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बैसाखी पर्व से छात्रों को जरूर सीखना चाहिए ये महत्वपूर्ण सीख, इन्हें अपनाकर हो सकते हैं कामयाब!

Baisakhi 2025: आज देश में बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है. इस खबर में जानें इस पर्व से छात्रों को क्या सीखना चाहिए और जानें कैसे उसे जीवन में अपनाकर आप आगे बढ़ सकते हैं.  

बैसाखी पर्व से छात्रों को जरूर सीखना चाहिए ये महत्वपूर्ण सीख, इन्हें अपनाकर हो सकते हैं कामयाब!
Muskan Chaurasia|Updated: Apr 13, 2025, 11:35 AM IST
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Baisakhi 2025 Importance: आज यानी 13 अप्रैल को पूरे देश में बैसाखी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. हालांकि, ये पर्व सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा में मनाया जाता है. इस पर्व को फसलों के काटने की शुरुआत करके मनाया जाता है. ये त्यौहार तो वैसे कृषि और प्रकृति से जुड़ा, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्हें पता होगा ये पर्व छात्रों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये पर्व हमें बहुत कुछ शिक्षा देता है. आइए इस खबर में जानते हैं. 

1. बैसाखी का पर्व छात्रों को साहस और वीरता का मैसेज देता है. ये पर्व सिखों के साहस और वीरता को दिखाता है. ऐसे में इन चीजों को छात्र अपने जीवन में उतार कर निडर होकर साहस के साथ अपने काम को कर सकते हैं. 

2. बैसाखी का पर्व सिख धर्म में नए साल की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में ये छात्रों को नई शुरुआत करने के लिए प्रेरित करता है. इसे अपनाकर विद्यार्थी पूरे जोश और नई ऊर्जा के साथ अपने लक्ष्य के प्रति आगे बढ़ सकते हैं. 

3. बैसाखी सिखाती है कि कैसे आपको दूसरों का धन्यवाद करना है. प्रकृति द्वारा दिए गए उपहारों के लिए लोग आज के दिन धरती का धन्यवाद करते हैं और आभार प्रकट करते हैं. इसी तरह छात्रों को भी अपने जीवन में माता-पिता, टीचर, दोस्तों का धन्यवाद करना चाहिए. साथ ही उन लोगों का भी धन्यवाद करना चाहिए जिन्होंने आपके हर मुश्किल वक्त में आपका साथ दिया हो. 

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4. बैसाखी का पर्व हमें एकता और भाई चारा का संदेश देता है. ऐसे में छात्रों को इसे अपनना चाहिए और हर किसी के साथ अच्छे से और भाईचारे के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए. हालांकि, ये संदेश तो हमारे देश के अधिकतर पर्व देते हैं.

5.  सबसे जरूरी चीज ये है आपको अपनी संस्कृति और परंपरा का पालन करना चाहिए. आप कितनी भी ऊंचाई पर क्यों ना पहुंच जाएं, लेकिन आपको ये ध्यान होगा कि आप अपनी परंपरा को ना भूल और जमीन से जुड़े रहे. 

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