Evolution of Delhi: देश की राजधानी दिल्ली में चुनाव हो रहे हैं. दिल्ली की जनता फिर से अपना निजाम चुनेगी. दिल्ली का इतिहास अपने आप में एक बड़ा विमर्श है. समय-समय पर इतिहासकार तमाम साक्ष्यों के आधार पर दिल्ली के बारे में बताते हैं. लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि देश के दिल के इस भूभाग का दिल्ली 16वां नाम है. दिल्ली सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि सभ्यताओं का संगम और बदलाव का प्रतीक है. इसकी जड़ें हजारों साल पुरानी हैं और इसके नामों की कहानी उतनी ही दिलचस्प है जितनी इसकी ऐतिहासिक घटनाएं हैं. दिल्ली आज अपने 16वें नाम से जानी जाती है लेकिन इसकी शुरुआत इंद्रप्रस्थ से हुई थी और फिर योगिनीपुरा शेरगढ़ से होते हुए दिल्ली तक यात्रा पहुंची है. इस ऐतिहासिक सफर पर एक नजर मार लेना जरूरी हैं.
दिल्ली के नामकरण की सबसे पुरानी कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है. जब कौरवों और पांडवों के बीच राज्य का बंटवारा हुआ तब पांडवों को हस्तिनापुर से अलग एक पथरीली और जंगलों से भरी भूमि मिली, जिसे ‘खांडवप्रस्थ’ कहा जाता था. भगवान कृष्ण के सुझाव पर अर्जुन ने इस स्थान को जलाकर एक नए नगर की नींव रखी, जो बाद में इंद्रदेव की कृपा से ‘इंद्रप्रस्थ’ कहलाया. आज जिस स्थान पर पुराना किला स्थित है, माना जाता है कि वहीं पांडवों की राजधानी थी. पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार, यहां 1628 ईस्वी के संस्कृत अभिलेख भी मिले हैं, जो इस स्थान को इंद्रप्रस्थ के रूप में मान्यता देते हैं.
फिर कहानी राजा ढिल्लू की..दिल्ली का नाम यूं बदला
इसके बाद समय के साथ इस नगर को कई नए नाम मिले. इतिहासकारों का कहना है कि 800 ईसा पूर्व के आसपास इस क्षेत्र पर राजा ढिल्लू का शासन था. इन्हीं के नाम पर इसे दिल्हीका कहा जाने लगा. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह नाम धीरे-धीरे बदलकर ‘दिल्ली’ हो गया. एक दूसरी मान्यता है कि अरावली की पहाड़ियों में मिट्टी के टीले पाए जाते थे जिन्हें ‘ढिल्ली’ कहा जाता था और यही नाम इस शहर की पहचान बन गया. अंग्रेजी में इसे Delhi लिखा गया, जो उच्चारण में इसके प्राचीन नाम के सबसे करीब है.
अनंगपाल तोमर और लालकोट की भी कहानी जानिए..
कहते हैं कि 12वीं शताब्दी में दिल्ली की सत्ता तोमर वंश के राजा अनंगपाल के हाथ में आई. उन्होंने यहां ‘लालकोट’ नामक किले का निर्माण करवाया, जिसे बाद में अजमेर के चौहान राजा ने जीतकर ‘किला राय पिथौरा’ नाम दिया. चंदरबरदाई की रचना ‘पृथ्वीराज रासो’ में अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक माना गया है. इस दौरान दिल्ली को ‘योगिनीपुरा’ के नाम से भी जाना जाता था.
इतना ही नहीं दिल्ली एक ऐसा शहर है जो सात बार बसा और सात बार उजड़ा. हर नए शासन ने इसे नया नाम दिया. गुलाम वंश के समय इसे ‘किला राय पिथौरा’ कहा गया, खिलजी शासन में इसे ‘सीरी’, तुगलक शासन में ‘तुगलकाबाद’ और फिरोज शाह तुगलक ने इसे ‘फिरोजाबाद’ नाम दिया. मुगलों के समय हुमायूं ने इसे ‘दीनपनाह’, शेरशाह सूरी ने ‘शेरगढ़’ और शाहजहां ने इसे ‘शाहजहानाबाद’ के रूप में विकसित किया. अंग्रेजों के शासनकाल में इसे फिर से ‘दिल्ली’ नाम दिया गया और राजधानी बनने के बाद इसे ‘नई दिल्ली’ का आधिकारिक नाम मिला.
दिल्ली..नाम नहीं इमोशन है.. भारत की दहलीज है
राजधानी दिल्ली सिर्फ एक शहर नहीं बल्कि इतिहास की एक दहलीज है. मजे की बात यह है कि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि दिल्ली नाम संस्कृत शब्द ‘दहलीज’ से निकला है जो इस स्थान के भौगोलिक महत्व को दर्शाता है. कहते हैं कि यह क्षेत्र उत्तर भारत का प्रवेश द्वार था. जहां से व्यापार, संस्कृति और सत्ता का प्रवाह होता था.
आज की दिल्ली.. विरासत और आधुनिकता का संगम
आधुनिक समय में दिल्ली भारत की राजधानी तो है ही.. साथ में यह राजनीतिक आर्थिक शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी है. 1914 में जब दिल्ली को राजधानी बनाया गया तब मेरठ जिले के 65 गांवों को इसमें शामिल किया गया. जिससे इसकी सीमाएं और बढ़ गईं. पूर्वी दिल्ली जो कभी मेरठ का हिस्सा थी अब आधुनिक बस्तियों और हाउसिंग सोसायटीज का केंद्र बन चुकी है.