फिल्म: तन्वी दी ग्रेट
निर्देशक: अनुपम खेर
स्टार कास्ट: अनुपम खेर, शुभांगी दत्त, पल्लवी जोशी, वमन ईरानी, अरविंद स्वामी, नासिर, करण ठक्कर और जैकी श्रॉफ
Movie Review: आम तौर पर परिवार के साथ देखी जाने वाली फिल्मों में सूरज बड़जात्या ब्रांड फिल्में मानी जाती हैं, या वो मूवीज जिनमें घरेलू मुद्दे हों, साफ सुथरी हों, रिश्तों की मजबूती या टकराव हों, देशभक्ति, कॉमेडी या कोई पारिवारिक सामाजिक संदेश हो. अनुपम खेर अरसे बाद एक फिल्म के निर्देशक बने हैं, सो परिवार के साथ देखने वाली मूवी बनाई है, खासतौर पर बच्चों के साथ, फिर भी ये ‘डिफरेंट’ है.
कहानी है एक ऑटिज्म पीड़ित लड़की तन्वी (शुभांगी दत्त) की, जिसे उसकी मां विद्या रैना (पल्लवी जोशी) खुद को ‘डिफरेंट बट नौ लैस’ का मूल मंत्र देती है, ताकि आत्मविश्वास कभी कम ना हो. तन्वी के पिता समर रैना (करण ठक्कर) सैन्य अधिकारी थे, जो साथी अफसर की जान बचाते समय खुद अपनी जान से हाथ धो बैठे. तन्वी की मां को ऑटिज्म की एक कॉन्फ्रेंस में 9 महीने के लिए अमेरिका जाना है और वो उसे उत्तराखंड के आर्मी टाउन लैंसडाउन में रह रहे उसके दादाजी रिटायर्ड कर्नल प्रताप रैना (अनुपम खेर) के पास छोड़ जाती है. वहां आर्मी वालों को देखकर, पिता के पुराने फोटोज देखकर तन्वी को अपने पापा की एक इच्छा याद आती है और वो उसे पूरा करने के ले आर्मी ज्वॉइन करने की जिद ठान लेती है. आगे की कहानी उसी जिद को पूरा करने को लेकर है.
फिल्म की कहानी
अनुपम खेर की तैयारी इस कदर इस मूवी पर दिखती है कि वो इसे कहीं से भी ढीली छोड़ते नहीं दिखते. सबसे पहले तो लीड एक्ट्रेस ढूंढने में जो उन्होंने मेहनत की है, वो साफ नजर आई है, शुभांगी दत्त से बेहतर इस किरदार को कोई शायद कर भी नहीं सकता था. वैसे ये हीरा उनकी खुद की अकेडमी का है. फिर जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, आपको वमन ईरान, जैकी श्रॉफ, अरविंद स्वामी जैसे दिग्गज कलाकार मिलते जाएंगे, और लगेगा कि कोई कमजोर कड़ी नहीं है. और सबसे आखिर में साउथ के दिग्गज नासर का आने से मूवी में वजन और बढ़ जाता है.
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी
अनुपम खेर ने ये ध्यान भी दिया कि मूवी आखों को अच्छी लगे, सो लोकेशंस और सिनेमेटोग्राफी के अलावा देशभक्ति के रस में भी मूवी सराबोर है. मूवी में इमोशंस की डबल डोज तो है हीं, दादा पोती के बीच की कैमिस्ट्री में कॉमेडी भी कम नहीं. क्लाइमेक्स पर कई निर्देशक ध्यान नहीं देते, लेकिन ना केवल अनुपम खेर ने तन्वी के आर्मी में जाने की जिद की वजह को आखिर तक सस्पेंस बनाए रखा बल्कि क्लाइमेक्स को नयनाभिराम बनाने की कोशिश में भी कामयाब हुए. वहीं म्यूजिक भी फिल्म के साथ मैच करता है.
फिल्म की कमियां
हां कमी नजर आई तो बस ये कि ये मूवी आराम से 20 मिनट कम हो सकती थी, और शिकायत ये भी कि वमन ईरानी के किरदार को थोड़ा और तबज्जो मिलनी चाहिए थी. बाकी एक्टिंग की तो बात ही मत करिए, जिन दिग्गजं ने इस मूवी में काम किया है, उनकी एक्टिंग पर सवाल उठाना भी पाप जैसा है, हालांकि ये बात कही पड़ेगी कि शुभांगी दत्त इन सबकी मौजूदगी में इन सब पर भारी पड़ी हैं. मूवी को परिवार के साथ देखने का मनोरंजन की दृष्टि से आनंद तो है ही, घर के बच्चों का ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के प्रति रवैया भी इस मूवी को देखकर ‘डिफरेंट’ हो जाएगा.
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