Donald Trump President: शक्ति को नियंत्रण में रखना बेहद मुश्किल होता है. अच्छे-अच्छे लोग शक्ति के मद में खुद को 'भगवान' ही मानने लगते हैं. कुछ घंटे पहले पूरी दुनिया ने एक अभूतपूर्व घटना देखी. धरती पर इस समय के सबसे बड़े पावर सेंटर व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच जिस तरह से 40 मिनट तक 'झड़प' हुई, उसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की होगी. ट्रंप-जेलेंस्की के इस संवाद ने तीसरे विश्व युद्ध की जमीन तैयार कर दी है.
दूसरी बार दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति की कमान मिलने पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया सभी को चौंका रहा है. व्हाइट हाउस से बाइडेन को बेदखल किए हुए ट्रंप को 40 दिन हो गए हैं, लेकिन इतने दिनों में ही उन्होंने अपनी चौधराहट पूरी दुनिया पर दिखा दी है. 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' के फलसफे पर चल रहे ट्रंप क्या दोस्त और क्या दुश्मन... सभी को एक ही डंडे से हांक रहे हैं. बीते 40 दिनों में उनके कुछ बड़े फैसलों पर गौर करें तो जाहिर होता है कि ट्रंप पावर पाकर बेहद मगरूर हो गए हैं.
अमेरिका फर्स्ट के नाम पर ट्रंप जिस तरह से दुनिया पर दादागीरी दिखा रहे हैं, वो एक तानाशाह की ही मानिंद है. रूस और यूक्रेन के बीच की लड़ाई में ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन से उलट पुतिन का साथ दिया है. जेलेंस्की ने बाइडेन की शह पर ही अपने से कई गुना ताकतवर रूस से पंगा लेने की जुर्रत की थी. लेकिन ट्रंप का 'ट्रैक' तो दूसरा ही है. इसकी तस्दीक संयुक्त राष्ट्र में उन्होंने रूस की पैरवी करके कर दी थी. यूक्रेन ही नहीं, ट्रंप अपनी राष्ट्रवादी नीतियों की पैरोकारी करते-करते इस समय उत्तर कोरिया से लेकर सऊदी अरब, बेलारूस और चीन जैसे देशों के पाले में जा खड़े हुए हैं. अधिनायकवादी नेताओं के साथ ट्रंप की ये करीबी भारत के लिए भी मुफीद नहीं है.
ट्रंप की नीतियों का असर दुनिया के 5 ताकतवर मुल्कों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा और न्यूजीलैंड के अलायंस 'फाइव आइज' पर भी पड़ा है. कनाडा के नक्शे पर अमेरिकी झंडा लहरा चुके ट्रंप इस गठबंधन से अब कनाडा को हटाने पर तुले हैं, क्योंकि ट्रंप की नजर में कनाडा अमेरिका का ही हिस्सा है!
दुनिया के कई देश ट्रंप के इस बर्ताव से हैरान हैं. अगले 4 वर्षों में ट्रंप का रुख यही रहा तो इंसानियत की कीमत पर बेलगाम पूंजीवाद का यह एक नया अध्याय रहेगा, जिसका असर कई मुल्कों को दशकों तक झेलना पड़ सकता है. गाजा-ग्रीनलैंड तक पर आंख गड़ाए बैठे ट्रंप अमेरिकी साम्राज्य बढ़ाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करने में रत्तीभर भी नहीं हिचक रहे हैं. अमेरिका की आक्रामक व्यापार नीति का असर गरीब मुल्कों पर पड़ेगा ही, भारत जैसे विकासशील देश भी इससे अछूते नहीं रहेंगे.
दूसरी बार 'मिस्टर प्रेसिडेंट' बने ट्रंप ने वैश्विक व्यवस्थाओं को धता बताते हुए कुछ फैसले ऐसे लिए हैं, जिनका बहुत लंबे समय तक असर पड़ेगा. शपथ लेते ही ट्रंप ने WHO और पेरिस समझौते से किनारा कर लिया. ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से निपटने के लिए 2016 में हुए पेरिस समझौते का ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में भी बायकॉट किया है. ट्रंप की नजर में ये अमेरिका पर एक 'आर्थिक बोझ' है. ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करते हुए धरती के तापमान को 2 डिग्री तक नीचे लाने के उद्देश्य से किए गए इस समझौते को ट्रंप का फैसला कमजोर कर रहा है.
अपने पहले कार्यकाल में 'नमस्ते इंडिया' कहने वाले ट्रंप ने इस बार भारत के खिलाफ भी कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जो एक 'दोस्त' तो हरगिज नहीं करता. अमेरिका से बेड़ियों में जकड़े लौटते सैकड़ों भारतीय नागरिकों का वीडियो हर हिंदुस्तानी को चुभा, लेकिन ट्रंप को कहीं से भी ये गलत नहीं लगा. 'अवैध नागरिक' का तमगा देकर अमेरिका ने दुनिया के कई देशों के नागरिकों को अमेरिका से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. वहीं EB-5 वीजा रद्द कर उसकी जगह 'गोल्ड कार्ड' के जरिए दुनिया के अमीर नागरिकों को 5 मिलियन डॉलर में अमेरिकी नागरिकता 'बेचने' का सौदा कर रहे हैं.
इमीग्रेशन पॉलिसी ने अमेरिका में बसे अप्रवासी भारतीयों के मन में काफी दहशत तो भर ही दी है. अमेरिका में पढ़ाई और वहां बसने का इरादा रखने वाले भारतीय छात्रों को अब 'कोर्स करेक्शन' की जरूरत है. अपने सपनों को परवान चढ़ाने के लिए उन्हें अब दूसरे विकसित मुल्कों का रुख करना पड़ेगा.
टैरिफ बढ़ाने के साथ-साथ ट्रंप ने USAID जैसी अमेरिकी संस्था को भी फिजूलखर्ची बताते हुए बंद कर दिया है. ये संस्था कल्याणकारी कार्यों के लिए भारत को भी फंडिंग करती रही है. लेकिन ट्रंप ने भारत को एक 'रिच कंट्री' बताते हुए इस मद को भी रोक दिया है.
ट्रंप को जी-20 देशों का समूह भी अमेरिका विरोधी लगने लगा है. इसी वजह से साउथ अफ्रीका में आयोजित बैठक से अमेरिका ने किनारा कर लिया. अमेरिका ने सिर्फ बैठक से दूरी नहीं बनाई, उनके विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने सोशल मीडिया पर लिख दिया कि G-20 समूह एकजुटता और समानता को बढ़ावा दे रहा जो अमेरिका के हित में नहीं है. यह टैक्स पेयर्स का पैसा बर्बाद हो रहा.
हालांकि जिस तरह वैश्विक समीकरण बदले हैं, उससे अमेरिका चीन के करीब भले ही आ रहा हो, लेकिन उसे खतरा भी ड्रैगन से ही है. इसी के चलते अमेरिका भारत की भूमिका को इग्नोर नहीं कर सकता. प्रशांत महासागर और साउथ चाइना सी में जिस तरह ड्रैगन पांव पसार रहा, उसे रोकने के लिए अमेरिका को भारत के साथ की जरूरत होगी.
अमेरिका को किसी भी कीमत पर 'ग्रेट' बनाने निकले ट्रंप 4 सालों में कहां तक सफल हो पाते हैं, ये देखने वाली बात होगी. लेकिन इतना तय है कि जिस कीमत पर ये होगा, वो दूसरे मुल्कों के लिए ठीक नहीं.