Indian Constitution on Judges: पिछले कुछ दिन से दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा चर्चा में हैं. उनके सरकारी आवास पर लगी आग के बाद मिले नोटों के बंडलों से भूचाल जैसा आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में संज्ञान में लिया है. इन सबके बीच देश में जजों को लेकर एक अलग तरह की चर्चा जारी है. कुछ लोग यह भी जानना चाह रहे हैं कि आखिर यशवंत वर्मा पर क्या कार्रवाई हो सकती है. इस मामले पर क्या होगा यह सुप्रीम कोर्ट तय करेगा लेकिन आइए जानते हैं कि देश में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों को हटाने की प्रक्रिया क्या है. यह प्रक्रिया भी संविधान के अनुसार ही होती है.
असल में न्यायपालिका देश के लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संस्था है ऐसे में इसके स्वतंत्र और निष्पक्ष संचालन के लिए संविधान में क्लियर प्रावधान किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को आजीवन कार्यकाल नहीं दिया जाता लेकिन उन्हें मनमाने तरीके से हटाया भी नहीं जा सकता. किसी भी जज को हटाने की प्रक्रिया Impeachment Process कहलाती है जो बेहद कठिन और जटिल होती है.
संविधान में जजों को हटाने का प्रावधान
अगर संविधान की बात करें तो अनुच्छेद 124(4) सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया को बताता है. जबकि अनुच्छेद 217(1)(b) हाई कोर्ट के जजों के लिए यही प्रक्रिया लागू करता है. संविधान के मुताबिक जज को केवल दो कारणों से हटाया जा सकता है. एक है अयोग्यता जिसमें अगर जज अपने पद का दुरुपयोग करता है भ्रष्टाचार में शामिल होता है या कोई गंभीर नैतिक गलती करता है. दूसरा है अक्षम्यता जिसमें अगर जज मानसिक या शारीरिक रूप से काम करने में असमर्थ हो जाता है.
जज को हटाने की प्रक्रिया
इसे Impeachment Process of Judges कहा जाता है. इसके लिए एक के बाद एक कई कदम होते हैं. जिनमें संसद में प्रस्ताव पेश करना शामिल है. किसी जज को हटाने के लिए संसद में एक महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है. लोकसभा में प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं. राज्यसभा में प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं.
बहुत ही कठिन है प्रक्रिया
इसके बाद जांच समिति का गठन किया जाता है. प्रस्ताव मिलने के बाद लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति एक तीन सदस्यीय समिति का गठन करते हैं. इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज और हाई कोर्ट के एक मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं. यह समिति आरोपों की जांच करती है और रिपोर्ट सौंपती है कि क्या जज दोषी हैं या नहीं.
इसके बाद संसद में मतदान होता है. अगर समिति जज को दोषी पाती है, तो प्रस्ताव को संसद में रखा जाता है. संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में इस प्रस्ताव को पास करना होता है. इसे विशेष बहुमत (Special Majority) से पारित किया जाना चाहिए. यानी सदन के कुल सदस्यों के 50% से अधिक और उपस्थित सदस्यों के कम से कम दो तिहाई सांसदों को इसके पक्ष में वोट देना होगा. अगर संसद प्रस्ताव पारित कर देती है, तो इसे अंतिम रूप से राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति इसे मंजूरी देने के बाद जज को पद से हटा सकते हैं.
क्या अब तक कोई जज हटाया गया है?
अब तक भारत में किसी भी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज को महाभियोग द्वारा सफलतापूर्वक नहीं हटाया गया है. हालांकि कुछ मामलों में महाभियोग प्रक्रिया शुरू जरूर हुई.
- जस्टिस वी रामास्वामी Supreme Court Judge, 1993: यह पहला मामला था जब किसी जज पर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई. लोकसभा में वोटिंग हुई लेकिन कांग्रेस ने मतदान में भाग नहीं लिया, जिससे प्रस्ताव गिर गया.
- जस्टिस सौमित्र सेन Calcutta High Court, 2011: राज्यसभा में प्रस्ताव पास हो गया था लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिससे महाभियोग की जरूरत नहीं रही.
- जस्टिस पीडी दिनाकरण Sikkim High Court, 2011: उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. लेकिन महाभियोग से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया.