Raj Kapoor 100th Birth Anniversay: हिंदी फिल्मों के वास्तविक 'शोमैन' कहे जाने वाले राजकपूर की 14 दिसंबर को 100वीं बर्थ एनिवर्सरी है. इस मौके पर कपूर खानदान राजकपूर फिल्म फेस्टिवल का आयोजन कर रहा है. ऐसे में राज कपूर को करीब से जानने वाले बतौर सहायक काम कर चुके राहुल रवैल ने कपूर साहब से जुड़े कुछ अनसुने किस्से शेयर किए. कई किस्से तो ऐसे हैं जो आपको काफी अजीब लगेंगे.
1. रवैल बताते हैं कि राज कपूर की कुछ आदतें भले ही अजीब हों लेकिन उनका एक ही जुनून था- सिनेमा. यही वजह है 'बॉबी' में कीमत की परवाह किए बगैर उन्होंने असली शैंपेन का इस्तेमाल किया. इन्होंने बताया कि उनका मानना था: 'मैं सिनेमा की सांस लेता हूं, मुझे सिनेमा से प्यार है और मैं सिनेमा की वजह से यहां हूं. यह उनका प्रमुख नियम था.'
2. राज कपूर ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी आर.के. स्टूडियो की शुरुआत आजादी के एक साल बाद 1948 में की थी. उनकी पहली फिल्म 'आग' तब बनी जब वह सिर्फ 24 साल के थे. अगले चार दशकों में उनकी कई फिल्में युवा भारत की सोच और चिंताओं को दर्शाती हैं. निर्देशक और निर्माता राज कपूर ने 'आवारा', मेरा नाम जोकर' और 'बॉबी' जैसी शानदार फिल्में बनाईं.
3. 'लव स्टोरी', 'बेताब' और 'अर्जुन' जैसी हिट फिल्मों के निर्देशक रवैल ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि कोई और राज कपूर बन सकता है. मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला और मैंने जो कुछ भी सीखा है, वह सिर्फ उनसे सीखा'.
रवैल ने बताया कि एक बार उन्होंने देखा कि राज कपूर शॉट लेते समय अपनी उंगलियों पर गिनती कर रहे थे. उत्सुकतावश रवैल ने पूछा कि वह क्या कर रहे थे.
4. रवैल ने कहा, उन्होंने कहा, 'जब शॉट चल रहा होता है, तो मैं संगीत की बीट्स गिन रहा होता हूं. दृश्य में जिस तरह का संगीत होगा, वह मेरे दिमाग में बज रहा होता है और मैं उन बीट्स को गिन रहा होता हूं. मुझे लगता है कि यह एक अद्भुत और अनुकरणीय चीज थी.
5. रवैल ने कहा कि कपूर, जिनकी फिल्में उनके मधुर संगीत के लिए जानी जाती थीं, हमेशा अपनी टीम को सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करते थे. निर्देशक ने कहा, 'उन्होंने मुझसे कहा 'आप एक ऐसे उद्योग में काम कर रहे हैं, जहां किसी को भी पूरी जानकारी नहीं है. मुझे भी पूरी जानकारी नहीं है. रवैल ने 15 साल की उम्र में राजकपूर के सहायक के तौर पर काम करना शुरू किया था.
6. चाहे वह 'संगम' का 'बोल राधा बोल' हो, 'सत्यम शिवम सुंदरम' का 'भोर भये पनघट पे' हो या राज कपूर की अंतिम फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' का 'सुन साहिबा सुन' हो, उनकी हर फिल्म के गाने समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं. मनमुताबिक शॉट पाने के लिए कपूर कभी-कभी बहुत मेहनत और खर्च कर देते थे.
7. 'बॉबी' और 'मेरा नाम जोकर' सहित 'शोमैन' की कई फिल्मों में सहायक के रूप में काम कर चुके रवैल को 'राज कपूर की विचित्रता' बहुत पसंद है. उन्होंने कहा कि महज समझदारी ही किसी व्यक्ति की इस उद्योग में सफलता की गारंटी नहीं है. आपके पास कुछ ऐसी खूबी होनी चाहिए जो आपमें जुनून पैदा कर दे.
