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बीजेपी ने 3 दिशाओं में लहराया भगवा, अगले अध्यक्ष के लिए आखिरी किले में कमल खिलाने की चुनौती

BJP next president: जेपी नड्डा के बाद बीजेपी का नया अध्यक्ष संगठनात्मक मोर्चे पर पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी निभाएगा. इसके साथ ही 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की नींव भी रखेगा. लेकिन चुनौतियां क्या होंगी.. इसे समझना जरूरी है.

बीजेपी ने 3 दिशाओं में लहराया भगवा, अगले अध्यक्ष के लिए आखिरी किले में कमल खिलाने की चुनौती
Gaurav Pandey|Updated: Feb 19, 2025, 08:23 AM IST
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JP Nadda replacement in BJP: पीएम मोदी और अमित शाह के युग में आने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी अपने फैसलों से राजनीतिक पंडितों को चौंकाती रहती है. इसी बीच अब बीजेपी के संगठनात्मक चुनाव अपने अंतिम चरण में हैं. इसके साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल भी समाप्ति की ओर है. नड्डा के बाद नया अध्यक्ष पार्टी की कमान संभालेगा जिसे कई अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. बीजेपी की मौजूदा स्थिति हालिया चुनावी प्रदर्शन और संगठन की नई प्राथमिकताओं को देखते हुए यह निर्णय पार्टी की भविष्य की राजनीति को आकार देने वाला साबित होगा. हालांकि अगले अध्यक्ष के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी. 

नड्डा का कार्यकाल और उपलब्धियां
असल में जेपी नड्डा ने जनवरी 2020 में अमित शाह की जगह बीजेपी अध्यक्ष पद संभाला. अमित शाह के कार्यकाल में बीजेपी ने 2014 और 2019 के आम चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया था वहीं कई राज्यों में भी पार्टी का दबदबा बना. नड्डा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ बेहतर तालमेल बनाकर काम किया और अपनी शांत और संतुलित नेतृत्व शैली के लिए पहचाने गए. उनके कार्यकाल में पार्टी ने 26 चुनावी जीत दर्ज की जिसमें लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव शामिल थे.

लेकिन निशाने पर भी रहे.. 
हालांकि नड्डा के कार्यकाल में कुछ बड़े राजनीतिक घटनाक्रम भी देखने को मिले. उन्होंने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यह बयान दिया था कि बीजेपी अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पहले की तरह निर्भर नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बयान को बीजेपी और संघ के बीच संभावित मतभेद के रूप में देखा गया जिसका असर चुनावी प्रदर्शन पर भी दिखा. बीजेपी की सीटें 303 से घटकर 242 रह गईं और पार्टी के ओबीसी वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा विपक्षी दलों की ओर शिफ्ट हो गया. हालांकि इन झटकों के बावजूद नड्डा को केंद्रीय मंत्री पद से नवाजा गया और उन्हें कुछ समय के लिए पार्टी अध्यक्ष पद पर भी विस्तार दिया गया.

नए अध्यक्ष के सामने चुनावी चुनौतियां
बीजेपी के नए अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की दक्षिण भारत में पकड़ मजबूत करना होगी. उत्तर पश्चिम और पूर्वी भारत में पार्टी ने बीते कुछ वर्षों में खुद को मजबूत किया है, लेकिन दक्षिण भारत अभी भी बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल क्षेत्र बना हुआ है. 2023 में कर्नाटक में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी अब तक तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाई है. आंध्र प्रदेश में भी बीजेपी सिर्फ एक सहयोगी दल की भूमिका में है.

दक्षिण भारत में पार्टी की स्थिति मजबूत करने के लिए नेतृत्व किसी स्थानीय नेता को कमान सौंप सकता है. ऐसे में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी (कर्नाटक), केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी (तेलंगाना) और ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष के लक्ष्मण (तेलंगाना) जैसे नाम चर्चा में हैं.

नॉर्थ ईस्ट में भी विस्तार की जरूरत
बीजेपी ने बीते कुछ वर्षों में पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत की है. लेकिन अभी भी कई ऐसे समुदाय हैं जिनके बीच पार्टी को और स्वीकार्यता बनानी होगी. खासकर ईसाई और आदिवासी समुदायों के बीच समर्थन बढ़ाना पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा होगा. पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के साथ मुकाबले में बीजेपी को इन समुदायों तक अपनी पहुंच बढ़ाने की जरूरत होगी.

युवा और दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को मजबूत करना
बीजेपी के नए अध्यक्ष के लिए एक और बड़ी जिम्मेदारी होगी कि वह पार्टी के युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाए. प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अभी भी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत है. लेकिन संगठन में दूसरी पंक्ति के नेताओं की पहचान और उन्हें मजबूत करना भविष्य के लिए जरूरी होगा. इसके अलावा पार्टी को डिजिटल रणनीति, सोशल मीडिया, और युवाओं के बीच अपनी विचारधारा को मजबूती से स्थापित करने के लिए नए तरीके अपनाने होंगे.

चुनौतियों से कैसे निपट पाएगा संगठन
जेपी नड्डा के बाद बीजेपी का नया अध्यक्ष न केवल संगठनात्मक मोर्चे पर पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी निभाएगा. बल्कि 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की नींव भी रखेगा. दक्षिण और पूर्वोत्तर में विस्तार, युवा नेतृत्व को आगे लाना और ओबीसी व अन्य समुदायों के बीच समर्थन बढ़ाना उनकी मुख्य प्राथमिकताएं होंगी. पार्टी का अगला नेतृत्व इन चुनौतियों से कैसे निपटता है यह बीजेपी के भविष्य की दिशा तय करेगा.

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