trendingNow12740154
Hindi News >>Health
Advertisement

डेली 12 घंटे मोबाइल गेम खेलता था लड़का, रीढ़ की हड्डी की बज गई बैंड, पेशाब पर कंट्रोल भी हुआ मुश्किल

अगर आपका बच्चा भी कई घंटों तक मोबाइल परे गेम खेलता है, तो ये खबर आपको सचेत करने के लिए है. एक लड़के को इसी तरह की एडिक्शन थी, जो उसके लिए भारी पड़ गई.

डेली 12 घंटे मोबाइल गेम खेलता था लड़का, रीढ़ की हड्डी की बज गई बैंड, पेशाब पर कंट्रोल भी हुआ मुश्किल
Shariqul Hoda|Updated: May 03, 2025, 06:30 AM IST
Share

Mobile Game Addiction: दिल्ली में 19 साल एक लड़के को रीढ़ की हड्डी की सर्जरी करवानी पड़ी क्योंकि उसे मोबाइल पर गेम खेलने की लत और 12 घंटे से ज्यादा वक्त तक अपने कमरे में अलग रहने की वजह आंशिक लकवा (Partial Paralysis) हो गया था. समय के साथ, उसकी रीढ़ की हड्डी झुक गई और उसका ब्लैडर पर कंट्रोल खोने लगा, ये इशारे थे कि रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ रहा था.

मोबाइल गेमिंग ने बिगाड़ी हालत
तकरीबन एक साल में, बिना डायग्नोज किए गए स्पाइनल ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के कारण उसकी हालत चुपचाप बिगड़ गई थी, और जब तक वो अस्पताल पहुंचा, उसे चलने और पेशाब करने में भी मुश्किल हो रही थी. इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर (ISIC) के डॉक्टर्स ने उसकी रीढ़ की हड्डी में एक सीवियर डेफॉर्मिटी देखी, ये एक खतरनाक स्थिति है जिसे काइफो-स्कोलियोसिस (kypho-scoliosis) कहा जाता है, जिसमें आगे और बगल में दोनों तरह का झुकाव शामिल है.

डॉक्टर के लिए बड़ा चैलेंज
स्कैन से पता चला कि टीबी ने उसकी दो रीढ़ की हड्डियों (डी11 और डी12) को इंफेक्ट कर दिया था, जिससे मवाद बन गया था और रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ रहा था. आईएसआईसी में स्पाइन सर्विसेज के चीफ डॉ. विकास टंडन (Dr. Vikas Tandon) ने इंडिया टुडे से कहा, "ये ए़वांस्ड स्पाइनल टीबी और लंबे वक्त तक गेमिंग की लत के असर के दोहरे बोझ के कारण एक चैलेंजिंग केस था."

इलाज में इस तकनीक का इस्तेमाल
इस परेशानी को ठीक करने के लिए, मेडिकल टीम ने स्पाइनल नेविगेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया, जो एक आधुनिक तकनीक है जो सर्जन्स को हाई प्रिसीजन के साथ स्क्रू लगाने और रीढ़ की हड्डी को अलाइन करने में मदद करती है, ठीक उसी तरह जैसे जीपीएस एक कार को गाइड करता है. सर्जरी में रीढ़ की हड्डी को डीकंप्रेस करना, रीढ़ की हड्डी के शेप को ठीक करना और इंप्लांट के साथ इसे स्टेबल करना शामिल था.

सर्जरी के कुछ दिनों के अंदर, टीनएजर में रिकवरी के साइन दिखने लगे. उसने अपने ब्लैडर पर कंट्रोल वापस हासिल कर लिया और फिर से चलना शुरू कर दिया, जिससे साफ इशारा मिला कि उसकी रीढ़ की हड्डी पर दबाव कम हो गया था. बीमारी के अलावा, यह मामला इस बात का बड़ा संकेत था कि मेंटल हेल्थ, स्क्रीन की लत और शारीरिक समस्याएं आपस में कितनी गहराई से जुड़ी हो सकती हैं.

टीनएजर्स को गेमिंग से खतरा
डॉक्टर ने कहा, "हम लंबे समय तक स्क्रीन के इस्तेमाल, खराब पोश्चर और फिजिकल एक्टिविटीज की कमी के कारण हड्डी और जोड़ों की समस्याओं वाले ज्यादा टीनएजर्स को देख रहे हैं." लड़का अब रिहैब से गुजर रहा है, जिसमें उसके शरीर को मजबूत करने के लिए फिजियोथेरेपी और उसकी गेमिंग की लत को दूर करने के लिए सलाह शामिल है. उसकी रिकवर पर बारीकी से नजर रखी जा रही है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वो शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से नॉर्मल लाइफ में लौट सके.

पैरेंट्स दें ध्यान
डॉ. टंडन ने कहा, "ये मामला दिखाता है कि शुरुआती मेडिकल अटेंशन, पैरेंट्स की अवेयरनेस और रेगुलर फिजिकल एक्टिविटीज क्यों इतनी जरूरी है. गेमिंग की लत दिखने में जितनी खतरनाक लगती है, उससे कहीं ज्यादा रिस्की हो सकती है, खासकर जब ये स्पाइनल टीबी जैसी गंभीर बीमारियों के लक्षणों को छिपाती है."

जैसे-जैसे टीनएजर की ठीक होने का सफर जारी है, डॉक्टरों को उम्मीद है कि उसकी कहानी परिवारों के लिए स्क्रीन से परे देखने और बच्चों के फिजिकल और इमोशनल हेल्थ दोनों पर ध्यान देने के लिए एक रिमाइंडर के तौर पर काम करेगी.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

Read More
{}{}