अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पिछले एक महीने में कई बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के सैन्य संघर्ष रोकने के लिए मध्यस्थता की है. ट्रंप का दावा है कि उन्होंने दोनों पक्षों से कहा कि अमेरिका ऐसे देशों से कारोबार नहीं करेगा, जो एक दूसरे पर गोली चलाते हों. हालांकि भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति की मध्यस्थता के दावों को सिरे से खारिज किया है. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान करीब चार दिनों में पाकिस्तान पर ताबड़तोड़ हमले किए थे और उसके आतंकी अड्डों के साथ सैन्य ठिकानों को तबाह किया था. हालांकि अमेरिका या किसी अन्य देश की मध्यस्थता के प्रस्ताव या दावे को भारत द्वारा खारिज करने के पीछे कड़वा इतिहास है. भारत का लंबे समय से ये स्पष्ट रुख रहा है कि वो पाकिस्तान के साथ अपनी समस्याओं को द्विपक्षीय ढंग से हल करेगा. दरअसल, शुरुआती दौर में जब भी किसी तीसरे पक्ष की भूमिका आई तो उस देश का पलड़ा पाकिस्तान की ओर झुकता नजर आया.
कश्मीर पर 1948 में पाकिस्तान का हमला
भारत-पाकिस्तान विभाजन के कुछ महीनों बाद ही पाकिस्तानी घुसपैठियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोल दिया. तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लुइस माउंटबेटन ने भारत को संयुक्त राष्ट्र जाने की सलाह दी. भारत ने 1 जनवरी 1948 को ये प्रस्ताव दिया. भारत को उम्मीद थी कि कश्मीर के वैधानिक तरीके से भारत में मिलाने के बाद उस इलाके में उसके अधिकार का सम्मान किया जाएगा. लेकिन ब्रिटेन ने भारत का साथ नहीं दिया, जिसे बहुत से भारतीयों ने विश्वासघात माना. इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने जनवरी-फरवरी 1948 के यूएन सेशन पर अपनी किताब इंडिया ऑफ्टर गांधी में लिखा, सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव का एजेंडा जम्मू-कश्मीर का मुद्दा की जगह भारत-पाकिस्तान का मुद्दा कर दिया गया. भारत ने इसका कड़ा प्रतिरोध किया. उसका कहना था कि ये कदम भारत और पाकिस्तान को बराबरी पर लाकर खड़ा करता है. जबकि भारत ने पाकिस्तान की उकसावेपूर्ण कार्रवाई को झेला है. भारत का तब से ये स्पष्ट मत रहा है कि दुनिया भारत के साथ बर्ताव उसके अपने अधिकारों के हिसाब से करे न कि संघर्ष वाले क्षेत्र के एक पक्ष के तौर पर. भारत लंबे समय में सफल कूटनीति के जरिये इसे मनवाने में कामयाब भी रहा है.भारत ने यूएन के उसी सबक के बाद बड़ी शक्तियों को दूर रखा, जबकि पाकिस्तान लगातार कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा.
शीत युद्ध के दौरान अमेरिका
शीत युद्ध के दौरान जब सोवियत संघ के खिलाफ पश्चिमी देशों की अगुवाई कर रहे अमेरिका को जरूरत थी तो उसने पाकिस्तान का पक्ष लिया. जबकि भारत गुट निरपेक्ष देशों में शामिल था और अफगानिस्तान में सोवियत संघ के हमले के वक्त अमेरिका ने पाकिस्तान को मोहरा बनाया. हरकत उल मुजाहिदीन, लश्कर ए तैयबा जैसे जिहादी संगठनों को पाकिस्तानी सेना के सहारे खड़ा करवाया, ताकि सोवियत यूनियन को हराया जा सके. अमेरिका ने पाकिस्तान की सरकार और सेना को भरपूर समर्थन दिया.
9/11 हमला
अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को जब अलकायदा का हमला हुआ तो उसने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया. उसे अफगानिस्तान में आतंकी संगठनों, खासकर ओसामा बिन लादेन की खोज के लिए पाकिस्तान की जरूरत थी. उसने वॉर ऑन टेरर में मदद के नाम पर पाकिस्तान को एफ-16 जैसे फाइटर जेट दिए. हर साल अरबों डॉलर की मदद भी की. उधर, भारत ने मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ खुद को इतना शक्तिशाली बनाया किन केवल दक्षिण एशिया बल्कि दुनिया में कोई भी उसे नजरअंदाज न कर पाए. वो अपनी समस्याओं के लिए खुद मोर्चा संभालने में सक्षम बना.
हालांकि 1947 में अमेरिका चाहता था कि भारत और पाकिस्तान आपस में बातचीत कर कश्मीर मुद्दे का हल निकालें. अमेरिकी विदेश सचिव ने तब के भारत के राजदूत को यही लिका ता. साथ ही अगर ब्रिटेन के समर्थन से भारत या पाकिस्तान द्वारा संयुक्त राष्ट्र के दखल का प्रस्ताव आता है, खासकर कश्मीर में जनत संग्रह कराने का, तो अमेरिका को उसे समर्थन देना चाहिए.
1962 भारत चीन युद्ध
अमेरिका ने चीन से युद्ध के दौरान भारत की मदद की और सैन्य आपूर्ति की. अमेरिका ने ब्रिटेन के साथ दबाव डाला कि भारत और पाकिस्तान लंबित मुद्दों का हल करें.लेकिन वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकला. भारत-चीन जंग के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने पाकिस्तान को एक और मोर्चा खोलने से रोका.अमेरिकी थिंकटैंक ब्रुकिंग्स के सीनियर फेलो रिडेल के मुताबिक, तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने पाकिस्तान के तटस्थ रहने के बदले कश्मीर में भारत से फायदा पाने की बात कैनेडी से की थी. लेकिन कैनेडी ने दो टूक कह दिया था कि ऐसा कुछ नहीं होगा और अगर पाकिस्तान कुछ उकसावे वाली कार्रवाई करता है तो अमेरिका उसे गंभीरता से लेगा.
1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध
अमेरिका ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान का खुला समर्थन किया और अपने युद्धपोत बंगाल की खाड़ी की ओर भेजे. अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक सहयोग कराने से अमेरिकी सरकार खुश थी. लिहाजा अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखा. लेकिन बंगाल में जिस तरीके से नरसंहार हुआ और पाकिस्तान के खिलाफ गु्स्सा था, उससे अमेरिका चाहकर भी बहुत कुछ नहीं कर सका.
कारगिल युद्ध
कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका का भारत की तरफ सकारात्मक रुख दिखा. रिडेल ने 2019 में लिखा, नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किए जाने पर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया. उसने खुले तौर पर पाकिस्तान की आक्रामक कार्रवाई के खिलाफ भारत का पक्ष लिया. क्लिंटन के कड़े रुख के कारण तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ और सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ को कदम पीछे खींचने पड़े. क्लिटंन वर्ष 2000 में भारत आए,जो 20 सालों में पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे, जो नई दिल्ली आए थे. उन्होंने भारत में पांच दिन बिताए, जबकि पाकिस्तान में महज कुछ घंटे. उसके बाद भारत और अमेरिका के रिश्तों में नई बुनियाद पड़ी.