Assembly Elections Result: पांच राज्यों में चुनाव नतीजे सामने आने के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने मुख्यमंत्री के साथ दो-दो उपमुख्यमंत्री बनाए और कांग्रेस ने तेलंगाना में सीएम के साथ एक डिप्टी सीएम बनाए. राज्यों में इन उप मुख्यमंत्रियों (Deputy CM) ने भी भरपूर सुर्खियां बटोरीं. क्योंकि इनमें ज्यादातर पहले मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल थे. राजस्थान में दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा, मध्य प्रदेश में राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा, छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा, तेलंगाना में भट्टी विक्रमार्क डिप्टी सीएम बनाए गए हैं. इस तरह देश में इस समय 30 से ज्यादा उप मुख्यमंत्री हो गए हैं. इसके साथ ही सवाल खड़ा हो गया है कि क्या मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी में डिप्टी सीएम के पास राज्य की सभी ताकतें आ जाती हैं? हालांकि, शपथ ग्रहण के दौरान भी उप मुख्यमंत्री पद का नाम नहीं लिया जाता तो फिर क्यों डिप्टी सीएम बनने के बाद नेताओं की नाराजगी दूर हो जाती है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि राज्यों के मंत्रीमंडल में उप मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम का ओहदा या दर्जा क्या होता है, उनके पास क्या शक्तियां होती हैं, उनका काम और कार्यकाल क्या होता है और उन्हें कौन हटा सकता है?
उपराष्ट्रपति या उपराज्यपाल की तरह संवैधानिक नहीं होता उपमुख्यमंत्री का पद
देश के उपराष्ट्रपति या केंद्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल की तरह राज्यों में उपमुख्यमंत्री कोई संवैधानिक पद नहीं है. संविधान में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति, चुनाव, काम, शक्तियों और कार्यकाल का जिक्र किया गया है. उपराज्यपाल की नियुक्ति समेत तमाम व्यवस्थाओं को लेकर भी संविधान में बताया गया है. संविधान में उस तरह राज्यों में उप मुख्यमंत्री पद का कोई जिक्र नहीं है. संविधान के जानकारों के मुताबिक डिप्टी सीएम का पद एक तरह से राजनीतिक व्यवस्था होती है. राज्य में कार्यकारी शक्तियां मुख्यमंत्री के पास ही होती है. उनकी तरह उप मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम के पास कोई विशिष्ट वित्तीय या प्रशासनिक शक्तियां नहीं होतीं. राज्य का मुख्यमंत्री ही अपने विवेक से या अपनी पार्टी के कहने पर उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है. राज्य में राजनीतिक समीकरण बदलने पर मुख्यमंत्री किसी भी वक्त अपने डिप्टी सीएम को बदल या पद से हटा सकता है. क्योंकि डिप्टी सीएम का कोई तय कार्यकाल भी नहीं होता है. ऐसा भी नहीं होता कि सरकारी योजनाओं की कोई फाइल वगैरह डिप्टी सीएम के मार्फत मुख्यमंत्री तक पहुंचती हो.
उप मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री में क्या अंतर है, कैसी होती है सरकार की आंतरिक व्यवस्था
शपथ ग्रहण समारोह के दौरान उपमुख्यमंत्री पद के नाम से कोई शपथ नहीं लिया जाता. तकनीकी तौर पर उन्हें मंत्री पद का ही शपथ लेना होता है. सरकारी भत्तों के मामले में भी उपमुख्यमंत्री एक कैबिनेट मंत्री के बराबर ही होता है. यह अलग बात है कि मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री के बाद उपमुख्यमंत्री को दूसरे सबसे बड़े रैंक का मंत्री माना जाता है. दूसरी ओर, सरकार में भले ही डिप्टी सीएम का पद रैंक में दूसरे नंबर का हो, लेकिन वह मुख्यमंत्री की सहमति के बिना उनकी गैर मौजूदगी में कोई आदेश या निर्देश नहीं जारी कर सकता. मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में वह कैबिनेट बैठकों की अध्यक्षता करने, आधिकारिक कार्यों में भाग लेने, केंद्रीय बैठकों वगैरह में जैसे बेहद जरूरी काम को पूरा कर सकता है. हालांकि, उपमुख्यमंत्री को इसकी आधिकारिक जानकारी भी मुख्यमंत्री को देनी होती है.
राज्य में उप मुख्यमंत्री की भूमिका, शक्ति और कार्य में कोई स्पष्टता नहीं, सब सीएम पर निर्भर
उपमुख्यमंत्री का पद संवैधानिक नहीं होने के चलते राज्य सरकार में उनकी भूमिका, शक्ति और कार्य में कोई स्पष्टता नहीं होती है. बाकी कैबिनेट मंत्रियों की तरह मुख्यमंत्री ही उन्हें विभाग या पोर्टपोलियो सौंपते हैं. जाहिर है कि उपमुख्यमंत्री को मिलने वाले विभाग मुख्यमंत्री की तुलना में छोटे और कम महत्व के होते हैं. इसलिए उपमुख्यमंत्री कैबिनेट में सौंपे गए अपने विभाग के काम को ही सीधे देख सकते हैं. इसके अलावा वह चाहें तो किसी और विभाग के लिए मुख्यमंत्री को सुझाव भर दे सकते हैं. दूसरे राज्यों या केंद्रीय बैठकों में मुख्यमंत्री की गैरहाजिरी में उप मुख्यमंत्री को प्रॉपर प्रोटोकॉल दिया जाता है. यह भी मुख्यमंत्री के ही विवेक पर ही निर्भर होता है कि वह राज्य में एक या उससे ज्यादा उप-मुख्यमंत्री नियुक्त कर सके. क्योंकि संविधान के मुताबिक उपमुख्यमंत्रियों को लेकर फिलहाल कोई तय सीमा नहीं है. मौजूदा समय में आंध्र प्रदेश राज्य में सबसे ज्यादा पांच उप-मुख्यमंत्री हैं.
फिर राज्यों में क्यों बनाए जाते हैं उपमुख्यमंत्री, गठबंधन या पार्टी में गुटबाजी को साधने की कोशिश?
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, मुख्य रूप से राजनीतिक हितों को साधने के लिए ही राज्यों में उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति की जाती है. अमूमन विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के चेहरे के बिना उतरने और जीतने पर पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी पर काबू करने के लिए ऐसा किया जाता है. दूसरी ओर, गठबंधन की राजनीति के दौर में सहयोगी दलों को उनका हक देने के नाम पर आती है. राज्य में उपमुख्यमंत्री बना देने से गठबंधन की सरकार में राजनीतिक स्थिरता और मजबूती आती है. वहीं, एक ही पार्टी की सरकार होने पर टूट-फूट या दल-बदल की आशंकाओं पर लगाम कसी रहती है. कई बार राज्यों में वोट बैंक को साधने के लिए, किसी खास समुदाय को खुश करने के लिए, वफादार या असरदार नेताओं को उपकृत करने के लिए भी राजनीतिक दल उप मुख्यमंत्री बनाने का पैंतरा आजमाते हैं. हालांकि, राज्य सरकार दावा करती है कि इससे प्रशासन के काम में अनुभव का लाभ मिलता है और क्षेत्रीय या जातीय प्रतिनिधित्व बढ़ता है. वहीं, राजनीतिक जानकारों ने विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजे के बाद चार राज्यों में उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति को सीधे तौर पर लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी के तौर पर देखा है.