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Explainer: वरुण गांधी को बीजेपी ने दिया था रायबरेली से चुनाव लड़ने का ऑफर, फिर क्यों कर दिया मना

Varun Gandhi on Rae Bareli Seat: वरुण गांधी ने रायबरेली लोकसभा सीट पर उम्मीदवार बनने के बीजेपी हाईकमान के ऑफर को ठुकरा दिया है. सूत्रों के मुताबिक उन्होंने इसकी कोई वजह नहीं बताई है. लेकिन माना जा रहा है कि उन्होंने दूर की सोचकर यह फैसला लिया है.

Explainer: वरुण गांधी को बीजेपी ने दिया था रायबरेली से चुनाव लड़ने का ऑफर, फिर क्यों कर दिया मना
Devinder Kumar|Updated: Apr 26, 2024, 11:17 PM IST
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Rae Bareli Lok Sabha Seat Update: बीजेपी ने नाराज चल रहे वरुण गांधी ने पार्टी को जोर का झटका दिया है. सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने उन्हें गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था लेकिन सोच-विचार के बाद वरुण गांधी ने इनकार कर दिया है. इस सीट से वरुण गांधी की ताई सोनिया गांधी मौजूदा सांसद हैं, जो अब राज्यसभा मेंबर बन चुकी हैं. उनकी खाली हुई सीट पर प्रियंका गांधी के उतरने की संभावना जताई जा रही है. प्रियंका गांधी से वरुण की बॉन्डिंग अच्छी मानी जाती है. ऐसे में माना जा रहा है कि परिवार में एकता बनाए रखने के लिए वरुण गांधी ने पैर पीछे खींचना मुनासिब समझा है. 

लोकप्रियता के बावजूद काट दिया पत्ता

बता दें कि बीजेपी के फायरब्रांड नेता रहे वरुण गांधी पीलीभीत सीट से मौजूदा सांसद हैं. वहां पर उनकी जबरदस्त लोकप्रियता रही है. हालांकि पार्टी ने बिना कोई कारण बताए इस बार उनका टिकट काट दिया और कहीं से भी प्रत्याशी घोषित नहीं किया. हालांकि उनकी मां मेनका गांधी को बीजेपी ने टिकट दिया है. पार्टी के इस फैसले के बाद से वरुण सिंह शांत हैं, जिसे उनकी नाराजगी का संकेत माना जा रहा है. 

रायबरेली से चुनाव लड़ने का दिया ऑफर

पार्टी सूत्रों के मुताबिक अब रायबरेली से प्रियंका गांधी के उतरने की आहट के बाद बीजेपी ने वहां से वरुण गांधी को उतारने का प्लान बनाया था. इसके लिए पार्टी नेताओं के जरिए वरुण गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने का मैसेज भेजा गया था.  ऐसा करके बीजेपी वहां के चुनाव को गांधी वर्सेज गांधी बनाना चाहती थी. हालांकि वरुण गांधी को यह योजना पसंद नहीं आई और उन्होंने ऑफर लेकर पहुंचे नेताओं से इनकार कर दिया. 

पूरी नहीं हुई पुनरुत्थान की उम्मीद

वरुण गांधी को मोदी सरकार में अपने पुनरुत्थान की उम्मीद थी. लेकिन उनकी यह आशा पूरी नहीं हुई. मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में उन्हें एक बार भी मंत्री बनने का मौका नहीं मिला और पूरी तरह इग्नोर रखा गया. हालांकि मेनका गांधी को कैबिनेट में जगह जरूर मिल गई थी. अपनी इस बेकद्री से निराश वरुण गांधी पिछले कुछ सालों में इशारों- इशारों में मोदी सरकार पर हमले करने लगे थे. उनके इस मूव से पार्टी के शीर्ष नेता असहज महसूस करने लगे थे. अंत में जब टिकट बंटवारे का समय आया तो हाईकमान ने उन्हें बे-टिकट कर पैदल कर दिया.

मजबूरी में पहुंची वरुण गांधी के पास

रायबरेली सीट शुरुआत से कांग्रेस का गढ़ रही है. यहां तक कि पिछले 10 साल में भी बीजेपी यहां पर जीत हासिल नहीं कर पाई थी. इसलिए बीजेपी इस सीट पर ऐसा उम्मीदवार ढूंढ रही थी, जो यहां गांधी परिवार का दबदबा तोड़ सके. इसके लिए उसने आंतरिक सर्वे करवाया और पार्टी नेताओं दिनेश सिंह, ब्रजेश पाठक और विनय कटियार समेत कई संभावित नेताओं की उम्मीदवारी पर विचार किया. हालांकि कोई भी नेता ऐसा नहीं दिखा, जो इस सीट पर कांग्रेस के पांव उखाड़ सके. इसके बाद मजबूरी में वरुण गांधी के नाम पर सहमति बनी. हालांकि वरुण गांधी के इनकार के बाद पार्टी अब खुद पैदल हो गई है.

वरुण ने क्यों किया इनकार?

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक वरुण गांधी बीजेपी में घुटा हुआ महसूस कर रहे हैं. वे अब अपने लिए नया राजनीतिक विकल्प ढूंढ रहे हैं. उनकी ताऊ की बेटी प्रियंका गांधी से अच्छी बॉन्डिंग है. भविष्य में कब कांग्रेस में वापसी करनी पड़ जाए, यह वरुण गांधी अच्छी तरह जानते हैं. ऐसे में अगर वे रायबरेली से प्रियंका के मुकाबले में उतरते तो फिर कांग्रेस में प्रवेश का दरवाजा खुलने से पहले ही बंद हो जाता. इसलिए दूर की सोचते हुए उन्होंने रायबरेली में बीजेपी उम्मीदवार बनने से इनकार कर दिया है, जिससे भविष्य के रास्ते खुले रहें.  

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