chittisinghpora and kaluchak terrorist attack: कश्मीर में मिनी स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले पहलगाम में हिंदुओं के नरसंहार के बीच ये बात साफ है कि अमन के दुश्मनों ने एक मैसेज देने का काम किया है. ये संदेश अंतरराष्ट्रीय जगत को देना था कि कश्मीर का मुद्दा गुजरे जमाने की बात नहीं रही. ये मुद्दा अभी भी बदस्तूर जारी है. कश्मीर में शांति और नॉर्मलसी के दावे झूठे हैं. इसलिए ही अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की हाई-प्रोफाइल दौरे के बीच ये घटना घटी. इस यात्रा के दौरान इस तरह की आतंकी घटना के माध्यम से पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान कश्मीर मुद्दे पर फोकस करना आतंकियों और उनके आकाओं की रणनीति लगती है.
ये बात इसलिए उभरकर आ रही है क्योंकि ऐसा पहले भी कश्मीर में हो चुका है. ऐसा ही एक खौफनाक किस्सा सन 2000 का है. उस साल 21 मार्च को अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को भारत आना था लेकिन उसके एक रात पहले यानी 20 मार्च को कश्मीर में अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपुरा गांव में 36 सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए आतंकियों ने उस कायराना हरकत को अंजाम दिया.
उसके दो साल बाद 2002 में जब यूएस असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ स्टेट क्रिस्टीना बी रोक्का भारत आई थीं तो 14 मई 2002 को कालूचक में आतंकियों ने हमला किया. पहले उन्होंने मनाली से जम्मू जा रही हिमाचल प्रदेश की एक बस पर हमला कर सात लोगों को मार दिया. उसके बाद आर्मी के फैमिली क्वार्टर्स में घुस गए. वहां अंधाधुंध फायरिंग करके 23 लोगों को मार दिया. मरने वालों में 10 बच्चे और आठ महिलाएं थीं. आर्मी के 5 जवान भी शहीद हो गए.
इन घटनाओं में पाक समर्थित आतंकी संगठनों का नाम सामने आया था.
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कश्मीर हमारी गले की नस
इस मामले में ये बात भी खास है कि ये हमला पाकिस्तान के आर्मी जनरल आमिर मुनीर के उस बयान के एक हफ्ते के भीतर हुआ है जिसमें उन्होंने भारत के खिलाफ जहर उगलते हुए कहा था कि कश्मीर हमारे लिए गले की नस है और हम इस मुद्दे को नहीं छोड़ेंगे. मुनीर ने 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में कश्मीर को 'गर्दन की नस' बताया था और इसे कभी न भूलने की बात कही थी. मुनीर ने कहा था, ''भारत के कब्जे के खिलाफ हम अपने कश्मीरी भाई-बहनों के संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटेंगे.”
इस पृष्ठभूमि में लश्कर ए तैयबा के मुखौटा संगठन द रेजिस्टेंस फोर्स ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी भले ही ली हो लेकिन यह संदेह लगातार पुख्ता हुआ है कि पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों के इशारे के बिना इतने बड़े हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया जा सकता.