8. ऋषि कपूर, डिंपल अभिनीत 'बॉबी' में एक पार्टी के दृश्य की शूटिंग के दौरान, कपूर ने रवैल को शराब जैसा रंग पाने के लिए कोक को पानी में मिलाते देखा.
9. रवैल ने कहा, 'उन्होंने मुझे मिक्स करते हुए देखा और कहा 'सामने वाले लोगों (दृश्य में कलाकारों) को असली शराब दो. मैंने कहा, 'सर, नशा चढ़ जाएगा. रवैल ने कहा, 'उन्हें इसे न पीने के लिए कहो. इसलिए मैंने वही किया जो उन्होंने कहा. वह दृश्य में पिस्ता और बादाम भी चाहते थे, मैंने सोचा, यह बहुत महंगा होने वाला है.' इस पर राज कपूर ने कहा 'नहीं, मुझे वही चाहिए और आगे कहा कि उन्हें असली शैंपेन चाहिए.'
10. राज कपूर की फिल्मों के अंतिम कट के दौरान, फिल्मकार सहित किसी भी सहायक या टीम के सदस्य को संपादन कक्ष के अंदर घड़ी पहनने की अनुमति नहीं थी. ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि काम बाधित न हो.
11. रवैल ने कहा, 'वह सभी खिड़कियों पर काला कागज चिपका देते थे ताकि हमें समय का अहसास न हो...जब वह थक जाते थे, तो कहते थे 'इसे खोलो' और उस समय सुबह के आठ- साढ़े आठ बज जाते थे. वह कहते थे 'ठीक है, सभी थक गए होंगे. घर जाओ और फिर जल्दी आ जाओ.'
12. रवैल ने कहा, 'एक कार थी जो हम सभी को घर छोड़ती और वापस ले जाती। समस्या यह थी कि मैं आखिरी व्यक्ति था जिसे छोड़ा जाता था, इसलिए वापसी में गाड़ी में बैठने वाला भी मैं पहला व्यक्ति होता था. मुझे कम समय मिलता था...30 या 45 मिनट के भीतर, कार हमें स्टूडियो ले जाने के लिए वापस आ जाती थी.'
13. रवैल ने 2021 के संस्मरण 'राज कपूर: द मास्टर एट वर्क' में शोमैन की फिल्म निर्माण प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया है.
14. 'श्री 420', 'बरसात', और 'जागते रहो', जैसी अपनी अलग-अलग तरह की फिल्मों के समान कपूर भोजन में भी प्रयोगधर्मी थे. रवैल ने कहा, 'एक दिन, हम शाम को नाश्ता कर रहे थे. उन्होंने एक पाव लिया, उस पर मक्खन लगाने के लिए उसे दो भागों में काटा और बीच में एक जलेबी रखी, और उसे खाने लगे. मैंने कहा, सर, आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?. उन्होंने कहा 'क्यों? क्या कहीं लिखा है कि मैं नहीं कर सकता?'
15. रवैल ने याद करते हुए कहा, 'राज कपूर ने कहा मैं वही खाऊंगा जो मुझे पसंद है. मैं तुम्हें इसे खाने के लिए कुछ बेहतर दूंगा. फिर उन्होंने इसे टोमैटो केचप में डुबोया और खाया. तो, ये उस आदमी की अदभुत आदतें थीं.'
दिल्ली में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित होने के महज एक महीने बाद दो जून 1988 को 63 वर्ष की उम्र में कपूर का निधन हो गया. उन्हें हिंदी सिनेमा को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अपनी फिल्मों से वह सोवियत संघ समेत दुनिया के अन्य हिस्सों में बेहद लोकप्रिय थे.
इनपुट- एजेंसी
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