Indian Military Heroes: केंद्र सरकार ने घोषणा की कि देश के तीन महान सैन्य नायकों - फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान और मेजर सोमनाथ शर्मा की वीरता और बलिदान की कहानियां अब एनसीईआरटी (NCERT) के नए करिकुलम में शामिल की जाएंगी. ये चैप्टर कक्षा 8 (अंग्रेजी), कक्षा 8 (उर्दू) और कक्षा 7 (उर्दू) में पढ़ाए जाएंगे. सरकार का कहना है कि इसका उद्देश्य स्टूडेंट्स को साहस और कर्तव्य की इंस्पिरेशनल कहानियों से जोड़ना है, ताकि आने वाली जेनरेशन अपने देश के सच्चे नायकों को याद रखें.
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ – सैम बहादुर की गाथा
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के पहले अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल का पद मिला. उन्हें प्यार से "सैम बहादुर" कहा जाता था. उन्होंने अपने करियर में पांच बड़े युद्धों में अहम भूमिका निभाई, द्वितीय विश्व युद्ध, 1947–48 का भारत-पाक युद्ध, 1962 का भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध.
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1971 के युद्ध में रही, जब उनकी रणनीति और लीडरशिप के कारण भारत ने ऐतिहासिक जीत हासिल की और बांग्लादेश का जन्म हुआ. 1914 में जन्मे सैम मानेकशॉ अपनी चतुराई, साहस और बेहतरीन प्लानिंग बनाने की क्षमता के लिए जाने जाते थे. 2023 में उनकी जिंदगी पर बनी फिल्म "सैम बहादुर" में विक्की कौशल ने उनका किरदार निभाया.
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान - नौशेरा का शेर
ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को "नौशेरा का शेर" कहा जाता था. उन्होंने 1947–48 के भारत-पाक युद्ध में जांघार और नौशेरा को दुश्मनों से वापस लेने में अहम भूमिका निभाई. वह मुस्लिम होने के बावजूद पाकिस्तान जाने से इंकार कर भारतीय सेना में ही रहे.
3 जुलाई 1948 को लड़ाई में शहीद होने के बाद उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनके अंतिम संस्कार में लॉर्ड माउंटबेटन और पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे बड़े नेता शामिल हुए.
CBSE: क्या है सीबीएसई का करियर गाइडेंस डैशबोर्ड और काउंसलिंग हब, कैसे करेगा काम?
मेजर सोमनाथ शर्मा – पहले परमवीर चक्र विजेता
मेजर सोमनाथ शर्मा को भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले पहले सैनिक होने का गौरव प्राप्त है. 3 नवंबर 1947 को कश्मीर में बडगाम की लड़ाई में, सिर्फ 25 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी जान देकर श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा की और कश्मीर घाटी को सुरक्षित रखा.
इससे पहले, वे द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा मोर्चे पर भी सेवा दे चुके थे. उनकी निस्वार्थ बहादुरी और देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा हमेशा याद किया जाएगा.
Independence Day 2025: क्या तिरंगे पर कुछ लिखना झंडे का अपमान है? जानिए पूरे नियम