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शारदा सिन्हा के नाम खत: जन्म भी छठी मैया की कृपा से हुआ तो शांत भी नहाय-खाय पर हुईं, अलविदा 'छठ कोकिला'

शारदा सिन्हा को छठ कोकिला व बिहार कोकिला जैसे नामों से भी जाना जाता था. उन्होंने संगीत जगत में 50 साल से भी ज्यादा की तपस्या की. छठ व विवाह गीतों से वह देश के कोने-कोने में फेमस हुईं. मगर महापर्व के मौके पर ही वह इस दुनिया को भी अलविदा कह गईं. पढ़िए शारदा सिन्हा को एक फैन का लिखा खत.

शारदा सिन्हा की मौत, छठ कोकिला के नाम ये खत
शारदा सिन्हा की मौत, छठ कोकिला के नाम ये खत
Varsha|Updated: Nov 05, 2024, 11:52 PM IST
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प्यारी शारदा सिन्हा, 

मैं दिल्ली से ये खत लिख रही हूं. रात के 10.45 बजे हैं. खाना खाते हुए फोन पर एक न्यूज का नोटिफिकेशन आया. जिसमें लिखा था 'नहीं रहीं बिहार कोकिला शारदा सिन्हा'. ये पढ़ते ही खाने का निवाला हाथ से छूट गया. अचानक से धक्का लगा. आपसे जुड़ी सारी यादें ताजा होने लगीं. शारदा सिन्हा, आप हमारे लिए वो शख्सियत रही हैं, जिन्होंने हमें महापर्व छठ का महत्व समझा दिया. अगर आप न होतीं तो घर-घर में छठ के लोकगीत कभी इतने पॉपुलर भी नहीं होते.

जिस वक्त आपने विवाह गीत से लेकर छठ गीत को अपनी आवाज देकर इन्हें घर-घर तक पहुंचाया, उस वक्त अंग्रेजी और पॉप कल्चर का क्रेज भी बढ़ रहा था. मगर आपकी आवाज में वो जादू था कि लोगों ने इन गीतों को सुना भी और पसंद भी किया. वैसे तो छठ बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में मनाया जाता है. मगर आपने तो हर देशवासियों को इसका महत्व समझा दिया. आज भी कानों में हो दीनानाथ…, हे छठी मैया… से लेकर दुखवा मिटाईं छठी मईया… जैसे गीत गूंज रहे हैं.

क्या संयोग है. जिसे पूरी दुनिया छठ कोकिला कहती हैं उनका तो जन्म भी छठी मैया की वजह से हुआ था. 30-35 साल तक उनके परिवार में किसी बेटी का जन्म नहीं हुआ था. परिवार ने कोसी नदी पर मन्नत मांगी थी. जिसे मैया ने पूरा किया और 8 भाइयों की इकलौती बहन शारदा सिन्हा का जन्म हुआ. अब ये भी ईश्वर की ही माया ही तो है कि महापर्व के नहाय-खाय पर ही वह इस दुनिया को अलविदा कह गईं.

माथे पर बिंदिया और चमचमाती साड़ी में आपका खिलखिलाता चेहरा, आंखों के सामने तैर रहा है. 54 साल तक आपने संगीत की 'तपस्या' की. बचपन से ही संगीत में रुचि रही और ससुराल में पहुंचकर भी संगीत के लिए सास से भिड़ गईं. आपकी कामयाबी ने सास को भी मना लिया और सब गिले-शिकवे दूर हो गए.

लोक गायिका के साथ-साथ परफेक्ट प्रोफेसर भी रही हैं. जिन्होंने फेमस होने के बाद भी समस्तीपुर कॉलेज में बच्चों को पढ़ाना बंद नहीं किया. रोजाना 8-8 घंटे रियाज करना, फिर बच्चों को देखना, भले-पूरे परिवार को संभलाना और फिर नौकरी... यही मेहनत सुपौल के हुलास से मुंबई तक लेकर पहुंची. ताराचंद बड़जात्या ने भी आपके आगे 'मैंने प्यार किया' के 'कहे तो से सजना' का ऑफर रख दिया. फिर क्या... बिहार की कोकिला हिंदी सिनेमा में भी खूब चमकने लगीं.

पद्मभूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा को अंतिम विदाई देना हर फैन के लिए दर्दभरा है. मगर आपका एक-एक गीत अमर है. जिसकी वजह से हर देशवासी लोक गायिकी के महत्व को समझने की कोशिश करता है. हमेशा हमेशा यूं ही याद आती रहेंगी. 

आपकी एक फैन

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