India Iran relations: पिछले कुछ सालों से भले ही इजरायल के साथ भारत ने अच्छे संबंध बनाए हों लेकिन भारत-ईरान का रिश्ता भी सदियों पुराना है. भाषा.. संस्कृति और परंपरा के स्तर पर दोनों के बीच गहरा संबंध रहा है. भारत की आजादी के बाद 1950 में दोनों देशों ने औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध बनाए. लेकिन 1978 से 1993 तक रिश्ते ठंडे पड़े रहे. इसके बाद भारत ने एक ओर इजरायल से रिश्ते मजबूत किए तो दूसरी ओर ईरान से भी संवाद शुरू किया. इस समय जबकि इजरायल-ईरान टकराव चल रहा है तो एक्सपर्ट्स इसे कई नजरिए से देखते हैं. सवाल यही है कि ईरान अगर हारा तो भारत के लिए मिडिल ईस्ट में क्या समीकरण बनेंगे.
बहुध्रुवीय दुनिया बनाम अमेरिकी वर्चस्व..
ईरान लंबे समय से अमेरिकी वर्ल्ड ऑर्डर को चुनौती देता रहा है जबकि भारत भी मल्टीपोलर दुनिया की वकालत करता रहा है. लेकिन मौजूदा हालात में जब अमेरिका खुलकर इजरायल का समर्थन कर रहा है और ईरान अलग-थलग पड़ता दिख रहा है तो भारत की मल्टीपोलर वर्ल्ड की उम्मीदें खासकर उस क्षेत्र में दूर दिख रही हैं. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि भले ही ईरान कमजोर हो जाए लेकिन अमेरिका का भी एकतरफा दबदबा मिडिल ईस्ट में नहीं टिक सकता.
क्या भारत की स्थिति जटिल हो रही?
बीबीसी की एक रिपोर्ट में एक पूर्व राजदूत के हवाले से बताया कहा कि भारत की विदेश नीति इस मुद्दे पर थोड़ी और क्लियर होने की जरूरत है. उनका कहना है कि भारत घरेलू राजनीति पर ज्यादा ध्यान दे रहा है और विदेश नीति में निर्णायक भूमिका निभाने में और लेने की जरूरत है. चाबहार बंदरगाह हो या द्विपक्षीय व्यापार.. भारत और ईरान के संबंधों में ठोस प्रगति नहीं हुई है.
संतुलन बनाना या अवसर को दूर करना?
यह बात सही है कि भारत हमेशा से संकट की घड़ी में संतुलन की रणनीति अपनाता रहा है. चाहे रूस-यूक्रेन युद्ध हो या अब ईरान-इजरायल संघर्ष हो भारत किसी पक्ष की खुली निंदा नहीं करता. यह रुख पुराना है लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में भारत की इस चुप्पी को रणनीतिक कमजोरी के रूप में भी देखा जाने लगता है. एससीओ में भी भारत ने इजरायल की आलोचना वाले बयान से दूरी बना ली जिससे उसकी स्थिति और अधिक अस्पष्ट हो गई.
ईरान... क्या संकट में भी जरूरी है?
इस पर भी एक्सपर्ट्स का कहना है कि ईरान भारत के लिए बेहद अहम है खासकर पाकिस्तान को बायपास कर मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए. ऊर्जा सुरक्षा और खाड़ी देशों में बसे 90 लाख भारतीयों के हित भी इसी क्षेत्र से जुड़े हैं. लेकिन इस पूरे इलाके में ईरान को अकेला समझा जाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस युद्ध में ईरान के हारते ही वहां अमेरिकी समर्थक सरकार बनेगी. जो शायद ही भारतीय हितों के हिसाब से ठीक होगी. इजरायल रक्षा और टेक्नोलॉजी के स्तर पर भारत का बड़ा सहयोगी है. शायद इसलिए उसके साथ संबंध प्राथमिकता में आते हैं.
फिलहाल ईरान की संभावनाएं क्या हैं..
इतिहास गवाह है कि 1953 में अमेरिका की मदद से ईरान में तख्तापलट हुआ और उसके जवाब में 1979 की क्रांति आई. तब से अमेरिका और ईरान की तनातनी जारी है. लेकिन यह भी सही है कि ईरान को संकट से उबरना आता है. इराक के साथ 8 साल की लड़ाई हो या मौजूदा हालात हों. ईरान ने खुद को बार-बार खड़ा किया है. भारत के लिए भी यह जरूरी है कि मिडिल ईस्ट जैसे संवेदनशील क्षेत्र में अपने लिए क्या बेहतर है वही करता रहे. देखना होगा अगले कुछ दिनों में यहां क्या होने वाला है.