निर्देशक: करण शर्मा
स्टार कास्ट: राजकुमार राव, वामिका गब्बी, संजय मिश्रा, सीमा पाहवा, रघुवीर यादव और जाकिर हुसैन आदि
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
स्टार रेटिंग: 3.5
Bhool Chuk Maaf Movie Review: ‘भूल चूक माफ’ मूवी का नाम वैसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रखा जाना चाहिए था. एक तो ये इकलौती बड़ी फिल्म थी, जिसे भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की वजह से नुकसान हुआ. लगा कि युद्ध लम्बा चलेगा तो प्रोडयूसर ने ऐलान कर दिया कि मूवी ओटीटी अमेजन प्राइम पर रिलीज होगी, लेकिन सीजफायर होते ही सिनेमा चेन को लगा कि उनका तो नुकसान हो गया और ठोक दिया 25 करोड़ का दावा मूवी प्रोडक्शन कंपनी मैंडॉक फिल्म्स पर. लेकिन केवल यही वजह नहीं नया टाइटिल सुझाने की.
पूरी मूवी में हीरो अपनी प्रेमिका की मांग में सिंदुर भरने के लिए ही परेशान है और शादी तय होने के बावजूद, कोई विलेन ना होने के बावजूद सिंदूर भरने की ताऱीख नहीं आ पा रही, यही कहानी है इसकी. इस मूवी को जब आप देखना शुरू करते हैं तो एक घंटे तक तो लगता है कि हाल ही में आई राजकुमार राव या आयुष्मान खुराना की कोई छोटे शहर में फ़िल्माई गई मूवी देख रहे हैं, जिसमें हीरो हीरोइन दोनों कम पढ़े लिखे हैं और देसी अंदाज़ में हर किरदार चुटीले डॉयलॉग्स मारे जा रहा है. सब कुछ दोहराए जाने जैसा लगता है, लेकिन अचानक से कहानी में लूप लपेटा मोड आता है और फिर आपकी राय बदलने लगती है. बावजूद इसके अभी भी भी तमाम लोग होंगे जिन्हें ये लूप लपेटा मोड पसंद ही ना आए.
फिल्म की कहानी
कहानी है रंजन तिवारी (राजकुमार राव) और तितली मिश्रा (वामिका गब्बी) की जो घर से भाग कर शादी करने की योजना बनाते हैं लेकिन पकड़े जाते हैं. कहानी वाराणसी में सेट की गई है. सी सारे किरदार आम काशी वासी की तरह ही व्यवहार करते हैं. शादी के लिए रंजन के माता पिता (सीमा पाहवा, रघुवीर यादव) तो राजी हैं लेकिन तितली के पिता मिश्रा जी (जाकिर हुसैन) कतई राजा नहीं.
मिश्राजी शादी के लिए एक शर्त रखते हैं कि अगर दो महीने में रंजन की सरकारी जॉब लग गई तो वो उसकी शादी अपनी बेटी से कर देंगे. ऐसे में नौकरियों के दलाल भगवान दास (संजय मिश्रा) की मदद से 2 लाख एडवांस और 6 लाख बाद में देने का वायदा करके सरकारी नौकरी मिल भी जाती है, लेकिन सिंदूर भरने यानी शादी की तारीख नहीं आ पा रही. आपको अगर तापसी पन्नू की मूवी ‘लूप लपेटा’ याद होगी तो आपको लगेगा कि मामला कुछ कुछ उसी तरह का है, यानी एक ही घटना का बार बार होना.
फिल्म का आइडिया
इस मूवी में ना केवल ‘लूप लपेटा’ का आइडिया है बल्कि ‘ओएमजी 2’ का भी आइडिया मिक्स किया गया है. यानी भोले शंकर के बहाने एक गंभीर आइडिया देना है. लेकिन लेखक- डायरेक्टर करण शर्मा पुरानी फिल्मों का वो आइडिया भी मिक्स करने से बाज नहीं आते, जिसमें एक उसूलों वाला मुसलमान किरदार घुसाना ट्रेंड बन गया था, जैसे शोले, क्रांति, सरफरोश आदि फिल्मों में था.
तो जब हीरो रोज रात को सोता है कि अगले दिन उसकी शादी है, लेकिन हर बार पता चलता है कि वो जिस तारीख को सोया था, उसी को उठा है तो वो धीरे धीरे अपना आपा खोने लगता है, हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में कई झोल दिखते हैं, लेकिन चूंकि ओएमजी 2 की तरह इसे सीधे महादेव भोले शंकर से जोड़ दिया गया है तो मानकर चलिए कि लोग इसे नजरअंदाज ही करेंगे.
ऐसे में आखिर में सत्यनारायाण की कथा का सार कि अच्छे वक्त में लोग भगवान को किया गया अपना वायदा भूल जाते हैं या फिर गीता का सार कि ‘कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर’ को भी मूवी में शामिल करने से उम्मीद की जा रही है कि हलकी फुलकी फिल्मों के इंतजार में बैठे दर्शकों को ये फिल्म पसंद आ सकती है.
फिल्म में सितारों का अभिनय
राजकुमार राव अब उन एक्टर्स में शामिल हो गए हैं, जो सहजता से सारे रोल्स करते हैं, ऐसे में एक जैसी फिल्मों में उनको एक्टिंग करते देखने में कुछ नया नहीं लगता. वैसे भी मैडॉक फिल्म्स के साथ उनकी ये छठी फिल्म है, जिसमें स्त्री सीरीज चर्चा में रही है. ताजगी देती हैं वामिका गब्बी, अब भी लग रहा है कि उनको पूरा मौका नहीं मिला है, बेबी जॉन की तरह मूवी हीरो केन्द्रित ही है, लेकिन जब मिलेगा वो कमाल दिखाएंगी.
हालांकि मूवी देखकर ये भी महसूस होता है कि रघुवीर यादव, संजय मिश्रा, सीमा पाहवा और खासतौर पर जाकिर हुसैन, जैसे मंझे हुए कलाकारों के हिस्से में खास डायलॉग्स नहीं आए हैं. राजकुमार राव को ज्यादा स्पेस देने की वजह से भी ऐसा हुआ है. संजय मिश्रा की क्लाइमेक्स स्पीच और बेहतर हो सकती थी.
फिल्म का म्यूजिक
म्यूजिक के नाम पर तनिष्क बागची और इस्माइल कादरी की जोड़ी ने यादगार तो कुछ नहीं दिया, लेकिन फिल्म को बोर होने से जरूर बचाए रखा, आइटम सोंग उतना बेहतरीन नहीं फिल्माया गया. अच्छे गानों की कमी पूरी करने के लिए ‘लव आज कल’ का चोरबाजारी गीत आखिर में डाला गया.
ऐसे में मूवी घर पर टाइमपास मूवी है, एक प्रयोग किया गया है, जैसे ओएमजी 2 और अजय देवगन-सिद्धार्थ की फिल्म ‘थैंक गॉड’ में किया गया था, यानी भगवान के जरिए जिंदगी जीने का संदेश, ऐसे में एक बार देखने में तो कोई बुराई नहीं. कम सेंस ऑफ ह्यूमर वाले लोग बगल की सीटों पर बुक्का फाड़कर हंसते भी दिखाई दे सकते हैं.
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