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Explainer: राज-उद्धव के साथ से BJP का घाटा कम... तो आखिर नुकसान किसका? इस बार कोई और फंस गया

Maharashtra politics: फिलहाल ठाकरे परिवार माहौल बनाने में कामयाब दिख रहा है. यह माहौल कितने दिन तक चलेगा इसके बारे में भविष्यवाणी करना मुश्किल है. भाषा बनाम मराठी अस्मिता की राजनीति पहले भी होती रही है. लेकिन इस बार नुकसान कहीं और होता दिख रहा है.

Photo Raj Thackeray
Photo Raj Thackeray
Gaurav Pandey|Updated: Jul 12, 2025, 12:39 PM IST
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Raj Uddhav Thackeray Alliance: महाराष्ट्र की राजनीति की तासीर कुछ यूं है कि कहीं सस्पेंस.. तो कहीं 90 डिग्री का मोड़ है. यहां घटनाक्रम किसी फिल्मी पटकथा की तरह होते हैं. इस बार भी वही हुआ है.  जो हुआ उसने मराठालैंड के सियासी पटल को हिला दिया. करीब 20 साल पहले शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने वाले राज ठाकरे अब उद्धव ठाकरे के साथ आ गए हैं. 5 जुलाई को मुंबई में एक रैली हुई. दोनों भाई एक मंच पर दिखे. यह मराठा पॉलिटिक्स के प्रशंसकों के केवल इमोशनल मोमेंट तो था ही.. मराठी अस्मिता और सत्ता की नई लड़ाई की शुरुआत भी हो गई. लेकिन मजेदार सवाल यह है कि इनके साथ आने से नुकसान किसको हुआ.

असली ताकत यही.. माहौल बनाना
असल में महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस बार ये साथ सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं लग रहा है. राज ठाकरे ने जिस समय शिवसेना छोड़ी थी तब बाल ठाकरे जीवित थे. अब उनके निधन के 13 साल बाद परिवार एक हो रहा है. 2009 में एमएनएस को 13 सीटें मिली थीं लेकिन 2024 में पार्टी शून्य पर सिमट गई. यहां तक कि राज के बेटे अमित ठाकरे भी तीसरे स्थान पर रहे. उद्धव की शिवसेना भी कमजोर हुई है. 95 में से सिर्फ 20 सीटें मिलीं. यानी दोनों का चुनावी ग्राफ गिरा. इन सबके बावजूद अभी भी ठाकरे परिवार की ताकत है सड़क पर माहौल बनाना. 

सवाल यह कि असली झटका किसे?
राज-उद्धव की जोड़ी से बीजेपी को फिलहाल कोई बड़ा नुकसान नहीं दिखता. एक्सपर्ट्स सीधे यही मान रहे कि सबसे ज्यादा खतरा एकनाथ शिंदे को है. उसके बाद फिर विपक्ष को नुकसान होना शुरू होगा. एकनाथ शिंदे को बीजेपी ने भले ही चढ़ाया लेकिन वे मराठी अस्मिता की राजनीति में प्रभावशाली नहीं दिखते. महाराष्ट्र के ही एक एक्सपर्ट्स ने पिछले दिनों कह दिया कि अब जब ठाकरे परिवार फिर एकजुट हो गया है तो जनता को टूटे परिवार की नहीं बल्कि जुड़े हुए घर की तस्वीर पसंद आ रही है.

तो क्या हिन्दुत्व बनाम मराठी अस्मिता?
हाल ही में थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का सरकार द्वारा वापस लेना भी ठाकरे परिवार के दबाव का नतीजा माना जा रहा है. अब अगला सवाल यह भी है कि क्या ठाकरे भाइयों की जोड़ी बीजेपी की हिन्दुत्व राजनीति को चुनौती दे सकती है? इसका जवाब देना थोड़ा जल्दबाजी होगी. भाजपा के लिए मुसलमान चुनौती हैं न कि मराठी प्राइड चुनौती है. ठीक वैसे ही कुछ ठाकरे परिवार के लिए फिलहाल एक मराठी मुसलमान से ज्यादा भरोसेमंद बिहारी हिंदू होगा. यानी इस खांचे में अभी दोनों बहुत दूर नहीं हैं. 

चिंता तो कांग्रेस को भी है...
अब एक और पहलू है कि इससे कांग्रेस को भी चिंता होनी चाहिए. महाराष्ट्र में विपक्ष की जगह फिलहाल खाली है. अगर ये दोनों मिलकर उस स्पेस को भरने लगे तो कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं. लेकिन मराठी अस्मिता की राजनीति एक सीमा तक ही असरदार रहेगी. जैसे ही ये राजनीति गुजराती और हिंदी भाषी मतदाताओं को अलग करने लगेगी वैसा ही जवाबी ध्रुवीकरण भी हो सकता है. सच यह भी है कि मराठी लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना भी चाहते हैं.

कुल मिलाकर फिलहाल ठाकरे परिवार माहौल बनाने में कामयाब दिख रहा है. यह माहौल कितने दिन तक चलेगा इसके बारे में भविष्यवाणी करना मुश्किल है. भाषा बनाम मराठी अस्मिता की राजनीति पहले भी होती रही है. महाराष्ट्र में इस परिवार की वापसी प्रशंसकों के लिए फील गुड है. चुनाव में यह कैसा दिखेगा इसका भी जवाब समय के पास है.

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