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उद्धव और राज ठाकरे के 'करीब' आने से एकनाथ शिंदे क्‍यों नहीं हैं खुश?

uddhav thackeray and Raj Thackeray: उद्धव और राज ठाकरे के एक बार फिर से साथ आने की खबर से दोस्‍त और सियासी दुश्‍मनों सभी ने कुछ न कुछ रिएक्‍शन जरूर दिया लेकिन एक नेता ने इस सवाल पर अब तक कुछ नहीं कहा.

उद्धव और राज ठाकरे के 'करीब' आने से एकनाथ शिंदे क्‍यों नहीं हैं खुश?
Atul Chaturvedi|Updated: Apr 23, 2025, 12:05 PM IST
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Maharashtra Politics: महाराष्‍ट्र की सियासत में उद्धव और राज ठाकरे के एक बार फिर से साथ आने की खबर से दोस्‍त और सियासी दुश्‍मनों सभी ने कुछ न कुछ रिएक्‍शन जरूर दिया लेकिन एक नेता ने इस सवाल पर अब तक कुछ नहीं कहा. वो हैं शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे. उनसे जब इस बाबत पूछा गया तो वो थोड़ा झल्‍ला गए और पत्रकार से कहने लगे कि केवल काम से जुड़े सवाल पूछिए. हमेशा शांत और संयत रहने वाले एकनाथ शिंदे ठाकरे ब्रदर्स के साथ आने से कुछ झल्‍लाए से क्‍यों हैं?

विरासत की सियासत
पार्टी टूटने के बाद एकनाथ शिंदे को शिवसेना नाम और पार्टी का सिंबल मिल गया. लोकसभा चुनावों में वो उद्धव की सेना से पीछे रह गए. उद्धव की शिवसेना को 9 और शिंदे सेना को 7 सीटें मिलीं लेकिन विधानसभा चुनाव में एकनाथ की पार्टी के जबर्दस्‍त प्रदर्शन ने बाला साहेब ठाकरे की विरासत पर उनके दावे को मजबूत कर दिया. बीजेपी के बाद शिवसेना विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. एकनाथ शिंदे, शिवसेना के निर्विवाद नेता बन गए. 

अब यदि राज ठाकरे अपने कजिन उद्धव के साथ जाते हैं तो ठाकरे नाम के साथ जुड़ी सियासी विरासत पर शिंदे का दावा कमजोर पड़ जाएगा. भले ही वो उद्धव गुट के कई नेताओं को अपने पाले में लाने में कामयाब हो गए हों लेकिन राज ठाकरे का उद्धव के साथ जाना उनके लिए सबसे बड़ा सियासी झटका है. वो भी तब जब एक हफ्ते पहले ही राज ठाकरे की शिंदे से मुलाकात हुई थी और उस बैठक को बीएमसी चुनाव में संभावित गठबंधन के लिहाज से देखा जा रहा था. 

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बीएमसी चुनाव
अब इस बात की संभावना बन रही है कि बीएमसी चुनाव में उद्धव की शिवसेना और राज ठाकरे की मनसे एकसाथ मिलकर लड़ेंगी. इस तात्‍कालिक झटके के साथ शिंदे के लिए इससे भी बड़ा झटका ये है कि मराठी मानुस और हिंदुत्‍व की जिस पिच पर वो बैटिंग कर रहे थे उसी पिच पर खेलने वाले राज ने उनके बजाय अपने भाई उद्धव के साथ जाने का फैसला कर शिंदे को परिवार और शिवसेना की राजनीति में एक ही झटके पर हाशिए पर डाल दिया है. 

इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि 2005 में जब से राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ी तब से ही दोनों भाइयों को एकसाथ लाने के बहुत प्रयास किए गए लेकिन सफल नहीं हुए. आम शिवसेना कार्यकर्ताओं की हमेशा इन भाइयों को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रहा है और ये बात शिंदे जानते हैं. उनकी खुद की शिवसेना में भी कई बड़े नेताओं के मन में ठाकरे ब्रदर्स को लेकर एक इमोशनल फीलिंग है. अब इस सूरतेहाल में यदि उद्धव और राज एक साथ आकर फिर से ठाकरे ब्रांड की सियासत को चमकाते हैं तो शिंदे को अपने कैंप को बचाने के लिए मेहनत करनी होगी और यही आज की तारीख में उनकी सबसे बड़ी चिंता है.

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