Shabana Azmi On Ageing Struggles: 51 साल पहले हिंदी सिनेमा में कदम रखने वाली दिग्गज अदाकारा शबाना आजमी ने अपने करियर में 160 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और अपने दमदार अभिनय से इंडस्ट्री से लेकर अपने फैंस के बीच अपनी जबरदस्त छाप छोड़ी. शबाना अब 74 साल की हो गई हैं बावजूद इसके वो फिल्मों में एक्टिव हैं और किसी न किसी फिल्म में नजर आती रहती हैं. आज भी फैंस उनके अभिनय के दीवाने हैं.
हाल ही में एक्ट्रेस ने बढ़ती उम्र में हो रही परेशानियों के बारे में खुलकर बात की. उन्होंने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ उनकी और जावेद अख्तर की याददाश्त कमजोर होती जा रही है. उन्होंने ये माना कि वो और उनके पति जावेद अख्तर इस उम्र में याददाश्त से जुड़ी परेशानियों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उम्र बढ़ने की सच्चाई उतनी अट्रैक्टिव नहीं होती जितनी दिखाई देती है. शबाना ने बताया कि बुजुर्गों के लिए सेंसिटिविटी जरूरी है.
बुढ़ापे की चुनौतियां
साथ ही उन्होंने बुढ़ापे को 'दूसरा बचपन' बताया, जहां इंसान फिर से दूसरों पर निर्भर होने लगता है. इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में शबाना ने कहा कि बढ़ती उम्र के साथ दिमागी क्षमता धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है. उन्होंने बताया कि वो और जावेद अख्तर खुद को लकी मानते हैं कि उनके पास क्रिएटिव काम है, लेकिन उन्हें महसूस होता है कि उनकी याददाश्त पहले जैसी तेज नहीं रही. उन्होंने ये भी माना कि कई बार उन्हें नाम याद रखने में दिक्कत होती है, जो उम्र बढ़ने की एक आम समस्या है.
मां की देखभाल का अनुभव
शबाना आजमी ने अपनी मां शौकत आजमी की देखभाल के एक्सपीरियंस भी शेयर किए. उन्होंने बताया कि वो हमेशा कोशिश करती थीं कि उनकी मां परिवार से जुड़ी रहें और अकेलापन महसूस न करें. उन्होंने कहा कि जैसे छोटे बच्चों को ध्यान और देखभाल की जरूरत होती है, वैसे ही बुजुर्गों को भी प्यार और सम्मान की जरूरत होती है. उन्होंने बुजुर्गों की जरूरतों को समझने और उन्हें परिवार का अहम हिस्सा बनाए रखने पर जोर दिया.
शहर बदलने की दिक्कतें
शबाना ने ये भी बताया कि जब परिवार किसी नए शहर में जाता है, तो आमतौर पर बच्चों के एडजस्टमेंट पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन बुजुर्गों की परेशानियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. उन्होंने अपने पिता कैफी आजमी का उदाहरण दिया, जो स्ट्रोक के बाद पैरालाइज्ड हो गए थे. उन्होंने बताया कि जब लोग उनकी सही तरीके से मदद नहीं कर पाते थे, तो वो चिढ़ जाते थे. उन्होंने कहा कि स्वतंत्र रूप से जीवन जीने वाले बुजुर्गों के लिए दूसरों पर निर्भर होना बहुत मुश्किल होता है.
बुजुर्गों के लिए संवेदनशीलता जरूरी
शबाना ने कहा कि बुजुर्गों की देखभाल के दौरान धैर्य और संवेदनशीलता जरूरी होती है. उन्होंने इसे 'दूसरा बचपन' कहा, जहां बुजुर्गों को उसी तरह सहारा देने की जरूरत होती है जैसे छोटे बच्चों को दी जाती है. उन्होंने परिवारों से अपील की कि वे अपने बुजुर्ग सदस्यों की भावनाओं का सम्मान करें और उनकी जरूरतों का ध्यान रखें, ताकि वे खुद को बोझ न समझें.
शबाना आजमी की आने वाली फिल्में
वहीं, अगर उनके वर्कफ्रंट की बात लकरें तो उनको लास्ट टाइम 'डब्बा कार्टेल' में देखा गया था. इसके बाद अब वो जल्द ही 'लाहौर 1947' में नजर आएंगी. ये एक पीरियड ड्रामा फिल्म है, जिसे राजकुमार संतोषी ने निर्देशित किया है. इस फिल्म में सनी देओल और प्रीति जिंटा भी अहम भूमिकाओं में नजर आएंगे. फैंस इस फिल्म का काफी समय से वेट कर रहे हैं, जिसको लेकर सभी काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं.
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