How Geo Fencing works : अमरनाथ यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा एक लाख पार कर चुका है. अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा में 8 हजार से ज्यादा जवानों की तैनाती, डॉग स्क्वॉड और ड्रोन से सुरक्षा तो हो ही रही है, लेकिन ऐसी हाईटेक निगरानी भी की जा रही है, जिससे परिंदा भी बिना इजाजत वहां पर नहीं मार सकता.
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए जियो फेंसिंग निगरानी शुरू की है. यह एक लोकेशन-आधारित तकनीक है, जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र के चारों ओर आभासी सीमाएं बनाकर उस क्षेत्र की गतिविधियों की निगरानी और प्रबंधन करती है. श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-44) या पहलगाम और बालटाल जैसे प्रमुख अमरनाथ यात्रा मार्गों के चारों ओर ऐसी ही जियो फेंसिंग तैयार की है है. ये एक डिजिटल सिक्योरिटी बाउंड्री जैसे है, जो दीवार की दिखाई तो नहीं देती, लेकिन अभेद्य सुरक्षा देती है. यह बाउंड्री इंडीकेटर (अक्षांश और देशांतर) का उपयोग करके बनाई जाती है. इसे अक्सर GPS, सेलुलर या वाई-फाई तकनीकों के साथ एकीकृत सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म के माध्यम से डिजिटल मैपिंग पर अंकित किया जाता है.
GPS से लैस वाहन या RFID टैग से जुड़ी तकनीक
जियो-फेंसिंग ट्रैकिंग उपकरणों जैसे स्मार्टफ़ोन, GPS से लैस वाहन, या RFID टैग (अमरनाथ यात्रा के तीर्थयात्रियों और वाहनों के लिए उपयोग किए जाने वाले) पर निर्भर करती है. ये उपकरण लगातार लोकेशन वाइज डेटा भेजती है. जियो फेंसिंग के दायरे में कौन सी चीज अंदर आ रही है या बाहर जा रही है, ये सॉफ्टवेयर से पता चलता है. अगर कोई ट्रैक किया गया उपकरण या व्यक्ति जियो-फेंस सीमा पार करता है तो सिस्टम अलर्ट भेजने का काम करने लगता है. जैसे कि कुलगाम की सुरक्षा व्यवस्था में देखा गया है कि एक केंद्रीय निगरानी केंद्र को अलर्ट, सूचनाएँ, अलार्म या हूटर भेजे जाते हैं.
यात्रा के दौरान संदिग्ध गतिविधियों का पता लगाने के लिए सुरक्षाकर्मियों को इससे तत्काल सूचना मिलती है. कुलगाम में निगरानी बढ़ाने के लिए जियो फेंसिंग को हाई रेजोल्यूशन वाले सीसीटीवी कैमरों, चेहरे की पहचान प्रणाली (FRS) और अन्य निगरानी उपकरणों के साथ जोड़ा गया है.
अगर कोई वाहन या तीर्थयात्री प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो सिस्टम ज्ञात खतरों या संदिग्ध व्यक्तियों को चिह्नित करने के लिए उनकी पहचान को FRS डेटाबेस के साथ क्रॉस-रेफरेंस कर सकता है. स्थान डेटा को एक सेंट्रलाइज्ड प्लेटफॉर्म, अक्सर क्लाउड-आधारित के माध्यम से प्रोसेसिंग किया जाता है, जो पैटर्न या विसंगतियों की पहचान करने के लिए सुरक्षा डेटाबेस के साथ एकीकृत होता है.
जियो फेंसिंग से लोकेशन ट्रैकिंग
एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने कहा कि जियो-फेंसिंग यात्रा मार्गों पर तैनात पुलिस और CRPF इकाइयों को सतर्क करके अनधिकृत गतिविधियों जैसे संभावित खतरों पर त्वरित प्रतिक्रिया सक्षम बनाती है. GPS जियो-फेंस क्षेत्र के भीतर उपकरणों के लिए सटीक लोकेशन ट्रैकिंग प्रदान करता है.
घुसपैठ पर नजर
तीर्थयात्रियों और वाहनों की आवाजाही पर नज़र रखने, अवैध घुसपैठ का पता लगाने और आतंकवादी हमलों जैसी घटनाओं को रोकने के लिए एनएच-44 और यात्रा मार्गों पर जियो-फेंसिंग लगाई गई है.जियो-फेंसिंग प्रणाली एफआरएस, ड्रोन और डॉग स्क्वॉड के साथ मिलकर काम करती है. इससे यात्रा के लिए एक बहुस्तरीय सुरक्षा ढांचा तैयार होता है.
हाईवे पर जियो-फेंसिंग निगरानी
हाईवे पर जियो-फेंसिंग निगरानी, अमरनाथ यात्रा मार्गों की निगरानी और सुरक्षा के लिए आभासी सीमाएं बनाकर संचालित होती है. इसमें वास्तविक समय में गतिविधियों पर नज़र रखने और खतरों का पता लगाने के लिए जीपीएस, आरएफआईडी और एकीकृत प्रणालियों का उपयोग किया जाता है. इसकी तैनाती एक ज्यादा खतरे वाले क्षेत्र में सुरक्षा को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के रणनीतिक इस्तेमाल को दिखाती है. हालांकि इसमें सुरक्षा आवश्यकताओं और गोपनीयता संबंधी चिंताओं का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है.
फेशियल रिकॉग्निशन कैमरे भी लगे
इस वर्ष की शुरुआत में पुलिस ने यात्रा मार्ग पर फेशियल रिकॉग्निशन कैमरे भी लगाए हैं. चेहरे की पहचान प्रणाली (एफआरएस) मौजूदा आपराधिक डेटाबेस के साथ व्यक्तियों के चेहरे की विशेषताओं का मिलान करके उन्हें स्वचालित रूप से स्कैन और पहचानने में मदद करती है. यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी ज्ञात संदिग्ध या संदिग्ध व्यक्ति को तुरंत चिह्नित किया जा सके.यात्रा के दौरान जिले में इस पैमाने पर पहली बार इतने उन्नत डिजिटल निगरानी उपकरणों का इस्तेमाल किया गया है.