israel iran war: इजरायल और ईरान के बीच चल रहे जंग के बीच पहली बार भारत के लिए बहुत बड़ी मुश्किल स्थिति पैदा हो गई है. भारत के लिए एक तरफ इजरायल जो भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार है, खासकर हथियारों के व्यापार में और दूसरी ओर ईरान जहां पर भारत के महत्वपूर्ण हित शामिल हैं, जिसमें चाबहार बंदरगाह परियोजना भी शामिल है. ऐसे में बड़ी मुश्किल है कि आखिर भारत किस देश का साथ देगा. ऐसे में जानते हैं कि भारत का अभी तक ईरान परमाणु परियोजना को लेकर क्या राय रही है. और अब क्या रहने वाली है.
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर भारत का क्या रूख?
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर भारत हमेशा पसोपेश में रहा है. एक तरफ उसका 'जिगरी दोस्त' इजरायल और अमेरिका है, तो दूसरी तरफ ईरान, जिसके साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ते हैं. लेकिन 2005 से 2024 तक भारत की नीति में आए बदलाव इस बात को साफ करते हैं कि भारत दोनों देशों के साथ कभी 'गद्दारी' नहीं किया. बल्कि अपने हितों और कूटनीति के बीच संतुलन बनाता आया है. आइए समझते हैं पूरी कहानी.
2005 में भारत ने ईरान का किया विरोध
2005 में भारत ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में ईरान के खिलाफ वोट दिया. 24 सितंबर को IAEA के प्रस्ताव (GOV/2005/77) में कहा गया कि ईरान अपनी सुरक्षा संधि का पालन नहीं कर रहा. भारत ने 21 अन्य देशों के साथ यह वोट दिया, जो उस समय बड़ा कदम था. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत उस समय अमेरिका के साथ अपनी परमाणु डील पर बात कर रहा था. अमेरिका का दबाव था और भारत ने जिम्मेदार परमाणु शक्ति की छवि बनाने के लिए ईरान के खिलाफ वोट दिया. लेकिन भारत ने यह भी सुनिश्चित किया कि मामला तुरंत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में न जाए.
2006 में ईरान के खिलाफ फिर वोट दिया
2006 में भी भारत ने IAEA में ईरान के खिलाफ वोट दिया जब उसका मामला UNSC में भेजा गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, “ईरान को शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा का अधिकार है, लेकिन उसे IAEA के नियम मानने होंगे.” बाद में जब भारत की अमेरिका के साथ परमाणु डील पक्की हो गई तो ईरान के खिलाफ वोट देने का दबाव कम हुआ. 2007 से 2024 तक जब यह मामला UNSC में था, भारत को कोई सख्त रुख नहीं लेना पड़ा.
2007 से 2024 तक भारत पर कोई दबाव नहीं रहा
2015 में अमेरिका ने ईरान के साथ JCPOA (परमाणु समझौता) किया, लेकिन 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने इसे तोड़ दिया. इसके बाद ईरान का परमाणु कार्यक्रम फिर चर्चा में आया. भारत को ईरान से तेल आयात रोकना पड़ा पर चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट चलता रहा.
जून 2024 में भारत ने बदली नीति
2024 में भारत की नीति बदल गई. जून 2024 में IAEA में अमेरिका ईरान के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आया, लेकिन भारत ने वोट देने से मना कर दिया. 35 में से 19 देशों ने ईरान की निंदा की पर भारत उन 16 देशों में था, जो तटस्थ रहना चुना.
सितंबर 2024 में भी भारत ने नहीं डाला वोट
सितंबर 2024 में भी भारत ने ऐसा ही किया और ईरान के खिलाफ वोट ही नहीं दिया. जब ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका ने ईरान की आलोचना वाला प्रस्ताव लेकर आए थे. इस साल जून में भी भारत ने IAEA में ईरान के खिलाफ वोट नहीं दिया, जब उसे 1974 की सुरक्षा संधि तोड़ने का दोषी ठहराया गया था.
भारत हर बार रहा तटस्थ?
इन तमाम सालों की घटनाएं देखेंगे तो पता चलेगा कि भारत का यह तटस्थ रुख उसकी कूटनीति का हिस्सा रहा है. एक तरफ इजरायल और अमेरिका के साथ भारत के मजबूत रक्षा और सुरक्षा रिश्ते हैं, लेकिन ईरान के साथ भी पुराने रिश्ते हैं. इसलिए तो भारत चाहता है कि ईरान शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम चलाए, लेकिन नियमों का पालन करे. 2005 में खिलाफ वोट से लेकर 2024 में तटस्थ रहने तक, भारत ने तो किसी को धोखा दिया है न ही एकतरफा साथ दिया है. वह बस अपने हितों और वैश्विक शांति के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है. आगे क्या होगा यह समय बताएगा.