PMML Letter to Rahul Gandhi: देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का एडविना माउंटबेटन, जयप्रकाश नारायण, अल्बर्ट आंइस्टीन, पद्मजा नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम और गोविंद बल्लभ समेत समेत कई प्रमुख हस्तियों के साथ निजी पत्राचार सुर्खियों में है. प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी (पीएमएमएल) ने पहली बार पंडित नेहरू द्वारा प्रमुख हस्तियों को लिखे पत्रों को लौटाने का अनुरोध गांधी परिवार से किया है. 2008 में यूपीए शासन के दौरान इन पत्रों को सोनिया गांधी को दे दिया गया था. ऐसे पत्रों के 51 बक्से उनको दिए गए.
वैसे तो इन पत्रों में क्या लिखा है ये बता पाना बहुत मुश्किल है लेकिन एडविना और नेहरू के बीच पत्राचार के बारे में कुछ जानकारियां मिलती हैं. एडविना माउंटबेटन की बेटी पामेला हिक्स ने ऐसे कुछ पत्र देखे थे. उन्होंने अपनी किताब Daughter of Empire: Life as a Mountbatten में उनका जिक्र किया है.
नेहरू-एडविना के पत्र?
पामेला ने लिखा है कि उनकी मां और पंडित नेहरू के बीच गहरे संबंध (Profound Relationship) थे. 1947 में जब भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड लुई माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडविना भारत आए उसके बाद ही ये संबंध विकसित हुए.
पामेला के मुताबिक उन्होंने इन पत्रों को देखकर महसूस किया कि पंडित नेहरू और उनकी मां एक-दूसरे के प्रति प्रेम और गहरे सम्मान का भाव रखते थे. एडविना, पंडित नेहरू की बौद्धिकता और उदात्त भावनाओं की प्रशंसक थीं. लेकिन साथ ही पामेला ने ये भी व्यक्त किया कि उन दोनों के बीच भले ही गहरे संबंध थे लेकिन करीबी संबंध नहीं थे क्योंकि वे शायद ही कभी एकांत में मिलते थे. वे हमेशा स्टाफ, पुलिस और अन्य लोगों के बीच घिरे होते थे.
इसी तरह पामेला ने लिखा है कि जब एडविना भारत से जा रही थीं तो वो एक एमेराल्ड रिंग नेहरू को देना चाहती थीं लेकिन वो जानती थीं कि वो नहीं लेंगे तो उन्होंने पंडित नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी को वो दे दी.
पामेला ने अपनी किताब में एडविना के लिए पंडित नेहरू की फेयरवेल स्पीच का भी जिक्र किया है. पंडित नेहरू ने उसमें कहा था, ''आप जहां भी गई हैं, सांत्वना लेकर गई हैं, आशा और प्रोत्साहन लेकर आई हैं...लिहाजा इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि भारत के लोग आपसे प्यार करते हैं और आपको अपने में से एक के रूप में देखते हैं और वो इस बात से व्यथित हैं कि आप जा रही हैं?"
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने अपनी आत्मकथा 'इंडिया विंस फ्रीडम' में भी लिखा है कि नेहरू पर एडविना का गहरा प्रभाव था. उन्होंने लिखा है, 'जवाहलाल, लॉर्ड माउंटबेटन से प्रभावित थे लेकिन उनसे भी ज्यादा वो लेडी माउंटबेटन से प्रभावित थे. वह न केवल अतिशय इंटेलीजेंट थीं बल्कि बहुत आकर्षक और दोस्ताना स्वभाव की थीं.'
पीएमएमएल को क्यों चाहिए ये पत्र?
प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी (पीएमएमएल) के एक सदस्य ने सोमवार को कहा कि उन्होंने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से संबंधित निजी दस्तावेजों के संग्रह को व्यापक रूप से सुलभ बनाने के लिए कहा है, जिन्हें तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गांधी के कहने पर 2008 में तत्कालीन नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय (एनएमएमएल) से वापस ले लिया गया था. अहमदाबाद के एक स्थानीय कॉलेज में इतिहास पढ़ाने वाले रिजवान कादरी ने सितंबर में भी कांग्रेस नेता सोनिया गांधी को पत्र लिखकर नेहरू से संबंधित उन निजी दस्तावेजों तक भौतिक या डिजिटल पहुंच की अनुमति देने का अनुरोध किया था, जो उनके पास हैं. उन्होंने कहा कि इन दस्तावेजों में नेहरू और जयप्रकाश नारायण, एडविना माउंटबेटन और अल्बर्ट आइंस्टीन सहित अन्य हस्तियों के बीच पत्राचार से संबंधित रिकॉर्ड हैं.
