trendingNow12573989
Hindi News >>शिक्षा
Advertisement

Success Story: कैंसर सर्वाइवर मधुरिमा ने पहले ही अटेंप्ट में क्रैक किया NEET, क्या है सबसे बड़ा चैलेंज?

Cancer Survivor Cracks NEET: मधुरिमा के लिए डॉक्टर बनने की प्रेरणा एक मरीज के रूप में उनके अपने एक्सपीरिएंस से पैदा हुई.

Success Story: कैंसर सर्वाइवर मधुरिमा ने पहले ही अटेंप्ट में क्रैक किया NEET, क्या है सबसे बड़ा चैलेंज?
chetan sharma|Updated: Dec 25, 2024, 01:33 PM IST
Share

NEET 2024 Success Story: ज़्यादातर लोगों के लिए स्टेज 4 कैंसर से लड़ना एक बड़ी चुनौती लग सकती है, लेकिन त्रिपुरा के एक छोटे से गांव की रहने वाली मधुरिमा बैद्य के लिए यह दृढ़ता की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में से एक बन गई.

महज 12 साल की उम्र में नॉन-हॉजकिन लिंफोमा से पीड़ित होने के बाद, मधुरिमा ने कई सालों के इलाज को पार करते हुए फर्स्ट अटेंप्ट में NEET 2024 क्रैक कर लिया, और वो भी 87 पर्सेंटाइल के साथ.

त्रिपुरा शांति निकेतन मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस स्टूडेंट बनने की उनकी जर्नी दर्शाती है कि मानव आत्मा अपनी गहरी इच्छाओं/ सपनों को पाने के लिए कितनी दूर तक जाने को तैयार है. 2016 में मधुरिमा के जीवन में तब बड़ा बदलाव आया जब उन्हें स्टेज 4 नॉन-हॉजकिन्स लिम्फोमा नामक कैंसर का पता चला, जो कैंसर का एक दुर्लभ और आक्रामक रूप है.

उनका बचपन जल्दी ही अस्पताल में रहने और मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में कीमोथेरेपी में बीत गया. फिर भी, उन्होंने बीमारी को अपनी पढ़ाई में बाधा नहीं बनने दिया.

आज तक को उन्होंने बताया कि वह याद करती हैं, "जब मुझे पता चला, तब मैं 12 साल की थी और कक्षा 6 में पढ़ती थी. कीमोथेरेपी की हाई डोज के बावजूद, मेरी सबसे बड़ी चिंता मेरी पढ़ाई थी. मुझे स्कूल बहुत पसंद था और मुझे अपने दोस्तों की याद आती थी. मैं कुछ भी मिस नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने अस्पताल की ओपीडी में और यहां तक ​​कि भर्ती होने के दौरान भी पढ़ाई की."

मधुरिमा के लिए, जीवन में आई हर कठिनाई और क्षति का एक ही उत्तर था - मेडिकल कॉलेज में सीट पाना और डॉक्टर बनना. उनकी लगन तब साफ हुई जब उन्होंने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में 96% नंबर हासिल किए, जो उन्होंने इलाज के दौरान ही दी थी, तथा 12वीं की परीक्षा में 91 फीसदी नंबर हासिल किए.

मधुरिमा कहती हैं, "मुझे लगता है कि मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे सपनों को पूरा करने की इच्छा थी, मैं इस बीमारी का शिकार बनकर अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को न त्यागकर सभी कैंसर रोगियों के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहती थी. इसके बजाय, मैं इस बीमारी के खिलाफ योद्धा बनना चाहती थी."

सबसे बड़ी चुनौतियां
यह जर्नी बिना किसी बाधा के नहीं थी. कई सालों तक कैंसर के इलाज- जिसमें कीमोथेरेपी, रेडिएशन और बोन मेरो ट्रांसप्लांट शामिल था - इसने उनके शरीर को कमजोर कर दिया और इन्फेक्शन के प्रति सेंसिटिव बना दिया.

मधुरिमा कहती हैं, "कैंसर से उबरना उससे लड़ने जितना ही चुनौतीपूर्ण था. मेरी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम थी और मुझे खांसी, जुकाम और यूटीआई जैसे इन्फेक्शन बार-बार होने का खतरा था. मैं हमेशा थकी हुई रहती थी, जिससे शारीरिक रूप से अपनी सीमाओं को पार करना मुश्किल हो जाता था."

इन स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के बावजूद मधुरिमा अपने सपने पर फोकस्ड रहीं. वह कहती हैं, "मैं अपनी स्वास्थ्य संबंधी सीमाओं के बावजूद शांत रहने और जो कुछ भी मेरे पास था, उसमें से बेस्ट निकालने के लिए मानसिक रूप से तैयार थी."

वह अपने टीचर्स और मार्गदर्शकों को इसका क्रेडिट देती हैं, जिन्होंने उन्हें NEET में सफलता की जरूरतों को पूरा किया. इस पूरी जर्नी में उनका परिवार उनकी बैक बोन बना रहा. वह कहती हैं, "मेरे माता-पिता और मेरी बड़ी बहन मेरे सबसे बड़े सपोर्टर थे."

उनकी बहन हृतुरिमा बैद्य, जो दिल्ली के बाबा साहेब अंबेडकर मेडिकल कॉलेज में इंटर्न हैं, ने मधुरिमा की जान बचाने के लिए अपना बोन मेरो भी दान कर दिया.

दूसरों को स्वस्थ करने की इच्छा
मधुरिमा के लिए डॉक्टर बनने की प्रेरणा एक मरीज के रूप में उनके अपने एक्सपीरिएंस से पैदा हुई.

आशा का प्रतीक
आज मधुरिमा प्रेरणास्रोत हैं -- सिर्फ़ स्टूडेंट्स के लिए ही नहीं बल्कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने वाले हर व्यक्ति के लिए. उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि दृढ़ संकल्प और समर्थन से सबसे कठिन बाधाओं को भी पार किया जा सकता है.

एमबीबीएस की अपनी जर्नी शुरू करते हुए, मधुरिमा का डॉक्टर बनने का सपना अब सिर्फ उसका ही नहीं है; यह हर उस कैंसर रोगी का सपना है जो अपने निदान से परे सपने देखने का साहस करता है.

Sarkari Naukri: 10वीं पास के लिए 803 पदों पर निकली सरकारी नौकरी, ये है सेलेक्श प्रोसेस

Medical Education: इंडियन स्टूडेंट्स के लिए विदेश में MBBS की पढ़ाई के लिए टॉप 5 देश

Read More
{}{}