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Crazxy Review: तुम्बाड के बाद सोहम शाह की एक और मास्टरपीस, 93 मिनट 'क्रेजी' किया रे

डेढ़ घंटे की फिल्म में सोहम शाह ने साबित कर दिया है कि अगर सही कहानी, डायरेक्शन, स्क्रीनप्ले और ट्रीटमेंट हो तो दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ी जा सकती है.

Crazxy Review: तुम्बाड के बाद सोहम शाह की एक और मास्टरपीस, 93 मिनट 'क्रेजी' किया रे
Shariqul Hoda|Updated: Feb 28, 2025, 08:23 AM IST
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Crazxy Film Review: अगर आपने तुम्बाड (Tumbbad) फिल्म में सोहम शाह (Sohum Shah) की एक्टिंग और डायरेक्शन का धमाल देखा है, तो क्रेजी मूवी भी किसी मास्टरपीस से कम नहीं है. 93 मिनट की ये फिल्म आपको सीट से जरा सा भी हिलने नहीं देगी और पूरे वक्त आपको बांधे रखेगी. इसमें स्टोरीटेलिंग का जादू देखने को मिलेगा क्योंकि ये ट्रेडिशनल बॉलीवुड मूवी से काफी हटके हैं.

फिल्म की कहानी 
ये कहानी है डॉक्टर अभिमन्यु सूद की, जिसकी कार में 5 करोड़ रूपये है ताकि वो अपना मेडिकल नेग्लिजेंस का केस सैटल कर सके और खुद को जेल जाने से बचा सके, जब वो 1 अप्रैल का अपनी गाड़ी और पैसे लेकर निकलता है. तभी उसे फोन आता है कि उसकी बेटी अगवा हो चुकी है, और किडनैपर्स को 5 करोड़ की रकम चाहिए. बता दें कि डॉक्टर अपनी एक्स वाइफ से तलाक के बाद बेटी से भी अलग रहता है और अब वो एक नए रिलेशनशिप में है. 
 

 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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डॉक्टर अभिमन्यु को ये समझ नहीं आता कि ये 'अप्रैल फूल' का प्रैंक कॉल है, या बेटी को एक्स वाइफ, या फिर गर्लफ्रेंड ने किडनैप करवाया है. एक शक होता ये भी होता है कोई अनजान आदमी इस किडनैपिंग में शामिल है. इस बीच डॉक्टर को एक अर्जेंट सर्जरी भी करनी है, जिसके लिए उसके पास वक्त नहीं है. यानी अभिमन्यु पूरी तरह एक चक्रव्यू में फंस चुका है. उसे समझ नहीं आ रहा है कि वो 5 करोड़ देकर अपना केस सैटल कराए, या ये रकम देकर बच्ची को किडनैपर से छुड़ाए, या फिर तीसरा ऑप्शन ये है कि वो हॉस्पिटल जाकर पेंशेंट की जान बचाए. अब इस कश्मकश से हीरो कैसे बाहर निकलता है इसके लिए आपको पूरी फिल्म देखनी होगी.

 
एक्टिंग
पूरी फिल्म सोहम शाह के इर्द गिर्द घूमती है और बाकी एक्टर्स का किरदार सिर्फ सपोर्ट के लिए है. इस बात में कोई शक नहीं कि सोहम ने एक पिता और एक डॉक्टर का दमदार किरदार निभाया है, उम्मीद है कि ये मूवी उनके करियर में एक और मील का पत्थर साबित होगी. इस फिल्म के बाकी कलाकार टीनू आनंद, शिल्पा शुक्ला और निमिषा साजयान भी हैं, लेकिन आपको उनकी आवाज ही ज्यादातर सुनाई देगी.

 

म्यूजिक 
इस फिल्म के गाने विशाल भारद्वाज ने कंपोज किए हैं और गुलजार साहब ने लिखे हैं. इसके अलावा लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, आनंद बख्शी, जेस्पर केवाईडी, हर्षवर्धन रामेश्वर और ओशो जैन ने भी म्यूजिक में अपना योगदान दिया है. फिल्म के सॉन्ग सिचुएशन को पूरी तरह जस्टिफाई करते हैं और हर सीन के साथ परफेक्ट नजर आते हैं. 
 

फिल्म का कमजोर पार्ट
मूवी का सबसे कमजोर पार्ट शायद ये है कि इसकी मार्केटिंग सही तरीके से होने चाहिए थी, ताकि थिएटर में जमकर एडवांस बुकिंग हो सके. इसके अलावा फिल्म में हॉस्पिटल के सीन्स कमजोर दिल वाले को विचलित कर सकते हैं, लेकिन कहानी के हिसाब से बिलकुल फिट बैठते हैं.

फाइनल वर्डिक्ट
कुल मिलाकर ये एक मस्ट वॉच फिल्म है, अगर आप एक बेहतरीन कहानी और पिक्चराइजेशन वाली थ्रिलर फिल्म के शौकीन है तो इसके लिए सिनेमा हॉल जरूर जाएं. दर्शकों के लिए सलाह ये है कि आप इसका ओटीटी पर आने का, या फिर री-रिलेज का इंतजार न करें. ये मूवी का ऑडिएंस का अटेंशन पूरी तरह डिजर्व करती हैं. भले ही प्रमोशन में कमी रह गई हो, लेकिन  माउथ टू माउथ पब्लिसिटी के जरिए ये काफी पॉपुलर हो सकती है, क्योंकि कहानी में दम है.

फिल्म की रेटिंग- 4/5

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