Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले राजद सुप्रीमो लालू यादव के बेटे तेज प्रताप यादव के खुल्लमखुल्ला प्यार के इजहार ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है. भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोपों से पहले ही घिरे लालू ने सियासी मजबूरियों के आगे बड़े बेटे की कुर्बानी देने में 24 घंटे भी नहीं लगाए. लेकिन तेज प्रताप यादव को परिवार और पार्टी से बाहर निकालने से ये मामला ठंडा नहीं पड़ने वाला. इसने डबल इंजन वाली जेडीयू-बीजेपी सरकार को एक और हथियार पर यादव परिवार पर हमले का दे दिया है. देखने वाली बात होगी कि क्या तेज प्रताप यादव खामोश बैठ जाएंगे या बागी तेवर अपनाएंगे और विरोधी दलों का मोहरा साबित होंगे.
परिवारवादी क्षेत्रीय दलों का वजूद संकट में
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी और खुद पीएम मोदी यूपी-बिहार, तेलंगाना-झारखंड जैसे राज्यों में उन क्षेत्रीय दलों पर करारा हमला बोलते रहे हैं, जो परिवारवाद से पनपे हैं. भाजपा और जदयू का बिहार चुनाव में निशाना अब तेजस्वी यादव होंगे. दोनों दल ये जनता के बीच ये संदेश देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे कि ये परिवार मोह बिहार को भ्रष्टाचार, गुंडाराज और भाई भतीजावाद के दलदल में फिर धकेल देगा.
क्या तेज प्रताप यादव बनेंगे मोहरा
विश्लेषकों की ये भी राय है कि तेज प्रताप यादव का कोई अपना जनाधार तो नहीं है, लेकिन अगर उन्होंने बागी रुख दिखाया तो पार्टी और परिवार के लिए किरकिरी का सबब बनेंगे. अगर वो परिवार पर जवाबी हमला बोलते हैं तो बीजेपी-जेडीयू उसे हथियार बनाने से नहीं चूकेगी. तेजप्रताप यादव खासकर पिता की बजाय छोटे भाई तेजस्वी यादव पर निशाना साध सकते हैं. माना जा रहा है कि तेज प्रताप पर इस कार्रवाई के पीछे उनका ही सियासी दबाव है.
शिवपाल-अखिलेश का उदाहरण
राजनीति के जानकार 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव का भी उदाहरण दे रहे हैं, जब सियासी तौर पर कमजोर मुलायम चाहकर भी शिवपाल और अखिलेश को एक न रखे सके. शिवपाल ने अलग पार्टी बनाकर सपा को पहुंचाया और जनता के बीच परिवार को लेकर सही मैसेज नहीं गया. पार्टी और परिवार में अंदरूनी कलह से अखिलेश चुनाव हार गए और बीजेपी को सबसे बड़े राज्य में सत्ता में आने का रास्ता मिला.
तेजस्वी यादव की छवि को नुकसान!
अंदरखाने राय है कि तेज प्रताप का लव अफेयर तेजस्वी की छवि को भी नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि सीएम नीतीश कुमार हों या डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, वो चुनाव में ये धारणा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे कि लालू के बेटे नाकारा हैं. उनका जो भी सियासी रसूख हैं, वो पिता की बदौलत है और उनके बेटे बिहार में बीजेपी-जेडीयू जैसी सुशासन और सख्त कानून-व्यवस्था वाली सरकार नहीं दे सकते. बिहार में भले ही जातिवादी आधार पर मतदान की परंपरा रही हो, लेकिन यादव वोट बैंक में भी थोड़ी बहुत सेंध लगना तय है.
नीतीश-तेजस्वी की तकरार
राजद और जेडीयू में साल भर पहले जब आखिरी सियासी रिश्ता टूटा तो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच निजी हमले न करने की परंपरा भी टूटती दिखी. तेजस्वी लगातार नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए उन्हें सरकार चलाने में अक्षम बताते हैं और रिमोट कंट्रोल बीजेपी के हाथों में होने की बात करते हैं. नीतीश कुमार को पलटूराम कहना और सदन में दोनों के बीच तीखी नोकझोंक सबने देखी है. ऐसे में नीतीश भी तेजस्वी को घेरना का मौका नहीं चूकेंगे.
युवा वोटरों पर असर
यूपी की तरह बिहार में भी करीब दो तिहाई मतदाताओं की उम्र 35 साल से कम की है. तेजस्वी यादव की युवाओं में लोकप्रियता और स्वीकार्यता रही है, लेकिन तेज प्रताप यादव के मामले से युवा वोटर भी पार्टी से खिसक सकता है.खासकर वो मतदाता जो चुनाव दर चुनाव बिहार में स्थानीय मुद्दों को लेकर पाला बदलता रहा है. तेज प्रताप यादव के बहाने यादव परिवार के और दूसरे स्कैंडल भी विरोधी दल उछाल सकते हैं.