BMC Elections: महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में पिक्चर कुछ भी साफ नहीं हो रही है. कुछ दिन पहले उद्धव और राज ठाकरे की एक साथ आने की चर्चा उड़ी. उसके बाद शिवसेना नेता उदय सावंत ने राज ठाकरे से मुलाकात की. ये कहा जाने लगा कि डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे से भी उनकी बात हो रही है. सीएम देवेंद्र फडणवीस मनसे नेता राज ठाकरे की तारीफ करते ही रहते हैं. इन वजहों से ये कयास भी लगाए जाते रहे हैं कि क्या इसकी परिणति राज ठाकरे और बीजेपी के बीच गठबंधन के रूप में हो सकती है?
इन सबसे इतर बीजेपी एक तरफ तो सत्तारूढ़ महायुति के सहयोगियों शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छुक दिखती है लेकिन मीडिया में ऐसी भी रिपोर्ट आ रही है कि पार्टी को ऐसा फीडबैक मिला है कि वो अपने दम पर चुनाव लड़े. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि पिछले साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 288 सदस्यीय विधानसभा में अपने दम पर ही 137 सीटें मिलीं. इस वजह से पार्टी को लगता है कि उसको अपने दम पर लड़ना चाहिए.
हालांकि एक तरफ चर्चा ये भी चल रही है कि यदि महायुति के सहयोगियों के साथ लड़ा जाए तो पार्टी को 50:30:20 के फॉर्मूले को अपनाना चाहिए. यानी कम से कम 50 प्रतिशत सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. इसमें बाकी 30 प्रतिशत सीटें शिवसेना और 20 फीसद सीटें एनसीपी को देने की बात कही जा रही है.
पार्टी के अंदर अकेले चलने को लेकर जो मंथन चल रहा है उसके मुताबिक पार्टी अपने दम से चुनाव लड़े और बाद में महायुति के सहयोगियों के साथ गठबंधन कर लेने की बात कही जा रही है. इसके पीछे 2017 के बीएमसी चुनाव का हवाला दिया जा रहा है. उस वक्त बीजेपी और उद्धव ठाकरे की तत्कालीन शिवसेना गठबंधन में साथ थीं लेकिन चुनाव इन दलों ने अपने दम पर लड़ा था. उसमें बीजेपी को 82 और शिवसेना को 84 सीटें मिली थीं. चुनाव बाद दोनों ने निकाय में गठबंधन कर लिया था.
एकनाथ शिंदे की शिवसेना इसलिए अकेले चुनाव लड़ने की इच्छुक दिखती है क्योंकि जब पार्टी में विभाजन नहीं हुआ था तो एकजुट शिवसेना का निकाय चुनावों में प्रदर्शन हमेशा दमदार होता था. अब शिंदे सेना सोच रही है कि अगर वो अपने दम पर चुनाव लड़े तो विधानसभा चुनाव की तरह उद्धव सेना को और भी कमजोर कर सकती है. इससे भविष्य में पार्टी और भी मजबूत होगी.
राज ठाकरे की चर्चाएं हर जगह हो रही हैं लेकिन वो भी अपने कार्यकर्ताओं को यही संदेश दे रहे हैं कि अपने दम पर एकला चलो की रणनीति कारगर साबित हो सकती है. उसके बाद किसके साथ गठबंधन करना है वो चुनाव के बाद भी ऐसा करने में सक्षम होंगे.