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टॉप 4 मंत्रालय अपने ही पास रख BJP का सहयोगी दलों को साफ संदेश, बड़े फैसलों के लिए देश भी रहे तैयार

PM Modi Swearing In Ceremony: गृह, रक्षा, वित्त और विदेश जैसे टॉप मंत्रालय बीजेपी के अंडर में ही रहेंगे. इन चारों मंत्रालयों को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) कहा जाता है. बीजेपी ने अपने इस कदम से यह भी साफ कर दिया है कि भले ही बहुमत वह अपने दम पर ना ला पाई हो लेकिन बावजूद इसके वह तीसरे कार्यकाल में बड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी.

टॉप 4 मंत्रालय अपने ही पास रख BJP का सहयोगी दलों को साफ संदेश, बड़े फैसलों के लिए देश भी रहे तैयार
Rachit Kumar|Updated: Jun 09, 2024, 05:47 PM IST
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Modi Cabinet 3.0: भले ही मोदी सरकार इस बार अपने दम पर बहुमत ना ला पाई हो लेकिन एनडीए गठबंधन में अब भी वह 'बड़े भाई' की भूमिका में ही है. अपने साथियों के साथ बातचीत कर बीजेपी ने उनके लिए मंत्रालय करीब-करीब तय कर दिए हैं. लेकिन बावजूद बीजेपी ने साफ कर दिया है कि कद्दावर मंत्रालय वह अपने पास ही रखेगी. 

इसका मतलब है कि गृह, रक्षा, वित्त और विदेश जैसे टॉप मंत्रालय बीजेपी के अंडर में ही रहेंगे. इन चारों मंत्रालयों को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) कहा जाता है. बीजेपी ने अपने इस कदम से यह भी साफ कर दिया है कि भले ही बहुमत वह अपने दम पर ना ला पाई हो लेकिन बावजूद इसके वह तीसरे कार्यकाल में बड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी.

चलिए अब समझते हैं कि सीसीएस क्यों इतना जरूरी है और क्यों बीजेपी इनको अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहती. 2019 में गृह मंत्रालय अमित शाह, रक्षा राजनाथ सिंह, वित्त निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्रालय एस जयशंकर के पास था. इस बार देखना होगा कि किसे क्या जिम्मेदारी मिलेगी. 

कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी क्या करती है?

देश की सुरक्षा और सामरिक हितों को साधने का काम सीसीएस के हाथों में होता है. राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को देखने के अलावा, आंतरिक सुरक्षा और कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने का काम सीसीएस पर होता है. 

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा समझौतों और खतरों को लेकर नीतियां तय करना. राष्ट्रीय सुरक्षा के वे मुद्दे, जो देश की अर्थव्यवस्था और राजनीति पर असर डाल सकते हैं, उनको हैंडल करना. हथियारों की खरीद से लेकर कीमतें तय करना या प्रोजेक्ट के स्कोप में बदलाव को देखना.

सीसीएस पर कंट्रोल से क्या होगा फायदा?

अगर सीसीएस के सारे सदस्य बीजेपी के होंगे तो उसका राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े फैसलों पर सख्त नियंत्रण रहेगा. अगर ऊपर से ही कंट्रोल टाइट रहेगा तो आंतरिक असहमति की संभावना कम हो जाएगी और पार्टी की रणनीतियां सहयोगी पार्टियों के विरोध के लागू हो जाएंगी. 

यूनिफाइड नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटजी: चूंकि सीसीएस के सभी सदस्य बीजेपी के होंगे, लिहाजा राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर पार्टी का नजरिया एकजुट रहेगा. अगर आपदा का वक्त आता है तो पार्टी तुरंत फैसले ले सकेगी.

चुनाव में मिलेगा फायदा: पिछले कार्यकालों में भी बीजेपी का हमेशा से फोकस राष्ट्रीय सुरक्षा, डिफेंस और मजबूत सरकार पर रहा है. बड़े मंत्रालयों पर कंट्रोल होने से तेजी से निर्णय लेने और सरकार चलाने में आसानी रहेगी. इसका फायदा राज्यों के चुनावों में भी मिलेगा.  

मजबूत इमेज: पीएम मोदी की छवि हमेशा से मजबूत नेता की रही है, जो कड़े फैसले लेने में पीछे नहीं रहते. सीसीएस पर कंट्रोल रहने से यह इमेज बनेगी की सरकार सक्षम और स्थायी है. इसका असर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पड़ेगा. 

पॉलिसी पैरालिसिस का कम रिस्क: गठबंधन की राजनीति का कभी कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि सहयोगियों की विचारधारा अलग हो चुकी हैं. सीसीएस को अपने पास रखकर बीजेपी ने पॉलिसी पैरालिसिस और सहयोगियों के साथ मतभेद की संभावना को काफी कम कर लिया है ताकि आराम से सरकार चलाई जा सके.  

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