निर्देशक: गिरीश कोहली
स्टार कास्ट: सोहम शाह, टीनू आनंद, शिल्पा शुक्ला, निमिशा
कहाँ देख सकते हैं: थियेटर में
स्टार रेटिंग: 3
Crazy Movie Review: इस मूवी के टाइटल में 'क्रेजी' की स्पेलिंग में एक X अतिरिक्त है, इसी तरह इस मूवी में तीन एक्स फैक्टर हैं, जिनमें से दो ऐसे हैं जो आपको थिएटर में खींच के ला सकते हैं और तीसरा है वो जिसके आधार पर आप मूवी देखकर ही तय कर पायेंगे कि बाक़ी दोस्तों को देखने के लिए कहना है कि नहीं. बाक़ी दो एक्स फ़ैक्टर्स हैं इसके हीरो और निर्माता सोहम शाह,'तुम्बाड' की वजह से लोग घर घर में उन्हें जान गये हैं और दूसरे हैं इस मूवी के निर्देशक गिरीश कोहली, जिनकी लिखी फ़िल्मों मॉम, हिट द फर्स्ट केस और केसरी को आप सबने सराहा है.
क्या है क्रेजी की कहानी
ये मूवी एक तरह का एक्सपेरिमेंट है,सुनील दत्त की मूवी ‘यादें’ जैसी अकेले कलाकार वाली रोमांटिक फिल्म हो या राजीव खंडेलवाल की थ्रिलर ‘आमिर’, तमाम देसी विदेशी फ़िल्मों में ऐसे प्रयोग होते रहे हैं कि पूरी मूवी एक ही दिन की, एक ही कलाकार की कहानी हो.इस मूवी की कहानी भी कुछ उसी तरह की है.
कहानी दिल्ली के एक जाने माने सर्जन डॉक्टर अभिमन्यु सूद (सोहम शाह) की है, जो अपनी कार में 5 करोड़ रुपये लेकर किसी को देने निकलता है.ड्राइविंग के दौरान आने वाले फ़ोन ही कहानी को आगे बढ़ाते हैं, जिससे पता चलता है कि उसकी गलती से ऑपरेशन के दौरान एक 12 साल के बच्चे के मौत हो गई थी. उस केस के आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के लिए ये रकम देनी है.
लेकिन अगला फोन एक किडनेपर का होता है,जिसका दावा है कि उसकी बेटी जो तलाकशुदा पत्नी के साथ रह रही थी अब उसके कब्जे में है और उसे छोड़ने के लिए 5 करोड़ चाहिए.नहीं देगा तो बेटी की जान जाएगी और दे देगा तो पार्टी केस वापस नहीं लेगी और जेल जाना पड़ेगा और करियर भी बर्बाद.
पूरी फिल्म के दौरान हीरो कार ही ड्राइव कर रहा है और निर्देशक ने ऐसी परिस्थियां बनाने की कोशिश की है कि उसी दिन एक घंटे के अंदर या तो किडनेपर को 5 करोड़ देने हैं या फिर केस करने वाली पार्टी को.उस पर कभी पूर्व पत्नी नाराज हो जाती है तो कभी होने वाली पत्नी, कभी किडनेपर गुस्सा हो जाता है तो कभी समझौता करवा रहा हॉस्पिटल का मालिक. ऐसे में निर्देशक जो लेखक भी है, ने मूवी को ढीली नहीं पड़ने दिया. बड़ी मेहनत हीरो सोहम शाह ने भी की है, बंदे को नेशनल अवार्ड का इस बार पक्का दावेदार मान कर चलिए. हर अगले मिनट में एक नया एक्सप्रेशन देना आसान नहीं था.
कई तरह के पेच डाले गए
आसान तो एक बंदे में दम पर पूरी मूवी खींचना भी नहीं था, सो कई तरह के पेच डाले गये, जो शायद आसानी से दर्शकों को पचें भी नहीं. जैसे ट्यूबलेस टायरों वाली चलती कार में आजकल कहाँ पंक्चर होते हैं. दिल्ली पुलिस डॉक्टर के फ़ोन को ट्रैकिंग पर डालकर आसानी से लोकेशन जान सकती थी. प्रसाद पुलिस का पीछा करने की बात पर चौंका क्यों नहीं? जो पैसों का बैग टनल में गिरा या फेंका वो एक किलोमीटर आगे कैसे पहुंच गया? जिस कार ने डॉक्टर को गलती से टक्कर मारी, डॉक्टर ने एक किलोमीटर जाने के लिए उसी से लिफ्ट ना लेकर टूटी टांग से भागना बेहतर क्यों समझा? पंक्चर, पेट्रोल ख़त्म होना, एक्सीडेंट इतने सारे संयोग एक ही ट्रिप में क्यों हो रहे थे? दिल्ली वाले तब भी चौंकेंगे जब दिल्ली मेट्रो के नीचे दौड़ रही कार एक घंटे के अंदर गुजरात की पवनचक्कियों के बीच पहुंच जाएगी.
नहीं छोड़ पाएंगे सीट
बावजूद इसके सोहम शाह की शानदार एक्टिंग और एक से एक टर्निंग पॉइंट्स रचने वाले निर्देशक गिरीश कोहली ने फ़िल्म से दर्शकों मो अंत तक बांधे रखने वाली मूवी बनायी है. आप क्लाइमेक्स तक फ़िल्म से हिल नहीं पाते. लेकिन क्लाइमेक्स में भी एक प्रयोग है और वही प्रयोग तय करेगा कि लोग इस मूवी की माउथ पब्लिसिटी करेंगे या नहीं, और वही तय करेगा थिएटर में मूवी का भविष्य. लेकिन ये तय है कि OTT पर जब भी ये मूवी आएगी, लोगों को देखने में आनन्द आएगा. मूवी की सिनेमेटोग्राफ़ी, एडिटंग और बैकग्राउंड म्यूजिक औसत से बेहतर हैं.
फ़िल्म के पेस को देखते हुए, इसमें एक दो पुराने और एक दो नये गाने मिलाकर रखें गये हैं, जो राहत की तरह हैं. 'थ्री इडिअट्स’ की तरह एक लाइव ऑपरेशन का सीन भी है, जो आपकी धड़कनें बढ़ाये रखता है तो एक टेलीकॉलर का लोन के लिए फ़ोन का सीन इकलौता सीमा है, जहां दर्शक हंसते हैं. लेकिन निर्माता निर्देशक तभी हँसेंगे जब आपको क्लाइमेक्स में आप उन सवालों के जवाबों से संतुष्ट होंगे जो आपके दिमाग़ में पूरी मूवी देखने के दौरान उठे थे.जाहिर है अंत भला (अगर आपको लगा) तो सब (का) भला.
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