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि बड़ी कंपनी डाबर का यह कहना कि उनके फलों के पेय पदार्थ '100 प्रतिशत' फलों से बने हैं, नियमों के खिलाफ है. यह उपभोक्ता को भ्रामक करने वाला टर्म है.
(इनपुट-IANS)