प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक साल पहले एनडीए सरकार जब तीसरी बार सत्ता में आई थी तो सबसे बड़ा सवाल था कि क्या सहयोगी दलों की बैसाखी पर टिकी ये सरकार स्थिरता दे पाएगी. मगर मोदी 3.0 का एक साल पूरा होते-होते बीजेपी ने बाजी पलट दी है. इस एक साल में कुछ ऐसे बड़े फैसले रहे हैं, जिन्होंने मोदी सरकार की साख को और मजबूत किया है.
आर्थिक सुधारों पर जोर, मध्यम वर्ग पर फोकस
केंद्र सरकार ने मोदी 3.0 के पहले बजट में देश की रीढ़ बने मध्यम वर्ग को बड़ी राहत देते हुए 12 लाख रुपये तक की सालाना आय को टैक्स फ्री कर दिया. पुरानी और नई पेंशन को लेकर नाराज कर्मचारियों के लिए यूनीफाइड पेंशन स्कीम पेश की. खुद वर्ल्ड बैंक ने माना है कि पिछले 11-12 सालों में भारत में अत्यधिक गरीबी 16.2 फीसदी से घटकर महज 2.3 फीसदी हो गई है. अग्निवीरों को विभिन्न राज्यों और अर्धसैनिक बलों में आरक्षण देकर भी तमाम आशंकाएं दूर की गई हैं.
सामाजिक सुधारों पर भी अडिग सरकार
बहुमत की परवाह किए बिना पीएम मोदी ने सुधारों पर कोई समझौता न करने का रुख दिखाया है. एक देश-एक चुनाव का बिल संसद में पेश करना इसका उदाहरण है कि गठबंधन सरकार में भी बीजेपी अपने एजेंडे से पीछे नहीं हटेगी. भाजपा ने नीतीश औऱ नायडू को भी इस मुद्दे पर भरोसे में लिया. वक्फ संशोधन कानून को भी संसद से पारित कराया गया है. गठबंधन के दलों में मुस्लिम वोटबैंक की चिंता से इतर सरकार ने दो टूक कहा कि ये कानून सरकारी संपत्तियों-स्मारकों पर अनुचित दावों और वक्फ प्रापर्टी में कायम भ्रष्टाचार को दूर करने की दिशा में कदम है.
ऑपरेशन सिंदूर- आतंकवाद से जंग का नया सिद्धांत
आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति वाली बीजेपी सरकार ने कश्मीर में पर्यटन को निशाना बनाने वाले पहलगाम आतंकी हमले को बेहद गंभीरता से लिया. पीएम मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिये न केवल पाकिस्तान में जैश-लश्कर के आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया, बल्कि उसके सैन्य अड्डों को भी तबाह किया. ऑपरेशन सिंदूर को स्थगित करने के साथ भारत ने दो टूक कह दिया कि अब ये नियो नॉर्मल पॉलिसी है, यानी अगर भारत पर कोई आतंकी हमला होता है तो हर बार ऐसा माकूल जवाब दिया जाएगा. जैसे की उरी हमले और पुलवामा हमले के समय भी किया गया था. ऑपरेशन सिंदूर के बाद कूटनीतिक मोर्चे पर सभी दलों को साथ लेकर चलने में भी सरकार ने कोई झिझक नहीं दिखाई.
नक्सलवाद का सफाया
मोदी 2.0 के वक्त ही गृह मंत्री अमित शाह ने दो टूक कह दिया था कि मोदी सरकार मार्च 2026 तक नक्सलवाद का बचे-खुचे इलाकों से भी खत्म कर देगी.पिछले कुछ महीनों में बस्तर से लेकर दंतेवाड़ा तक बसवराज समेत कई बड़े माओवादी कमांडर ढेर हैं और सौ के करीब नक्सली भी मारे जा चुके हैं. यह सरकार की दृढ़ता और स्पष्टता को दिखाता है. सरकार ने पूर्वांचल में अरुणाचल से लेकर कश्मीर में चिनाब रेलवे ब्रिज तक विकास परियोजनाओं की जो नींव रखी है, वो उग्रवाद और आतंकवाद प्रभावित इलाकों में बड़ा सकरात्मक बदलाव लाने में मददगार साबित होगी.
जातिगत जनगणना का ब्रह्मास्त्र
मोदी सरकार ने न केवल आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मोर्चे पर दमखम दिखाया, बल्कि सामाजिक समीकरणों को साधने में भी वो पीछे नहीं दिखी. जातिगत जनगणना कराने का निर्णय दिखाता है कि भाजपा ने कैसे लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों से सबक लिया है. पिछड़ों और दलितों के बीच मोदी सरकार को लेकर गलतफहमी पैदा करने का वो कोी मौका अब विपक्ष को नहीं देना चाहती. जातीय जनगणना कराकर बिहार विधानसभा चुनाव के पहले एनडीए ने विरोधियों से सबसे बड़ा मुद्दा छीन लिया है. साथ ही बीजेपी ने सहयोगी दल जेडीयू और नीतीश कुमार का भी मान बढ़ाया है. यही वजह है कि नीतीश स्वयं सार्वजनिक मंच पर ये कहना नहीं भूलते कि अब वो कभी इधर उधर नहीं जाएंगे.