Wild Animals attack in Kerala: केरल सरकार टाइगर-तेंदुए और जंगली हाथी को मारने के लिए बड़ा अभियान चलाना चाहती है. इसके लिए उसने केंद्र सरकार से इजाजत मांगी है. उसने केरल वन्यजीव कानून (सुरक्षा) अधिनियम 1972 में बदलाव की मांग की है कि ताकि ऐसे जंगली जानवरों को मारा जा सके, जो इंसानों के लिए खतरा बन गए हों. सरकार का कहना है कि इंसानों की बस्ती में घुसने वाले इन जानवरों ने तबाही मचा रखी है. केरल सरकार चाहती है कि बोनट मैक्यू को वन्यजीव कानून की अनुसूची 1 से हटाया जाए.
जंगली जानवरों का हमला केरल में बड़ा मुद्दा रहा है. सरकार का कहना है कि उसके 941 में से करीब एक तिहाई 273 गांवों में ऐसे जानवरों का आतंक है. इन जंगली जानवरों में टाइगर-तेंदुआ, हाथी, जंगली सुअर, बंदरों की प्रजाति बोनट मैक्यू, जंगली सांड भी शामिल है. इसमें मोर का भी नाम है. सरकार का कहना है कि इन जंगलों जानवरों के लगातार हमले से किसान खेती की बड़ी जमीन पर कोई फसल नहीं कर पाते. खड़ी फसलों को भी ये बर्बाद कर देते हैं. इंसानों पर जानलेवा हमले करते हैं.
केरल सरकार के मुताबिक, वर्ष 2016-17 से 2024-25 31 जनवरी के वक्त के दौरान 919 लोगों की मौत के साथ 8967 लोग वन्यजीव हमलों में घायल हुए हैं. हालांकि जंगली जानवरों का सुरक्षित इलाका लगातार कम हुआ है. जंगली इलाकों में उनका चारा और फसलों का चक्र भी बदला है. लेकिन जंगली सुअरों और बंदरों की बढ़ती आबादी से इंसानी आबादी में भी दहशत है.
अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा कानून के कई प्रावधान आपात स्थिति में समय रहते कार्रवाई करने में बाधा बनते हैं. खासकर शेड्यूल 1 के तहत संरक्षित पशुओं के मामले में. ऐसे खतरनाक जंगली जानवरों को मारने के पहले राज्य के मुख्य वन संरक्षक अधिकारी को यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि उसे जिंदा पकड़ा नहीं जा सकता, या फिर उसे बेहोश करके कहीं और दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जा सकता. ऐसे जानवरों को कैद में नहीं रखा जाना चाहिए. सरकार को बाघ संरक्षण प्राधिकरण और प्रोजेक्ट एलीफैंट की सिफारिशों का भी ध्यान रखना पड़ता है.
जिलाधिकारियों को ऐसी अराजकता के समय एक्शन लेने का अधिकार है, अदालती आदेश ऐसी शक्तियों पर अंकुश लगाती हैं. राज्य के वन मंत्री एके ससींद्रन ने कहा कि केंद्र 1972 के कानून में संशोधन करे ताकि आदमखोर जंगली जानवरों को मारा जा सके.