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वो छात्र संगठन जिससे निकले कई खूंखार नक्सली कमांडर, किताबें छोड़ उठाए हथियार

Naxal Encounter: नक्सलवाद के अंत के लिए केंद्र सरकार ने मार्च 2026 तक की समयसीमा तय कर रखी है. सुरक्षाबल इनके खिलाफ बड़ा ऑपरेशन चला रहे हैं, जिनमें कई नक्सली कमांडर ढेर हुए हैं, जिनका संबंध एक छात्र संगठन से मिला है.

Naxal Operation
Naxal Operation
Amrish Kumar Trivedi|Updated: May 26, 2025, 08:13 AM IST
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Naxalite Commander Encounter: भारत सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद के पूरे तरह से अंत का जो लक्ष्य रखा था, उसे हाल में कई बड़े नक्सली कमांडरों के मारे जाने से बड़ी मजबूती मिली है. लेकिन क्या आपको पता है कि नक्सलियों के इन कमांडरों ने कहां और कैसे हथियार थामे.ये नक्सली कमांडर रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन से जुड़े हुए थे, जिनसे कई बड़े माओवादी नेता निकले. 

सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए बासवराजू और उनके बाद कमांड संभालने वाले थिपिरी तिरुपति उर्फ देवजी भी इसी छात्र संगठन की उपज हैं. सीपीआई माओवादी का प्रवक्ता मलोजुला वेनुगोपाल राव उर्फ सोनू भी RSU से जुड़ा है.

अप्रैल 1972 में उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद के युवा छात्र नेता जॉर्ज रेड्डी की कथित तौर पर दक्षिणपंथी समूह के सदस्यों ने हत्या कर दी. इसके बाद जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए. तीन साल बाद 20 फरवरी 1975 को चरमपंथी छात्र संगठन (Radical Students Union) का जन्म हुआ. लेकिन इसकी गतिविधियों को देख 1992 में इस पर पाबंदी लगा दी गई.

देश में इससे पहले 1960-70 के दशक में नक्सलबाड़ी आंदोलन भी देखने को मिले, जिससे माओवाद ने सिर उठाया. लेकिन जॉर्ज रेड्डी की हत्या ने बड़ा असर दिखाया. उस्मानिया यूनिवर्सिटी और रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे तमाम संस्थानों में उस वक्त अशांति थी. यहां के छात्र आंदोलनों से कई नेता आरएसयू से जुड़े.

उस वक्त आरएसयू को पीपुल्स वॉर ग्रुप-PWG (सीपीआई मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की छात्र शाखा माना जाता था. पीडब्ल्यूजी से प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन जुड़ा था और इसे 1975 में अलग होकर आरएसयू बना. गरीबी, जातिवाद और जमींदारी प्रथा के खिलाफ गांवों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में प्रदर्शन हुए. आंध्र में 1967 से 1970 के बीच श्रीकाकुलम किसान आंदोलन में इस संगठन के छात्र हिस्सेदार थे.कई अन्य सामाजिक आंदोलन में उसकी हिस्सेदारी रही और फिर उसके नेता भूमिगत हो गए.कई माओवादी नेता तेलगु भाषी और उनका कनेक्शन आरएसयू से था.

जब वर्ष 2004 में पीपुल्स वॉर ग्रुप और माओस्टि कम्युनिस्ट सेंटर मिलकर सीपीआई माओवादी बना तो इससे जुड़े आरएसयू नेता पूरी तरह भूमिगत हो गए. छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले से महाराष्ट्र के दंतेवाड़ा तक नक्सलियों का प्रभाव देखने को मिला.
 

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