इस सदी का दौर शुरू ही हुआ था. मुंबई स्थित कालबादेवी मार्केट के एक व्यापारी की दुकान पर करीब पंद्रह बरस से नौकरी कर रहे यूपी के एक सीनियर भइया ने बरबस ही कह दिया कि बालासाहेब के छोरे से पहले भतीजा ही झंडे गाड़ रहा है. ठीक उसी दिन मार्केट में शिवसैनिकों ने किसी बात को लेकर जमकर तोड़फोड़ मचाई थी. शायद बालासाहेब भी राज ठाकरे को लेकर आश्वस्त थे. मगर पुत्र मोह किसको नहीं. उसके बाद क्या हुआ महाराष्ट्र ने भी देखा. देश ने भी देखा. 2006 में राज ने मातोश्री छोड़ा. अपनी पार्टी बनाई. इन सबके बावजूद भी वो अपनी मराठा और हिंदुत्ववादी राजनीति पर बने रहे. अब साल 2025 आ गया. ठाकरे कुनबे की राजनीति ने ऐसी करवट ली कि जिस कांग्रेस को जीवन भर शिवसेना कोसती रही अब उद्धव उसके मजबूत साथी हैं. राज ठाकरे को लेकर भी तगड़ी चर्चाएं हैं.
असल में कालबादेवी मार्केट की उस पुरानी बात की गवाही जरूर निजी है. लेकिन ठाकरे की राजनीति में अब जो कुछ भी हो रहा है वो पब्लिक देख रही है. तेज भाषण, मराठी अस्मिता और कट्टर हिंदूवादी रुख के लिए जाने जाने वाले राज अब इंडिया गठबंधन की ओर बढ़ रहे हैं. ये महाराष्ट्र की राजनीति में भी बड़ा मोड़ होगा. उद्धव ठाकरे पहले से ही राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं और अब उनके चचेरे भाई राज को भी बकायदा न्योता मिल चुका है.
एनसीपी शरद पवार गुट के सीनियर लीडर और पुणे के मेयर रहे प्रशांत जगताप ने तो सिर्फ बयान दिया. कहा कि अगर राज ठाकरे इंडिया गठबंधन में शामिल होते हैं तो हम उन्हें दिल से स्वागत करेंगे. उन्होंने आगे कहा ये न सिर्फ हमारे लिए बल्कि पूरे गठबंधन के लिए अच्छा कदम होगा. मगर इसकी पटकथा तो उसी दिन लिखी जा चुकी थी जब राज-उद्धव साथ में आए थे. दो दिन पहले दिल्ली पहुंचे उद्धव ने तो यह भी कह दिया कि हम दोनों भाई को क्या करना है ये हमें अच्छे से पता है.
ये सब ऐसे समय में हो रहा है जब महाराष्ट्र में आगामी नगर निकाय और स्थानीय चुनावों को लेकर भी हलचल तेज है. विपक्षी दल इंडिया गठबंधन को मजबूत करने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं और शहरी इलाकों में प्रभाव रखने वाले एमएनएस को जोड़ने की कोशिशों में जुटे हैं. राज ठाकरे जो लेकर शरद पवार की पार्टी ने यह भी कह दिया कि अगर राज ठाकरे इंडिया गठबंधन के साथ आते हैं तो यह महाराष्ट्र की राजनीति के लिए सकारात्मक संकेत होगा. ये बड़ा विकास होगा. महाराष्ट्र की राजनीति में पहले भी दुश्मन साथ आए हैं.
इन सबके बीच अभी राज ने आखिरी पत्ते शायद नहीं खोले हैं. यही कारण है कि राज ठाकरे या उनकी पार्टी एमएनएस की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. लेकिन उद्धव के रुख और इंडिया ब्लॉक के नेताओं के बयानों से लग रहा है कि वो दिन अब दूर नहीं है जब राज ठाकरे भी उद्धव की तरह राहुल के साथ किसी डिनर पर दिख जाएं. वैसे भी इंडिया गठबंधन नए सहयोगियों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट करने की तैयारी में है. ऐसे में हिंदुत्व के झंडाबरदार रहे राज ठाकरे जैसे नेताओं से बेहतर विकल्प उनके लिए कौन होगा. चुनाव में क्या होता है ये अलग बात है और इसका आकलन भी समय ही करेगा.