नेहरू मध्य दिल्ली में तीन मूर्ति भवन में रहते थे, जो उनकी मृत्यु के बाद नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय (एनएमएमएल) बन गया, जिसमें पुस्तकों और दुर्लभ अभिलेखों का समृद्ध संग्रह है. एनएमएमएल सोसाइटी ने जून 2023 में अपनी विशेष बैठक में इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय (पीएमएमएल) सोसाइटी करने का संकल्प लिया था.
कादरी (56) ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को लिखे अपने पत्र में दिल्ली के ऐतिहासिक तीन मूर्ति भवन में स्थित तत्कालीन एनएमएमएल की विरासत पर एक संक्षिप्त नोट और 13 फरवरी, 2024 को आयोजित पीएमएमएल की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) के कुछ अंश भी साझा किए हैं.
पत्र के साथ संलग्न दस्तावेज में उद्धृत बैठक के ब्योरे में लिखा है, ‘‘पीएमएमएल ने एजीएम को यह भी बताया कि अभिलेखों के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू के निजी दस्तावेजों, स्वतंत्रता-पूर्व और स्वतंत्रता-पश्चात दोनों अवधियों के, 1971 से शुरू होकर कई हिस्सों में पीएमएमएल को हस्तांतरित किए गए थे.’’ इसमें लिखा है, ‘‘यह हस्तांतरण जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड द्वारा किया गया था, जो नेहरू की कानूनी उत्तराधिकारी श्रीमती इंदिरा गांधी की ओर से कार्य कर रहा था. वे परोक्ष तौर पर अक्टूबर 1984 में अपने निधन तक इन दस्तावेजों की मालकिन रहीं.’’
बैठक के ब्योरे में लिखा है कि आंतरिक नोट की प्रस्तुति के मद्देनजर, कई सदस्यों की ओर से आम तौर पर निजी दस्तावेज की कानूनी स्थिति के बारे में प्रश्न थे. इसके अनुसार, इन अभिलेखीय संग्रहों के स्वामित्व, संरक्षकता, कॉपीराइट और उपयोग जैसे मुद्दों पर ‘कानूनी राय’ लेने का निर्णय लिया गया. इसके अनुसार यह पता चला है कि ऐतिहासिक दस्तावेजों का एक महत्वपूर्ण संग्रह, जिसमें उल्लेखनीय हस्तियों के साथ पत्राचार शामिल हैं, ‘‘श्रीमती सोनिया गांधी के अनुरोध पर 2008 में नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय (एनएमएमएल) से वापस ले लिया गया था. 51 कार्टन वाला यह संग्रह भारत की ऐतिहासिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.’’
राहुल गांधी को लिखे अपने पत्र में कादरी ने कहा कि नेहरू से जुड़े ये दस्तावेज ‘‘भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण दौर में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं’’. पत्र में कहा गया है, ‘‘2008 में, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की तत्कालीन अध्यक्ष और वर्तमान कांग्रेस संसदीय दल क प्रमुख सोनिया गांधीजी के अनुरोध पर इन दस्तावेजों का एक संग्रह पीएमएमएल से वापस ले लिया गया था.’’
कादरी ने कहा, ‘‘हम समझ सकते हैं कि ये दस्तावेज ‘नेहरू परिवार’ के लिए व्यक्तिगत महत्व रख सकते हैं. हालांकि, पीएमएमएल का मानना है कि जयप्रकाश नारायण जी, पद्मजा नायडू जी, एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, अरुणा आसफ अली जी, विजया लक्ष्मी पंडित जी, बाबू जगजीवन राम जी, गोविंद बल्लभ पंत जी जैसी हस्तियों के साथ पत्राचार सहित इन ऐतिहासिक सामग्रियों को अधिक व्यापक रूप से सुलभ बनाने से विद्वानों और शोधकर्ताओं को बहुत लाभ होगा.’’
अपने पत्र में, कादरी ने संभावित समाधानों की खोज में सहयोग का सुझाव दिया है, जिसमें ‘‘वापस लिए गए दस्तावेजों को उचित संरक्षण और पहुंच के लिए पीएमएमएल को संभावित रूप से वापस करने पर चर्चा करना’’ और ‘‘दस्तावेजों की उच्च गुणवत्ता वाली डिजिटल प्रतियां तैयार की सुविधा प्रदान करना शामिल हो सकता है, जो शोधकर्ताओं को उन तक पहुंचने की अनुमति देगा जबकि यह सुनिश्चित होगा कि मूल सुरक्षित रहे.’’
उन्होंने अपने पत्र में कहा, ‘‘विपक्ष के नेता के रूप में, मैं आपसे इस मुद्दे का संज्ञान लेने और भारत की ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण की वकालत करने का आग्रह करता हूं. हमारा मानना है कि एक साथ काम करके, हम भविष्य की पीढ़ियों के लाभ के लिए इन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों का उचित संरक्षण सुनिश्चित कर सकते हैं.’’