आदित्य पूजन/कर्नाटक: तारीख 11 जुलाई. कर्नाटक के बेलथनगड़ी कोर्ट में आम दिनों की तरह काम-काज चल रहा था. अचानक कोर्ट परिसर में चहल-पहल बढ़ गई. लोग कुछ समझ पाते, इससे पहले ही चाक-चौबंद सुरक्षा के साथ एक व्यक्ति कोर्ट परिसर में दाखिल हुआ. ऊपर से नीचे तक काले कपड़ों में ढंके उस शख्स के पीछे वकीलौं की फौज खड़ी थी. उसने कोर्ट में जो बयान दिया, उसने कर्नाटक की सियासत को हिलाकर रख दिया. उसने दावा किया कि उसने सैकड़ों शवों को दफन दिया है जिनमें कई महिलाएं भी शाममिल थीं. सफाईकर्मी ने कबूलनामे में यह भी कहा कि दफन होने वालों में कई लड़कियां भी थीं जिनकी उम्र 12 साल से भी कम थी और जिनके साथ शारीरिक और मानसिक शोषण की घटनाएं हुई थीं. वह शख्स यही नहीं रुका. उसके साथ आए वकीलों में से एक के कंधे पर एक काला बैग था. कोर्ट में मौजूद लोगों को लगा कि इसमें शायद दस्तावेज होंगे, लेकिन शख्स ने खोलकर दिखाया तो सबकी आंखें चौंधिया गईं. बैग में एक महिला के कंकाल थे. शख्स ने कहा कि सालों पहले इस महिला के शव को उसने दफनाया था, लेकिन आत्मग्लानि के चलते वह इसका खुलासा कर रहा है.
दलित समुदाय का यह शख्स दक्षिण कन्नड़ जिले में स्थित धर्मस्थल मंदिर में सफाई कर्मचारी था जहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. इसके एक सप्ताब पहले 3 जुलाई को शख्स ने अपने वकीलों के जरिए जारी बयान में दावा किया था कि मंदिर के अधिकारियों के दबाव में उसने शवों को दफनाया था. दरअसल, इस खुलासे के पीछे भी एक कहानी है. इसकी शुरुआत तब हुई जब एक मेडिकल छात्रा के लापता होने के मामले में जांच के दौरान पुलिस को एक मानव खोपड़ी मिली. इसी दौरान यह सफाईकर्मी खुद सामने आया और कहा कि वह 1995 से 2014 के बीच करीब 100 शव दफना चुका है. उसने दावा किया कि उसे जान से मारने की धमकी भी दी गई थी, इसलिए वह अब तक चुप रहा.
जाहिर है, सफाईकर्मी के बयान के बाद कर्नाटक में हलचल बढ़ गई, लेकिन स्थानीय पुलिस को तो जैसे सांप सूंघ गया. खुलासों से हैरान पुलिस अधिकारी यह सममझ ही नहीं पा रहे थे कि उन्हें क्या करना चाहिए. उन्होंने मामले की जांच ममें हीला-हवाली करने की कोशिश की. पुलिस अधिकारियों ने कहा कि खुलासा करने वाले पर भरोसा नहीं किया जा सकता. वह 10 साल से फरार था. उसके दावे की सत्यता की जांच के साथ यह भी देखना होगा कि इतने दिनों तक वह चुप क्यों रहा. पुलिस ने कोर्ट में पेश किए गए महिला के कंकाल को भी फॉरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजा. कहा गया कि पहले सफाईकर्मी का नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग कराई जाएगी, तभी जांच आगे बढ़ेगी.
पुलिस की भूमिका पर उठते सवालों के बीच धर्मस्थल मंदिर के पास नेत्रवती मंदिर के किनारे और इससे लगे जंगलों का रहस्य एक बार फिर सुर्खियों में आ गया. इन जंगलों में लाशों को चोरी-छिपे दफनाने की चर्चाएं पहले भी दबी जुबान से होती रही हैं. 2012 में एक 17 वर्षीय एमबीबीएस छात्रा की कथित तौर पर बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी. मृतका के परिवारवालों ने आरोपी का खुलकर नाम लिया था, लेकिन कुछ सामने नहीं आया. इसी तरह, साल 2003 में मणिपाल कॉलेज की छात्रा अनन्या अपने दोस्तों के साथ यहां आई थी, लेकिन कभी वापस नहीं लौटी. एमबीबीएस फर्स्ट ईयर में पढ़ने वाली अनन्या की मां खुद सीबीआई में काम करती थीं. वे कोलकाता से धर्मस्थल पहुंची, लेकिन पुलिस ने यह कहकर उनकी शिकायत दर्ज नहीं की कि उनकी बेटी किसी के साथ भाग गई होगी. उन्होंने मंदिर के धर्माधिकारी से मदद मांगी, लेकिन अगले दिन तीन लोगों ने उनके हाथ-पैर बांधकर एक घर में बंद कर दिया. उन्हें इसी शर्त पर छोड़ा गया कि वे तुरंत इलाका छोड़ कर चली जाएंगी. ऐसी कई घटनाओं की चर्चाएं इस इलाके में होती रहती हैं, लेकिन मंदिर के प्रति लोगों की श्रद्धा और स्थानीय दबंगों के डर के चलते आजतक इनकी सच्चाई सामने नहीं आई.
बहरहाल, सफाईकर्मी के खुलासे के बाद थोड़ी उम्मीद तो बनी है कि अब सच्चाई से पर्दा उठेगा. राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए एक एसआईटी गठित की है. एसआईटी मामले की फॉरेंसिक जांच, गवाहों की सुरक्षा, पुरानी गुमशुदगी रिपोर्ट्स और डीएनए मिलान जैसे काम करेगी. सफाईकर्मी के खुलासे के बाद एक महिला सामने आई हैं, जिनकी बेटी 22 साल पहले गायब हो गई थी. उनका कहना है कि जरूरत पड़ी तो वे अपना डीएनए टेस्ट कराने को तैयार हैं. यह मामला अब उन सैकड़ों परिवारों की उम्मीद बन चुका है, जिन्होंने कभी अपनों को खोया और आज तक उसकी मौत की वजह नहीं जान पाए.