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Isro Satelite: कहां गिरता है कई टन वजनी सैटेलाइट का मलबा, मिशन फेल हो तो कैसे करता है काम

ISRO Satelite Launch: भारत का अर्थ ऑर्ब्जवेशन सैटेलाइट EOS-09 श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से रॉकेट लांचिंग के कुछ देर बाद ही फेल हो गया. रॉकेट के तीसरे चरण में आईं तकनीकी गड़बड़ियों की वजह से ऐसा बताया जा रहा है. 

isro satelite launch
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Amrish Kumar Trivedi|Updated: May 18, 2025, 12:16 PM IST
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ISRO Satelite Launch: इसरो का EOS-09 सैटेलाइट सोमवार सुबह लॉन्चिंग के कुछ मिनटों बाद ही क्रैश हो गया. उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के तीसरे चरण क्रायोजेनिक स्टेज में खराबी के बाद इससे संपर्क टूटा और ये फेल हो गया. सवाल उठता है कि जब सैटेलाइट फेल हो जाता है, तो मलबा कहां गिरता है.

1696 किलो वजनी ईओएस-09 सैटेलाइट अगर पृथ्वी पर कहीं सीधे गिरे तो तबाही ला सकता है, लेकिन चिंता की बात नहीं है. वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा सैटेलाइट धरती के वायुमंडल में गिरते वक्त भयंकर तापमान में जल जाता है. इसके कुछ बड़े टुकड़े धरती पर गिर सकते हैं. लेकिन ये भी पृथ्वी पर पहुंचने से पहले टूट जाते हैं. इसरो का अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS-00) को ‘आई इन द स्काई’भी कहा जाता है. 

रॉकेट लॉन्च के कितने चरण
रॉकेट लॉन्च में कई स्टेज में होते हैं. हर चरण में रॉकेट से एक हिस्सा अलग हो जाता है. अगला हिस्सा एक्टिव हो जाता है. सैटेलाइट के वजन और कक्षा में दूरी के हिसाब से अंतरिक्षयान का प्रक्षेपण पांच चरण तक हो सकता है. वैसे सामान्यतया तीन चरण होते हैं.

पहला चरण
ये पीएसएलवी या जीएसएलवी रॉकेट का सबसे वजनी हिस्सा होता है. सबसे अधिक ईंधन इसमें ही इस्तेमाल होते हैं. पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को भेदते हुए रॉकेट को ऊपर बढ़ना होता है. पहले चरण में रॉकेट का बड़ा हिस्सा ऊपर जाकर अलग होता है. यह समुद्र में या बिना आबादी वाले इलाकों में गिरता है. इस चरण में 2.60 किमी प्रति सेकेंड की गति से करीब ढाई मिनट तक उड़ान रहती है.

दूसरा चरण कितना बड़ा
दूसरे चरण में इंजन तेज चरण से ऊपर बढ़ता है. इसकी गति 3.80 किमी प्रति सेकेंड से 5.10 किमी प्रति सेकेंड तक हो जाती है. ये भी दो ढाई मिनट तक चलता है. फिर पेलोड यानी सैटेलाइट के अलग होने की प्रक्रिया शुरू होती है. 

तीसरे चरण में क्या
तीसरे चरण में क्रायो अपर स्टेज इग्निशन होता है. यह करीब 14 मिनट तक 10 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से ऑर्बिट तक जाता है. लेकिन क्रायोजेनिक स्टेज में गड़बड़ी के कारण ये मिशन फेल हो गया.

क्रायोजेनिक स्टेज
क्रायोजेनिक स्टेज में शून्य डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर इंजन शुरू होता है और सैटेलाइट को निर्धारित कक्षा में पहुंचाया जाता है. क्रायोजेनिक इंजन बनाने और उसकी सफलता के साथ भारत पीएसएलवी के साथ जीएसएलवी से भारी सैटेलाइट प्रक्षेपित करने की स्थिति में भी पहुंच गया है.

अंतरिक्ष में कचरा
अंतरिक्ष में खराब हो चुके सैटेलाइट का कचरा बड़ी मुसीबत है. वैज्ञानिक इसे वायुमंडल में नियोम प्वाइंट के पास लाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि इसे आसानी से नष्ट किया जा सके. 

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