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लाल सागर क्यों बना 'जंग का मैदान', समंदर के सहारे ग्लोबल इकॉनमी को हिला रहे हैं हूती विद्रोही, भारत पर भी चोट

हमास और इजरायल के बीच की जंग अब लाल सागर तक पहुंच गई है। हमास के समर्थक यमन के हूती विद्रोहियों ने लाल सागर से होकर गुजरने वाले जहाजों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। गाजा पर इजरायल के हमले के खिलाफ हूती विद्रोहियों ने लाल सागर को जंग का मैदान बना दिया है। वो उन जहाजों को निशाना बना रहे

red sea
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Bavita Jha |Updated: Dec 25, 2023, 01:48 PM IST
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नई दिल्ली: हमास और इजरायल के बीच की जंग अब लाल सागर तक पहुंच गई है। हमास के समर्थक यमन के हूती विद्रोहियों ने लाल सागर से होकर गुजरने वाले जहाजों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। गाजा पर इजरायल के हमले के खिलाफ हूती विद्रोहियों ने लाल सागर को जंग का मैदान बना दिया है। वो उन जहाजों को निशाना बना रहे हैं, जो इजरायल से किसी भी तरह से जुड़े हैं। लाल सागर में हो रहे यह हमले इसलिए अधिक चिंताजनक हैं क्योंकि हूती इन हमलों के बहाने दुनिया की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा रहे हैं।  इस चोट का असर भारत पर भी होगा। भारत, अफ्रीका और यूरोप जैसे देश के साथ आयात-निर्यात इसी रास्ते से करता है। ऐसे में इन हमलों से कारोबार और व्यापार प्रभावित होगा। इन हमलों से डरी शिपिंग कंपनियों को या तो निर्यात रोकना पड़ रहा है या लंबे रास्तों को अपनाकर माल पहुंचाना पड़ रहा है। लंबा रास्ता समय और लागत दोनों के हिसाब से महंगा है।  

क्यों खास है लाल सागर 

लाल सागर हिंद महासागर और भूमध्य सागर को जोड़ने वाला यह रास्ता 2000 किमी लंबा है, जिसे 'गेट ऑफ टीयर्स' भी कहते हैं। दुनिया के 40 फीसदी कारोबार इसी रास्ते से होते हैं। अगर इस रास्ते में कोई भी दिक्कत आती है तो पूरी दुनिया पर इसका असर पड़ता है। यह मार्ग कितना जरूरी है कि इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकते हैं कि हर साल 17 हजार से अधिक जहाज स्वेज नहर से हर साल गुजरते हैं।  हर साल 10 अरब डॉलर का सामान इस रास्ते से  आयात-निर्यात होता है।  स्वेज नहर के बनने से पहले यूरोप से एशिया के बीच कारोबार दक्षिण अफ़्रीका के केप ऑफ गुड के जरिए होता है। ये रास्ता काफी लंबा और खर्चीला है। स्वेज नहर एशिया और यूरोप के बीच सबसे छोटा रास्ता है। यह रास्ता क्रूड ऑयल और लिक्विफ़ाइड नैचुरल गैस को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिहाज से काफी अहम है। हर दिन इस रास्ते से करीब 90 लाख बैरल तेल भेजे जाते हैं।  सिर्फ तेल ही नहीं फूड प्रोडक्ट्स, टीवी, कपड़े, खेल उपकरण समेत कंज्यूमर प्रोडक्ट्स का आयात-निर्यात इसी रास्ते से होता है। 

लाल सागर का वैकल्पिक रास्ता कितना खर्चीला  ?  

हूतियों के हमले से शिपिंग कंपनियां अब लाल सागर के विकल्प पर गौर  कर रही है। लाल सागर का विकल्प है, जो पूरे अफ्रीका का चक्कर लगाकर जाता है। ये रास्ता स्वेज नहर के रास्ते से काफी महंगा और लंबा है। इस रास्ते से ट्रेडिंग का समय 15 दिन बढ़ जाएगा। समय के साथ-साथ माल ढुलाई का खर्च भी बढ़ेगा। यदि अफ्रीका वाले रूट से ट्रेड करना पड़ा तो  हजारों मील की दूरी बढ़ जाएगी। लाल सागर के वैक्लपिक रास्ते से ट्रेड करने पर लागत और समय, दोनों काफी बढ़ जाएगा। जिसकी सीधा असर इकॉनमी पर होगा।  लंबे रास्ते से ट्रेड करने पर सामान पहुंचने में 10 से 14 दिन ज्यादा लगेंगे और इससे ट्रेड कॉस्ट में  30 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी, जिसका असर सीधा आम लोगों पर होगा।  

भारत पर भी असर 
   
भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी हिस्सा आयात करता है। हूती के हमलों से कच्चे तेल के सप्लाई पर असर पड़ेगा।  जहाजों के लंबा रास्ता लेने की वजह से कीमत पर असर होगा।  सामान पहुंचने में देर हो सकती है। लंबा रास्ता लेने से शिपिंग का कॉस्ट बढ़ेगा, कंपनियों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा तो इसका असर भी आखिरी  में आम लोगों पर पड़ेगा।  

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